

नेता जी मुलायम सिंह यादव के परिवार के पांच लोग सांसद बने हैं. अखिलेश यादव, पत्नी डिंपल यादव, चचेरे भाई अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव और आदित्य यादव लोकसभा चुनाव जीत गए हैं. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की शुरुआत अच्छी रही. पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक पर उनका प्रारंभिक जोर किसान मुद्दों, बेरोजगारी, पेपर लीक और बढ़ती कीमतों पर तेजी से फोकस के साथ जोड़ा गया. अच्छे उम्मीदवारों का चयन ये उनकी सर्वश्रेष्ठ चुनावी रणनीतियों में से एक साबित हुई. समाजवादी पार्टी ने यूपी में प्रभावशाली ढंग से नेतृत्व करते हुए 62 सीटों में से 37 सीटें जीत लीं, जो आम चुनाव में राज्य में उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है. UP में अखिलेश ने रचा इतिहास
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया. सपा यूपी में 37 सीटें जीतकर सांसदों की संख्या के मामले में देश भर में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. उसने यूपी में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को दूसरे नंबर पर धकेल दिया. ये अखिलेश यादव की अगुआई वाली पार्टी के लिए बड़ी कामयाबी है. बीजेपी (240 सीटें ) और कांग्रेस (99 सीटें) के बाद समाजवादी पार्टी तीसरी ऐसी पार्टी होगी जिसके संसद में सबसे ज्यादा सांसद होंगे. समाजवादी पार्टी ने ओबीसी समुदाय से जुड़े 27, मुस्लिम समुदाय के चार, आरक्षित सीटों पर 15 दलित उम्मीदवारों को टिकट दिया. इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने 11 स्वर्ण जातियों (4 ब्राह्मण, 2 ठाकुर, 2 वैश्य, 1 खत्री) के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. अखिलेश यादव जानते थे कि मुस्लिम और यादव वोटर तो उनके साथ है, लेकिन अगर वोट शेयर को बढ़ाना है तो गैर यादव ओबीसी जातियों का समर्थन हासिल करना होगा. इसके लिए उन्होंने छोटे दलों से हाथ मिलाया.
उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है. जब सपा का गठन हुआ है तब से लेकर अब तक यह पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.इसके अलावा सपा का वोट शेयर भी बढ़ा है. यूपी में समाजवादी पार्टी को 33.59 प्रतिशत वोट मिला. इसे पहले इतना वोट शेयर सपा को कभी नहीं मिला था. इसके अलावा सपा इतनी सीटें तब नहीं जीत पाई जब उसकी यूपी में उसकी सरकार थी और मुलायम सिंह यादव का प्रदेश में जलवा था. सीट जीतने के मामले में अखिलेश यादव ने वो करिश्मा कर दिखाया जो उनके दिवंगत पिता पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव भी नहीं कर सके थे.
समाजवादी पार्टी का गठन 4 अक्टूबर 1992 को हुआ था, लेकिन इसकी नींव उस समय से रखी जाने लगी थी जब 1987 में चौधरी चरण सिंह का निधन हुआ था. दरअसल चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह और मुलायम सिंह में उनकी राजनीतिक विरासत को लेकर अदावत इतनी बढ़ी कि लोकदल के दो टुकड़े हो गए. अजीत सिंह के हिस्से आया लोकदल (अ) और मुलायम सिंह के पास रहा लोकदल (ब). जब कांग्रेस बोफोर्स घोटाले की आग में जल रही थी. तब वीपी सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. विपक्षियों को एकजुट करने की कोशिश हुई और जनता दल बना. मुलायम सिंह ने लोकदल (ब) का इसमें विलय कर दिया और पहली बार मुख्यमंत्री के तौर पर उत्तर प्रदेश की कमान संभाली. 