प्रिया का घड़ा भर पानी Priya’s pitcher full of water

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टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”

          कभी-कभी घर से तालाब का नजदीक होना बच्चों को बहुत अच्छा लगता है। जब मन किया तालाब जाएँ, नहाएँ, मन भर डूबकें; और तैरें। पड़कीभाट गाँव का तालाब तो बिल्कुल घर से लगा लगा हुआ ही था; तभी तो प्रिया मनमाफिक आनंद लेती थी अपने मनपसंद तालाब कलारिन तरिया का। उम्र रही होगी प्रिया की लगभग बारह-तेरह बरस; कक्षा सात में तो थी। वह बहुत चुलबुली थी। जिज्ञासु प्रवृत्ति की भी थी। जिद्दी भी थी। कुछ भी अपने मन का करने में वह बड़ी माहिर थी।

          एक दिन की बात है। अपनी माँ के मना करने के बावजूद प्रिया एक घड़ा लेकर तालाब जाने के लिए निकली। सर पर घड़ा लिये वह मटक-मटक कर चल रही थी। मुहल्ले वाले उसे देख मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। दादा-दादी के रिश्ते उससे ठट्ठा-दिल्लगी कर रहे थे। प्रिया तो अपने में मस्त थी। 

          प्रिया तालाब पहुँची। घड़े में पानी भरने लगी। घड़े से डूब..डूब..डूब… की आवाज आने लगी। उसे आवाज बड़ी प्यारी लगी। फिर वह घड़े में पानी भरती; और उसे उड़ेलती। फिर भरती और उड़ेलती, फिर भरती और उड़ेलती। उसे ऐसा करने में बड़ा मजा आ रहा था। 

         प्रिया ने घड़े में पानी भरा। सर पर रख घर लौटने लगी। उसे घड़े में पानी भरना; फिर उड़ेलना और डूब-डूब-डूब की आवाज रह-रह कर याद आ रही थी। वह इतनी खुश थी कि वह अपने सर के घड़े को भूल गयी। रास्ते पर पड़े एक पत्थर से हपट गयी। मुँह से निकला- “हाय राम..! मर गयी…!” स्वयं सम्भली और बड़ी मुश्किल से घड़े को सम्भाली। लेकिन घड़े का पानी छलक गया। घड़ा आधा हो गया। फिर उसे अपनी माँ की याद आयी। घबरा गयी; लगा कि अब उसे माँ डाँटेगी।

          प्रिया ने घड़े को वहीं पर छोड़ दिया। कुछ दूरी पर जाकर रोने लगी। घर जाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी एक कौआ आया। घड़े के ऊपर बैठा। पानी पीने की कोशिश करने लगा; पर पी नहीं पा रहा था। उसे खूब प्यास लगी थी। चोंच खुली हुई थी। घड़े के पानी को छोड़कर जाना भी नहीं चाहता था। हर हाल में वह पानी पीना चाहता था।

         फिर कौआ एक पेड़ पर जाकर बैठ गया। कुछ देर तक वह बिल्कुल शांत रहा। सर घुमा-घुमाकर चारों ओर देखने लगा। दूर-दूर तक उसे पानी दिखाई नहीं दिया। आखिर वह घड़े के पास फिर आया। घड़े पर बैठकर उसके अंदर को एक बार फिर झाँका; और इधर-उधर देखने लगा। तभी उसके दिमाग में एक युक्ति आयी। फिर वहीं पर पड़े कंकड़-पत्थर को उठा-उठाकर घड़े में डालने लगा। प्रिया कौए को ऐसा करते हुए बड़े ध्यान से देख रही थी। उसने देखा कि कौए ने मन भर पानी पिया; और उड़ गया। 

          घर जाकर प्रिया ने पूरी बात अपनी माँ को बतायी। माँ ने घड़े फूटने की बात को हँसकर टाल दिया। कौए का इस तरह पानी पीना माँ को भी समझ आ गया। उसने बड़े प्यार से प्रिया को कौए के द्वारा घड़े में कंकड़-पत्थर डालने और पानी पीने के बारे में समझाया- “बिटिया ! प्रियू ! कौए ने ऐसा इसलिए किया कि उसे लगा कि घड़े में कंकड़-पत्थर डालने से पानी की सतह, जहाँ तक उसकी चोंच नहीं पहुँच पा रही थी, ऊपर उठेगी; और फिर वह आसानी से पानी पी सकेगा।

          “पर माँ, पानी की सतह ऊपर क्यों आयी कंकड़-पत्थर डालने से ?” प्रिया को और जानने की इच्छा हुई।

          ” हाँ…बताती हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। इसके पीछे विज्ञान है। पदार्थ की तीन अवस्था होती है- ठोस, द्रव्य और गैस। यहाँ पर पदार्थ की द्रव अवस्था अर्थात पानी में ठोस पदार्थ यानी कंकड़-पत्थर ने घड़े में जाते ही अपना स्थान बना लिया। ठोस पदार्थ कंकड़-पत्थर द्वारा एक निश्चित घेरा स्थान उसका आयतन हुआ। हमेशा याद रखना प्रियू; ठोस पदार्थ का आयतन निश्चित होता है; जबकि पानी एक द्रव है, और द्रव का आयतन निश्चित नहीं होता। इसलिए कंकड़-पत्थर के घड़े में जाते ही पानी की सतह ऊपर आ गयी। फिर कौए की चोंच पानी तक पहुँच गयी; और वह पानी पी लिया और उड़ गया।” प्रिया बड़े ध्यान से सर हिला-हिला कर अपनी माँ की बातें सुन रही थी। उसे आज विज्ञान से सम्बंधित एक अच्छी जानकारी मिली। वह बहुत खुश थी।

          दस साल बाद टीचर प्रिया अपनी कक्षा तीसरी के बच्चों को कुछ इस तरह सुना रही थी। बच्चे भी बड़े मजे से ऊँचे स्वर में बोल रहे थे- 

      “एक था कौआ बहुत प्यासा।

       लिये वह  आया एक आशा।

       घड़े  में अपनी  चोंच डुबाई।

       चोंच पानी तक पहुँच न पाई।

       फिर  कौए  ने किया  उपाय।

       कंकड़-पत्थर बिनकर लाय।

       घड़े में वह अब इन्हें गिराया।

       घड़े  का पानी ऊपर आया।

       पानी पी उसने बुझाई प्यास।

       खुश हो वह उड़ा आकाश।।”