

ग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि न केवल जलवायु परिवर्तन, बर्फ के पिघलने और समुद्र-स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएँ ला रही है, बल्कि अब यह स्वास्थ्य संकट भी पैदा कर रही है। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण नए संक्रामक रोग और रोगजनक (pathogens) सामने आ रहे हैं, जो मानवता के लिए नई चुनौती हैं। ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया में नए रोगजनक उभर रहे
ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया में नए रोगजनक उभर रहे हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं। वैज्ञानिकों ने एस्परजिलस नामक फंगस के बढ़ते प्रसार के बारे में चिंता जताई है। इस फंगस के फैलने में जलवायु परिवर्तन और गर्म तापमान की मदद भी शामिल है। इस प्रकार की फफूंद लोगों, पौधों और जानवरों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती है और कुछ मामलों में मृत्यु का कारण भी बन सकती है। एक नए अध्ययन में ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने दुनिया में फंगस के विस्तार का मॉडल बनाकर दिखाया है कि फंगस की तीन प्रजातियां, एस्परजिलस फ्यूमिगेटस, एस्परजिलस फ्लेवस और एस्परजिलस नाइजर अगले 70-80 वर्षों में उत्तर की ओर फैलेंगी। शोधकर्ताओं ने फंगस के मौजूदा आवासों और वार्मिंग की भविष्यवाणी करने वाले जलवायु मॉडल का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया में नए रोगजनक उभर रहे
ब्रिटेन के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक नॉर्मन वैन रिजन का कहना है कि आर्द्रता और चरम मौसम की घटनाओं जैसे पर्यावरणीय कारकों में परिवर्तन, आवासों को बदल देंगे और फंगस के अनुकूलन और प्रसार को बढ़ावा देंगे। वायरस और दूसरे रोगजनक परजीवियों की तुलना में फंगस पर अपेक्षाकृत कम शोध किया गया है, लेकिन ताजा अध्ययन दिखाते हैं कि भविष्य में फंगस रोगजनकों का दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।
गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य के तहत, यूरोप में एस्परजिलस फ्यूमिगेटस का प्रसार 15 वर्षों में 77.5 प्रतिशत बढ़ सकता है, जिससे 90 लाख और लोगों को संक्रमण का खतरा हो सकता है। एस्परजिलस फ्लेवस जो गर्म क्षेत्रों को तरजीह देता है, यूरोप में 16 प्रतिशत तक प्रसारित हो सकता है, जिससे अतिरिक्त 10 लाख लोग जोखिम में पड़ सकते हैं। शोधकर्ता नए क्षेत्रों में फैलने वाले संक्रमण से चिंतित हैं। इस तरह के फंगस संक्रमण कमजोर लोगों, विशेष रूप से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को ज्यादा परेशान करेंगे। इस बात की अधिक संभावना है कि नई जगहों पर फंगस की प्रजातियों के अनुकूलन बाद स्वस्थ व्यक्तियों में भी संक्रमण के मामले बढ़ जाएंगे।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव संक्रमणों के अलावा और भी बातें चिंताजनक हैं। फंगस के प्रकोप से फसलें नष्ट हो सकती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में दुनिया की आबादी का पेट भरने करने की चुनौतियों में वृद्धि हो सकती है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में लिखा है कि एशिया, यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में एस्परजिलस फंगस के साथ मानव संपर्क में वृद्धि की संभावना आने वाले समय में सार्वजनिक स्वास्थ्य का बोझ बढ़ा सकती है और फसल सुरक्षा परिदृश्य को बदल सकती है। एस्परजिलस के अलावा एक और फंगस, कैंडिडा ऑरिस भी वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय रही है। महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनने में सक्षम यह फंगस भी दुनिया के गर्म होने के साथ-साथ नए क्षेत्रों में फैल रही है, और अन्य प्रजातियों के भी इसका अनुसरण करने की संभावना है।