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरी तो मुलायम चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) के साथ हो लिए. 1991 में जब यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए तो मुलायम जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव में उतरे.अब तक मुलायम सिंह यादव ठान चुके थे कि उन्हें अपनी पार्टी बनानी है, आखिरकार वह चंद्रशेखर से अलग हुए और 1992 समाजवादी पार्टी बनाई. वही समाजवादी पार्टी जो लोकसभा 2024 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.सपा को लोकसभा चुनाव में 37 सीट हासिल हुई हैं. यह बड़ी उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि इंडिया गठबंधन की ओर से यूपी में विपक्ष को लीड करने वाली समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव ही थे. 1992 से लेकर अब तक लोकसभा चुनाव में सपा का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. इससे पहले सिर्फ 2004 में पार्टी ने लोकसभा की 36 सीटें जीती थीं. उस समय समाजवादी पार्टी यूपीए का हिस्सा बनी थी. 32 साल के सफर में पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे, मगर ऊबड़-खाबड़ सफर पर कभी स्लो कभी तेज साइकिल हमेशा दौड़ती रही. UP में अखिलेश ने रचा इतिहास
जानें सपा कब कितनी सीट कितने मत प्रतिशत के साथ जीत दर्ज की
वर्ष जीते वोट %
2024 —– 37 —– 33.59
2019 —– 05 —– 18.11
2014 —– 05 —– 22.35
2009 —– 23 —– 23.25
2004 —– 35 —– 26.74
1999 —– 26 —– 24.06
1998 —– 20 —– 28.70
1996 —– 16 —– 20.84
मुलायम सिंह ने जिस दौर में पार्टी का गठन किया, उस दौर में राम मंदिर आंदोलन के चलते भाजपा का ग्राफ तेजी से उठ रहा था. मुलायम सिंह जानते थे कि अकेले इसे रोक पाना मुमकिन नहीं है. पहलवानी के साथ साथ राजनीति में अपने चरखा दांव के लिए विख्यात रहे मुलायम ने पहला दांव खेला और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर लिया. ऐसा कहा जाता है कि इस गठबंधन की पटकथा एक उद्योगपति ने लिखी थी. दोनों पार्टी प्रमुखों के बीच मुलाकात भी दिल्ली में कराई गई थी. 1993 में उत्तर प्रदेश में फिर चुनाव हुए. समाजवादी पार्टी ने 109 और बहुजन समाज पार्टी ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की. चुनाव में बीजेपी ने 177 सीटें जीतीं, मगर सरकार गठबंधन की बनी और मुलायम सिंह यादव ने दूसरी बार यूपी सीएम पद की शपथ ली. मगर ये गठबंधन ज्यादा दिन तक नहीं चला और बसपा के समर्थन वापस लेते ही समाजवादी पार्टी की सरकार गिर गई.
सपा पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ी और छा गई
1996 में पहली बार समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव में उतरने का मौका मिला. मुलायम सिंह ने जीतोड़ मेहनत की और पार्टी को 111 सीटों पर चुनाव लड़ाया. नतीजे अप्रत्याशित आए. खुद सपा को ये भरोसा नहीं था कि इस चुनाव में वह 17 सीटें जीत सकती है. पार्टी ने 16 सीटें उत्तर प्रदेश में जीती थीं और 1 सीट बिहार में भी पा ली थी. लोकसभा चुनाव के जो नतीजे थे उसमें किसी को बहुमत नहीं था. ऐसे में तीसरे फ्रंट की सरकार बनी. 13 दलों की उस सरकार में समाजवादी पार्टी सीटों के लिहाज से चौथे नंबर का दल था, इसीलिए मुलायम सिंह यादव को रक्षा मंत्री बनाया गया. एचडी देवेगौड़ा पीएम बने. एक साल से कम समय बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और इंद्रकुमार गुजराल को पीएम बनाया गया. इस बीच एक मौका ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव पीएम बनते-बनते रह गए. ऐसा कहा जाता है कि उनकी राह में रोड़े शरद यादव और लालू प्रसाद यादव ने अटकाए थे.
