बृजनन्दन राजू
राम,राष्ट्र एवं संविधान का अपमान
समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने श्रीरामचरितमानस का अपमान कर राम,राष्ट्र एवं भारतीय संविधान का घोर अपमान किया है। संविधान के अनुच्छेद 25 में उल्लेख है कि किसी वर्ग विशेष के धर्म या धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना मौलिक अधिकारों के विपरीत है। स्वामी प्रसाद के बयान और उनके समर्थन में श्रीरामचरितमानस की प्रतियों को जलाये जाने की समाज में चहुंओर निन्दा हो रही है। किसी वर्ग विशेष की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना या किसी पर आक्षेप करना भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। इस देश में अनेक मत,पंथ सम्प्रदाय हैं। सबकी अपनी-अपनी अलग पूजा पद्धति है। प्रत्येक अपने धर्मग्रन्थों पर श्रद्धा व आस्था रखता है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी उससे सहमत हों, लेकिन यह आवश्यक है कि सभी एक दूसरे की भावनाओं का आदर करें। स्वामी प्रसाद के बयान राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आने चाहिए। इस प्रकार का बयान और श्रीरामचरितमानस की प्रतियों को जलाने की घटना देश में धार्मिक उन्माद का कारण बन सकता है। स्वामी सरीखे लोग समाज में उन्माद एवं वैमनस्य फैलाना चाहते हैं।कोई राम को माने या न माने लेकिन राम पर सवाल उठाने का किसी को अधिकार नहीं है। राम द्रोही राष्ट्रद्रोही हैं। हिन्दू जनमानस श्रीराम और श्रीरामचरितमानस का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा। हिन्दू आज जाग उठा है। अगर कोई आस्था पर आघात करेगा तो उसे सबक सिखाने का कार्य हिन्दू करेंगे।
यह भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण का देश है। भगवान श्री राम भारत के आदर्श हैं। यहां के जन-जन में कण-कण में राम हैं। भारत की धर्मपरायण जनता को श्रीराम से अलग नहीं किया जा सकता। श्रीराम के अस्तित्व को नकारने वाली कांग्रेस और रामभक्तों पर गोली चलाने वाली सपा की हालत जगजाहिर है। वोटों के लोभी स्वार्थी नेता सामाजिक एकता को छिन्न भिन्न करना चाहते हैं। राम के आदर्शों पर चलने वाली योगी मोदी सरकार उन्हें अच्छी नहीं लग रही है। स्वामी कहते हैं कि हमें 85 प्रतिशत जनता का समर्थन प्राप्त है। स्वामी के बयान को पांच प्रतिशत जनता का भी समर्थन नहीं मिलेगा।
समाज की एकता का आधार है श्रीरामचरितमानस। हिन्दू समाज श्रीरामचरितमानस पर गहरी आस्था रखता है। घरों में कोई भी शुभकार्य होता है तो श्रीरामचरितमानस के पाठ के बाद ही शुरू होता है। भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के आदर्श हैं। श्रीरामचरितमानस सामाजिक समरसता का ही संदेश देती है।रामो विग्रहवान धर्म। राम धर्म के साक्षात स्वरूप हैं। भारतीय संस्कृति के लिए राम से बढ़कर कोई आदर्श हो नहीं सकता। राम ने अपने जीवन का स्वर्णिम समय ‘तरूणाई’ को राष्ट्र के काम में लगाया। राम का सारा जीवन प्रेरणाओं से भरा है।राम की राज महल से जंगल तक की यात्रा को देखें तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह अविचल रहे। उन्होंने समाज में सब प्रकार का आदर्श स्थापित किया। आदर्श भाई,आदर्श मित्र,आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य,आदर्श पति, आदर्श पिता और आदर्श राजा का उदाहरण स्वयं के आचरण द्वारा प्रस्तुत किया।उनके जीवन में एक भी उदाहरण नहीं मिलता कि उन्होंने किसी के साथ भेदभाव किया हो। राम वनगमन के समय केवट को गले लगाते हैं। माता शबरी के आश्रम में जाकर उनके हाथों बेर खाते हैं। वनवासियों का संगठन किया,सुग्रीव की मित्रता निभाई और गिद्धराज जटायु का दाह संस्कार किया।
तुलसीदास ने रामचरितमानस में जो भी लिखा देशकाल परिस्थिति के अनुसार लिखा। उस समय देश में मुगलों का शासन था। समाज मुगलों के अत्याचार से चीत्कार रहा था। दिल्लीश्वरो जगदीश्वरो की धारणा समाज में घर कर गयी थी। ऐसे काल में श्रीरामचरितमानस की रचना कर समाज जागरण का महान कार्य तुलसीदास ने किया। तुलसीदास ने समकालीन परिस्थितियों पर प्रहार किया है। अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध समाज को खड़े होने का संदेश दिया है। उस समय बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण कराया जा रहा था। श्रीराम के प्रति आस्था निर्माण कर समाज को धर्मान्तरण से बचाने का कार्य तुलसीदास ने किया।