इन फंगस प्रजातियों का एक दूसरा पहलू भी है। पर्यावरण संतुलन में उनकी खास भूमिका है। वे पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ पहुंचाती हैं, जिसमें कार्बन और पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण शामिल है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलावों पर गौर करते समय इन सभी बातों पर भी विचार करने की आवश्यकता पड़ेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि फंगस रोगजनकों के प्रभावों को कम करने के लिए उनके बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ प्रभावी चिकित्सीय उपचार विकसित करना भी जरूरी होगा। इस बीच, संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि खेती में नए फफूंदनाशक रसायनों के व्यापक उपयोग से मनुष्यों और जानवरों में फंगल संक्रमण के उपचारों के खिलाफ प्रतिरोध बढ़ सकता है।
एक नए अध्ययन में कृषि में उपयोग किए जाने वाले फफूंदनाशक को मनुष्यों और जानवरों दोनों में फफूंद रोधी दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध में वृद्धि से जोड़ा गया है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ, डॉ. जॉर्ज थॉम्पसन और डॉ. एंजेल देसाई ने चेतावनी दी है कि हानिकारक फफूंद को मारने के लिए विकसित किए गए नए कृषि कीटनाशक लोगों और जानवरों में खतरनाक फंगल संक्रमण का इलाज करना कठिन बना सकते हैं।
फंगस प्रजातियां पहले से ही दुनियाभर में गंभीर स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याओं का कारण बन रही हैं। एंटीफंगल एजेंट दवा और कृषि दोनों में आवश्यक रसायन हैं, लेकिन इन यौगिकों के अत्यधिक उपयोग से फफूंद में प्रतिरोध विकसित हो सकता है। इसका मतलब है कि मनुष्यों के लिए जीवन रक्षक उपचार काम करना बंद कर सकते हैं। दोनों विशेषज्ञों ने वैश्विक समुदाय से फफूंद और बैक्टीरिया जैसे रोगजनकों से लड़ने के लिए रासायनिक एजेंटों के विकास, परीक्षण और उपयोग के लिए ‘समग्र स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया है। थॉम्पसन ने कहा, दवा प्रतिरोधी रोगजनक एजेंटों का विवेकपूर्ण उपयोग करने की भी आवश्यकता है। हमने सीखा है कि पशुधन के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप जीवाणुरोधी दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध का तेजी से विकास हुआ है। पर्यावरण में फफूंदनाशक के उपयोग के बारे में भी ऐसी ही चिंताएं हैं।
समग्र स्वास्थ्य दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि कैसे एक क्षेत्र में परिवर्तन से मानव गतिविधि,पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। जलवायु और हवा के पैटर्न में परिवर्तन फफूंद जैसे रोगजनकों को फैलाने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, यात्रियों, प्रवासी जानवरों और दूषित वस्तुओं की आवाजाही रोगजनकों को नए क्षेत्रों में ले जा सकती है। पिछले कुछ दशकों में मनुष्यों में गंभीर संक्रमण पैदा करने वाली फंगस के प्रकारों में तेजी से वृद्धि हुई है। मसलन, कैंडिडा ऑरिस एक ऐसी ही फंगस है। इसका इलाज भी कठिन होता है। इस फंगस में मनुष्यों के समान कोशिका तंत्र होता है। यही कारण है कि कैंडिडा ऑरिस जैसे फंगस को मारने वाली दवाओं के लोगों पर अक्सर दुष्प्रभाव होते हैं। नैदानिक देखभाल के दौरान चुनने के लिए बहुत कम एंटीफंगल दवाएं होने के कारण प्रतिरोध को रोकना सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि उपचारों के खिलाफ प्रतिरोध प्रत्येक रासायनिक एजेंट की मात्रा से अत्यधिक जुड़ा हुआ है। उन्होंने नए रोगाणुरोधी एजेंटों के खिलाफ प्रतिरोध के विकास को धीमा करने के लिए समन्वित वैश्विक विनियमन का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, एक साझा रोगाणुरोधी अनुमोदन प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसमें पर्यावरण और मानव तथा पशु स्वास्थ्य पर संभावित प्रभावों का गहन मूल्यांकन शामिल हो। प्रतिरोधी रोगजनकों के तेजी से प्रसार की जोखिम भरी संभावनाओं से बचने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर साझा प्रयास करने होंगे।बड़े धार्मिक आयोजनों का वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरीबड़े धार्मिक आयोजनों का वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरी ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया में नए रोगजनक उभर रहे