आंसुओं का सौंदर्य

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आंसुओं का सौंदर्य
आंसुओं का सौंदर्य

विजय गर्ग 

हंसने वाले को कोई अधिक समय तक हंसने से न रोके, रोने वाले को कोई अधिक समय तक रोने से न रोके। और कोई अधिक समय तक सोने वाले को न जगाए या जगाने वाले को कोई सोने को न बोले। तब की दुनिया कुछ और होगी। दरअसल, यह हंसना और रोना हमारी जिंदगी का फलसफा है। प्रकृति की ऐसी नियामत है, जिसके कारण ही मनुष्य मनुष्य होता है। यह रोना ही है, जो एक तरह से हमारे जीवन की बोहनी है यानी आगाज जब हम दुनिया में कदम रखते हैं तो रोते हुए आते हैं। फिर अगर हम रोते हैं तो परिजन खुश होते हैं और अगर नवजात शिशु का रुदन न सुनाई पड़े तो परिजन चिंतित हो जाते हैं और उसे किसी भी तरह रुलाया जाता है। समझने की बात यह है कि अगर हमारी आमद ही रोने से हुई है, तो जीवन में इसका स्थान कैसे बेशकीमती नहीं होगा ! हम चाहें या न चाहें, रोना और आंसू हमारी नियति है, हमारी प्रकृति का अनिवार्य हिस्सा है। इससे हम चाहें जितना भी बचना चाहें, बच नहीं सकते और इसीलिए जो स्थितप्रज्ञ मनीषी होते हैं, वे इससे ऊपर उठ जाते हैं और जिंदगी का असल आनंद लेते हैं । इसी को दूसरे शब्दों में माया भी कहा गया है जो जीवन का परम सत्य है । इससे भला कौन बच सकता है ! जहां तक बात है रोने की, तो इसमें मनुष्यता का सौंदर्य छिपा हुआ है। जब मनुष्य नैसर्गिक रूप बहाता है तो उसे सुकून मिलता है। यह रोना ही है, जो मनुष्य को मनुष्य बना देता है और अन्य प्राणियों से थोड़ा अलग कर देता है।

यह हमारे आंसू ही हैं जो हमारी संवेदना की पहचान हैं। हम जब कोई दर्द भरी कहानी पढ़ते हैं, मिसाल के तौर पर मोपासां का उपन्यास ‘एक महिला की जिंदगी’ में कुछ ऐसा आंसू अंकन देखते हैं, तो हमारे आंसू बहने लगते हैं। सच्चाई यह है कि जिंदगी में हमारे परिवार में आसपास दुख ही दुख है, अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा। और उसमें हमें खुशियां ढूंढ़नी पड़ती हैं। जब हम खुश होते हैं तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और जब ज्यादा मुस्कराते हैं, ज्यादा खुश होते हैं तो हम हंसने लगते हैं। इसका भी जिंदगी में अत्यंत महत्त्व है। शायद इसी वजह से कहा गया है कि दुख भरी जिंदगी की नदी में हंसना या हंसी कुछ ऐसे है, जैसे अंधेरे में सितारों का टिमटिमाना ।

इस तरह हमारी जिंदगी होने और हंसने के बीच एक ऐसा पेंडुलम है, जहां रास्ता सकारात्मकता ढूंढ़ता है। साफ-साफ कहा जाए, तो यह आंसू ही है जो हमारी जिंदगी का आगाज है और अंत भी। जब प्राणी देह त्याग करता है तो खुद भी पीड़ा में दुखी होता है और उसकी मृत्यु के बाद सारा परिवार और चाहने वाले आंसू बहाते हैं। बहुत कम ऐसे पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष होते हैं, जो अपनी मौत को दुनिया के लिए एक पैगाम बना देते हैं, जिससे समाज और दुनिया एक संदेश ग्रहण करती है। सोचने की बात यह है कि यह प्रकृति का कैसा खेल है कि जब कोई नवजात शिशु जन्म लेता है तो वह रोते हुए दुनिया में आता है। जितना सहज आंसू बहाना, रोना है, उससे बहुत बहुत ज्यादा कठिन है हंसना । यही कारण है कि खुशी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, उसकी कोई तुलना नहीं है। मगर यह रोना या आंसू बहाना भी कोई हंसी खेल नहीं है। ईमानदार आंसू वही बहा सकता है जो सच्चे अर्थों में मनुष्य है, क्योंकि इसके पीछे है पाक-साफ हृदय का प्रति-स्थापित होना। आंखों में आंसू सहज रूप से उन्हीं के आते हैं, जो संवेदनशील होते हैं, जो पूर्ण रूप से मनुष्य होते हैं। इसलिए आंसुओं का जिंदगी में बहुत महत्त्व है और इसे सहेज कर रखने को कहा जाता है ।

अगर हम गीत, कविता की बात करें, कहानी की बात करें, तो विभिन्न कलाओं में आंसू और खुशियां समाहित हैं और इन्हें महसूस करके मनुष्य और ज्यादा मनुष्य बनता है। अगर हम यह कल्पना करें कि जिंदगी में आंसू न हो, रोना न हो या फिर हंसना न हो तो फिर जिंदगी कैसी होगी, इसकी कल्पना करने से ही समझ सकते हैं कि वह जिंदगी सिर्फ एक रोबोट सदृश बनकर रह जाएगी। बल्कि अब तो रोबोट को भी कृत्रिम संवेदनात्मक अभिव्यक्तियों से लैस बनाने की कोशिश की जा रही है। इसलिए हमें अपने आंसू छिपाने की आवश्यकता नहीं है। जिस तरह हम अपनी खुशी, अपनी हंसी प्रदर्शित करते हैं, हमें अपने आंसू नहीं छिपाना चाहिए और छिपाने के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह अगर हमारे पास है, तो यह हमारी धरोहर है ।

जाने कितने किस्से और कितनी कहानियां हैं या कहा जाए कि शायद बहुत कम ऐसा सृजन होगा, जिनमें ऐसे दृश्य अनिवार्य रूप से हैं, जिन्हें पढ़ कर आदमी की आंखें नम नहीं हो जाती हैं या फिर होठों पर हंसी न आ जाती हो। एक कवि के सृजन का यह मान ही है कि कोई उसकी रचना को पढ़कर आह उच्चारित करे और दुखी हो जाए। यह स्थिति उस साहित्य के उच्चतर होने का प्रतीक है। इसी तरह, अगर हमें कोई हंसाता है, तो उसका मान- समाज में बढ़ जाता है, क्योंकि हंसना कोई बच्चों का खेल नहीं है। दरअसल, हमें जगाने वाले और सुलाने वाले, हंसाने वाले और आंसू पोंछने वाले जो लोग होते हैं, वही हमारे असल शुभचिंतक होते हैं, चाहे वह कोई अपना हो या फिर पराया। आंसुओं का सौंदर्य