उत्तर प्रदेश को पूरी तरह जीतने के लिए बीजेपी को अपने पिछले तीन चुनावों का वोट शेयर हासिल करना होगा। लेकिन कुछ फीसदी वोटों के नुकसान के बाद भी वह सिर्फ जीत तो हासिल कर सकती है, और शायद उसे 10 फीसदी के आसपास वोटों का नुकसान हो। समाजवादी पार्टी को रिकॉर्ड वोट शेयर हासिल होने की संभावना दिखती है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वह बीजेपी को रोक पाने में कामयाब होगी या नहीं।
उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण के लिए 10 फरवरी को मतदान होना है. इसके लिए सभी प्रत्याशियों ने नामांकन कर दिया है। यूपी चुनाव के पहले चरण में कुल 623 प्रत्याशी मैदान में हैं जिनमें से 280 प्रत्याशी करोड़पति हैं जिसमें से सर्वाधिक करोड़पति प्रत्याशी बीजेपी के हैं। रिपोर्ट की मानें तो बीजेपी के 57 में से 55 प्रत्याशी करोड़पति हैं। राष्ट्रीय लोकदल के 29 में से 27, सपा के 28 में से 23 और बसपा के 56 में से 50 प्रत्याशी करोड़पति हैं। कांग्रेस के 58 में से 32 और आम आदमी पार्टी के 52 में से 22 प्रत्याशी करोड़पति हैं।वहीं, पहले चरण की 58 सीटों पर हो रहे चुनाव में सपा के 75% उम्मीदवारों पर आपराधिक मुकदमे हैं। वहीं, रालोद ने 59%, भाजपा ने 51%, कांग्रेस ने 36% और बसपा ने 34% टिकट आपराधिक छवि वालों को दिए हैं। आप के भी 15% उम्मीदवार दागी है। एडीआर के अनुसार, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 25 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 12 महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं और छह पर हत्या का आरोप है।
आखिरी बात जो देखने वाली है, वह है कि क्या कोई बाहरी फैक्टर भी इस चुनाव में है। किसानों का आंदोलन है जो एक साल चलने के बाद अभी नवंबर में ही खत्म हुआ है। उसेक अलावा केंद्र सरकार के खिलाफ रेलवे भर्तियों और केंद्रीय विभागों में नौकरियों को लेकर हो रहे ताजा विरोध प्रदर्शन हैं। कुछ समय पीछे जाएं तो कोविड की दूसरी लहर के दौरान हमें गंगा में तैरती लाशें दिखेंगी। तो क्या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सामने यह सब अर्थहीन हो जाएगा….?
एडीआर ने कहा कि उसने राज्य के 11 जिलों में 58 विधानसभा सीटों से राजनीतिक दलों के 615 उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवारों के स्व-हलफनामों का विश्लेषण किया है।एडीआर ने कहा कि कुल 623 उम्मीदवार मैदान में हैं और उनमें से आठ के हलफनामों का विश्लेषण नहीं किया जा सका क्योंकि वे स्कैन नहीं किए गए थे या अधूरे थे। उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि पर, एडीआर ने कहा, ”विश्लेषण किए गए 615 उम्मीदवारों में से 156 (25 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जबकि 121 (20 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।”उसने कहा कि प्रमुख दलों में सपा के 28 उम्मीदवारों में से 21 (75 प्रतिशत), रालोद के 29 उम्मीदवारों में से 17 (59 प्रतिशत), बीजेपी के 57 उम्मीदवारों में से 29 (51 प्रतिशत), कांग्रेस के 58 उम्मीदवारों में से 21 (36 प्रतिशत), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 56 उम्मीदवारों में से 19 (34 प्रतिशत) और आम आदमी पार्टी (आप) के 52 उम्मीदवारों में से आठ (15 प्रतिशत) ने अपने हलफनामों में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।एडीआर ने कहा कि प्रमुख दलों में, सपा के 28 उम्मीदवारों में से 17 (61 प्रतिशत), रालोद के 29 उम्मीदवारों में से 15 (52 प्रतिशत), बीजेपी के 57 उम्मीदवारों में से 22 (39 प्रतिशत), कांग्रेस के 58 उम्मीदवारों में से 11 (19 फीसदी), बसपा के 56 उम्मीदवारों में से 16 (29 फीसदी) और आप के 52 उम्मीदवारों में से पांच (10 फीसदी) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। समूह के अनुसार, 12 उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिन्होंने ”महिलाओं के खिलाफ अपराध” से संबंधित मामले घोषित किए हैं और उनमें से एक ने बलात्कार से संबंधित मामल घोषित किया है।
दलित वोटरों पर बसपा और मायावती की पकड़ कमज़ोर होती जा रही है, यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक की मीडिया कवरेज का एक जायज़ा लें तो पता लगेगा कि राज्य में दलित वोटों के बिखरने की पूरी संभावना है जो कि बहुजन समाज पार्टी के राजनीतिक आधार को कमज़ोर कर देगा। कुछ विश्लेषक तो चुटकी लेकर कहते हैं कि बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती एकमात्र ऐसी नेता होंगी जो अपने मतदाताओं को एक बार भी संबोधित किए बिना ही चुनाव में उनसे वोट मांगने जाएंगी ।