यूपी में नहीं बनी सरकार, मगर लोकसभा में बढ़ती रहीं सीटें UP में अखिलेश ने रचा इतिहास
1996 में यूपी में विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन इसमें सपा को अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिल सकी. उस चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिसने 174 सीटें जीतीं, समाजवादी पार्टी के खाते में 110 सीटें आईं और बहुजन समाज पार्टी के खाते में 67 सीट दर्ज हुईं. हंग असेंबली होने की वजह से राष्ट्रपति शासन रहा. बाद में भाजपा और बसपा ने सरकार बनाई और मायावती सीएम बनीं. 1998 में देश फिर आम चुनाव में गया और सपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 19 सीटें जीतीं. देश में एनडीए सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. 13 महीने बाद उनकी सरकार गिर गई और 1999 में एक बार फिर चुनाव हुए. इस बार समाजवादी पार्टी ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया और उत्तर प्रदेश में 26 लोकसभा सीटें जीतकर एक नया रिकॉर्ड बनाया.
जब तीसरी बार बने यूपी के मुख्यमंत्री
2002 में यूपी में चुनाव हुए तो 143 सीटें जीतकर सपा सबसे बड़ा दल बनी. बसपा ने 98 और बीजेपी ने 88 सीटें जीतीं. भाजपा और बसपा ने गठबंधन कर सरकार बनाई, लेकिन कुछ महीने बाद ही यह गठबंधन टूट गया. मुलायम सिंह यादव एक्टिव हुए और सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. मुलायम सिंह ने बसपा के 13 बागी विधायकों और 16 निर्दलीयों के साथ प्रदेश में तीसरी बार समाजवादी पार्टी की सरकार बनाई. इस बार मुलायम सिंह यादव को समर्थन देने वालों में उनके धुर विरोधी अजीत सिंह भी शामिल थे. इसके अलावा कांग्रेस ने भी सपा का साथ दिया था.

अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड
2004 में देश में चौदहवीं लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए सर्वाधिक 36 सीटें जीतीं, इनमें 35 सीटें उत्तर प्रदेश में और 1 सीट उत्तराखंड की शामिल थीं. देश में यूपीए सरकार बनी और सपा उसका अहम हिस्सा रही. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने 26 सीटें हासिल कर सरकार में अपनी हैसियत बरकरार रखी. इससे पहले 2007 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो बसपा ने यूपी में सरकार बनाई थी और मायावती सीएम बनी थीं. इस चुनाव में सपा की 97 सीटें आईं थीं.
2012 में बनाई सरकार, 2014 में लगा झटका
2012 में यूपी में जब विधानसभा चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 224 सीटें हासिल हुईं. मुलायम ने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का सीएम बनाया. इसके बाद सपा 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरी, देश में मोदी लहर के चलते समाजवादी पार्टी को तगड़ा नुकसान हुआ और पहली बार सपा प्रदेश में सिर्फ 5 सीटें ही जीत सकी. 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन सपा महज 47 सीटें ही हासिल कर पाई. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अपनी चिरप्रतिद्वंद्वी बसपा से गठबंधन किया, लेकिन पार्टी 5 लोकसभा सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का यही हाल रहा और वह महज 111 विधानसभा सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी.
अखिलेश पर उठने लगे थे सवाल सवाल पर विराम दमदारी वापसी
2012 के बाद से लगातार हार झेल रही समाजवादी पार्टी को लेकर सवाल उठने लगे थे. मुलायम सिंह यादव की लगातार तबीयत बिगड़ रही थी, 2017 में एक गुपुचुप बैठक बुलाकर अखिलेश यादव को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया. अंदरखाने विरोध हुआ और इससे नाराज होकर शिवपाल सिंह यादव ने कई वरिष्ठ नेताओं के साथ अलग पार्टी बना ली. अखिलेश पर लगातार सवाल उठते रहे. उनकी राजनीतिक समझ को भी लोग निशाना बनाते रहे, मगर अखिलेश का पूरा जोर संगठन को मजबूती देने में लगा रहा.समाजवादी पार्टी लोकसभा 2024 के चुनाव में देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. सपा को इस चुनाव में 37 सीटें हासिल हुई हैं. यह बड़ी उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि इंडिया गठबंधन की ओर से यूपी में विपक्ष को लीड करने वाली समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव ही थे मुलायम सिंह के निधन के बाद शिवपाल सिंह और अखिलेश यादव में सुलह हो गई और पार्टी फिर एकजुटता के साथ चुनाव की तैयारियों में जुटी और लोकसभा चुनाव में नया इतिहास रच दिया. 1992 में पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. UP में अखिलेश ने रचा इतिहास