समाज व्यवस्था के रूप में वर्णव्यवस्था को चुना है लेकिन भक्ति के क्षेत्र में वह जाति को महत्व नहीं देते हैं। ढ़ोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी जिसपर स्वामी प्रसाद को आपत्ति है वह प्रसंग समुद्र लंघन के समय का है। “विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत,बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति।” जब समुद्र की स्तुति करते-करते तीन दिन बीत गये और समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तब श्रीराम ने कहा कि लछिमन बान सरासन आनू, सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू। राम के क्रोधित होने पर बाण चढ़ाने पर जब समुद्र डरते हुए उनके पैरों पर गिरता है तो समुद्र स्वयं कहता है कि
गगन समीर अनल जल धरनी, इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी। ढ़ोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी।।
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ढ़ोल के संबंध में ताड़ने का अर्थ पीटने अथवा बजाने से है। गंवार के संबंध में उसकी प्रकृति पहचानने से है। शूद्र के संबंध में उसका अर्थ शिक्षा देने से ही है। पशु के संबंध में उसका अर्थ पैना या चाबुक से है। नारी के संबंध में उसका अर्थ प्रेम से है। कुल मिलाकर मन विवेक बुद्धि लगाकर समझने का प्रयास करेंगे तो उनको समझ में आयेगा लेकिन वह जानबूझकर समाज में विद्वेष फैलाने का प्रयास कर रहे है। तुलसी के राम अन्याय के विरूद्ध संघर्ष के प्रतीक हैं। उन्होंने जाति के स्थान पर गुण कर्म को महत्व दिया है। परहित सरिस धर्म नहि भाई परपीड़ा सम नहीं अधमाई यह उन्होंने लिखा। रामचरितमानस महात्मा गांधी को प्रिय थी।
समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया का प्रिय काव्य ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस ही था।वह संकट के समय अयोध्या या जनकपुर की सेना की सहायता नहीं लेते हैं बल्कि समाज को संगठित कर शक्तिशाली रावण का मुकाबला करते हैं। वे केवल ताकतवर व बड़ों को ही सम्मान नहीं देते बल्कि रामसेतु के निर्माण में गिलहरी का भी सहयोग लेते हैं।रामायण में प्रसंग आता है कि लंका में राम रावण युद्ध के समय जब विभीषण सामने रावण को रथ पर आरूण देखते हैं और राम के पैर में पनही भी नहीं है। तब विभीषण जीत पर शंका व्यक्त करते हैं कि रावण रथी विरथ रघुबीरा। देखि विभीषण भयउ अधीरा। तब रामचन्द्र जी विभीषण से कहते हैं कि सौरज धीरज जाहि रथ चाका। सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका। यनि किसी भी कार्य की सिद्धि मात्र उपकरणों के सहारे नहीं हो सकती उसके लिए अंतःकरण की शक्ति जरूरी होती है।
आदर्श शासन व्यवस्था के रूप में दुनियाभर में रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। जहां विकास के साथ- साथ स्वतंत्रता,सुरक्षा,समानता,स्वावलम्बन और समृद्धि हो वही रामराज्य है। महात्मा गांधी ने भी रामराज्य की वकालत की थी। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है – दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।। तुलसी लिखते हैं, ‘‘बयरु न कर काहू सन कोई राम प्रताप विषमता खोई।‘‘ रामराज्य में गैर बराबरी नहीं है। तुलसी कहते हैं, ‘‘सब नर करहिं परस्पर प्रीती चलहिं स्वधर्म निरत श्रृति नीती। यह है रामराज्य की अवधारणा।
अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने एलान किया कि स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर धड़ से अलग करने वाले को हम 25 लाख रूपये इनाम देंगे। इस प्रकार के बयान संत समाज के लिए शोभा नहीं देते। हम धर्म के पुजारी हैं। हमारा धर्म हिंसा की इजाजत नहीं देता। कुछ संतों ने कहा कि स्वामी प्रसाद और अखिलेश यादव समेत सपा के नेताओं को मंदिर में घुसने नहीं देंगे। लखनऊ में हो रहे 108 कुण्डीय पीताम्बरा महायज्ञ स्थल पर पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं द्वारा काले झण्डे दिखाये गये और उनको काफी विरोध का सामना करना पड़ा।
इस प्रकार का आचरण हमारे द्वारा नहीं होना चाहिए नहीं तो उनमें और हमारे में अंतर ही क्या रह जायेगा। विरोधी लोग चाहते भी यही हैं कि उन्हें मंदिर में जाने से रोका जाय ताकि गला फाड-फाड़कर वह मीडिया के समक्ष चिल्लायें कि उन्हें मंदिर जाने से रोका जा रहा है। विरोधी यही चाहते हैं कि समाज में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो ताकि वह अपना उल्लू सीधा कर सकें।आज भी हमारे समाज में भेदभाव हो रहा है। इसको हमें स्वीकार करना होगा। इसीलिए स्वामी प्रसाद व चन्द्रशेखर रावण जैसे नेताओं के बयानों को समर्थन मिलता है। अगर समाज से भेदभाव समाप्त हो जाय तो समाज के विघटनकारी नेताओं की दुकान नहीं चलेगी।
राम,राष्ट्र एवं संविधान का अपमान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)