26 अक्षर की शक्ति और सनातन अर्थशास्त्र

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26 अक्षर की शक्ति और सनातन अर्थशास्त्र
26 अक्षर की शक्ति और सनातन अर्थशास्त्र

पंकज गांधी जायसवाल

सनातन अर्थशास्त्र यह मानता है कि इस व्यापक ब्रह्मांड में चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, संसाधन असीमित हैं लेकिन हमारी आवश्यकताएँ और दृष्टि अभी तक इतनी विस्तृत नहीं हुई हैं कि हम उनका पूर्ण रूप से उपयोग कर सकें। हम केवल उन्हीं चीजों का विकास कर सकते हैं जिन्हें हम देख और समझ सकते हैं। इस सिद्धांत को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमें अपने आस-पास के उदाहरणों को देखना होगा, जो हमारी अंतर्निहित क्षमता को उजागर करते हैं और हमें अपने भीतर छिपी संभावनाओं को पहचानने में मदद करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में अद्वितीय क्षमताएँ और शक्तियाँ निहित होती हैं. मुख्य बात उन्हें पहचानने और प्रभावी ढंग से उपयोग करने की होती है। इस अवधारणा का सबसे प्रभावशाली उदाहरण अंग्रेज़ी भाषा के मात्र 26 अक्षरों की शक्ति में निहित है।  

पहली नज़र में अंग्रेज़ी वर्णमाला और अर्थशास्त्र में कोई संबंध नहीं लगता लेकिन इन दोनों के बीच गहरा नाता है। सोचिए, पुस्तकें हजारों, लाखों या करोड़ों की संख्या में बिकती हैं। एक बेस्टसेलर और एक अनदेखी पांडुलिपि में क्या अंतर होता है? अक्षर तो वही A से Z तक के होते हैं लेकिन इन्हीं 26 अक्षरों की रचनात्मक संरचना शब्द, वाक्य और भावनाएँ उत्पन्न करती है जो पाठकों को आकर्षित करती हैं। एक कुशल लेखक इन्हीं अक्षरों को इस तरह पिरोता है कि उसकी कृति लाखों प्रतियाँ बेचने में सक्षम हो जाती है।  

सनातन अर्थशास्त्र भी संसाधनों को इसी दृष्टि से देखता है। हमारे पास जो कुछ भी चाहिए, वह पहले से ही उपलब्ध है लेकिन उसे सही तरीके से संयोजित और उपयोग करने की हमारी क्षमता ही उसकी वास्तविक मूल्यवत्ता निर्धारित करती है। संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं लेकिन हम उन्हें सीमित तरीकों से पहचानते और इस्तेमाल करते हैं। जिस दिन हमारी ज्ञान, दृष्टि और जानकारी का विस्तार होगा, उस दिन हमारा व्यक्तिगत, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थतंत्र भी विकसित होगा।  

संगीत की सृजनात्मकता शक्ति भी इसका एक उदाहरण है. हम अपने जीवनकाल में अनगिनत गाने सुनते हैं लेकिन हर नया गीत अलग अनुभव देता है। वही शब्द, सुर और वाद्ययंत्र उपयोग किए जाते हैं लेकिन एक गीतकार और संगीतकार उन्हें नए तरीके से संयोजित कर एक अनूठी धुन बनाते हैं जो लोगों के दिलों में बस जाती है। हर नया गीत अपनी अलग पहचान और मूल्य लेकर आता है जो यह प्रमाणित करता है कि संभावनाएँ अनंत हैं—हमें केवल ऐसे दृष्टा और सृजनशील व्यक्तियों की आवश्यकता है जो उनकी असली कीमत को पहचान सकें।  

भाषा को देखिये, यह एक ऐसी संरचना है जो अव्यक्त को व्यक्त करती है। यह बुद्धिमान जीवन के सबसे असाधारण आविष्कारों में से एक है। प्रारंभ में यह संकेतों और ध्वनियों के माध्यम से विकसित हुई, फिर लिखित रूप में परिवर्तित हुई, जिससे संचार, शोध और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का प्रसार संभव हुआ। जैसे-जैसे मानवीय संवाद उन्नत हुआ, आर्थिक गतिविधियाँ भी बढ़ीं और सभ्यताओं की समृद्धि संभव हुई।  

कल्पना कीजिए, यदि भाषा न होती तो हम कैसे संवाद करते, व्यापार संचालित करते या सामाजिक एवं आर्थिक रूप से आगे बढ़ते? साहित्य और संगीत के उदाहरण यह दर्शाते हैं कि भाषा के बिना विकास अवरुद्ध हो जाता। इसलिए किसी भी उन्नत समाज की नींव रखने के लिए भाषा का ज्ञान आवश्यक है।  

जिस प्रकार अक्षर और भाषा नए अवसरों के द्वार खोलते हैं, उसी प्रकार शिक्षा भी ऐसा ही करती है। अधिकांश लोग जन्म से धनी नहीं होते और न ही उन्हें विशाल संसाधन विरासत में मिलते हैं लेकिन उनके पास बौद्धिक क्षमता, दृढ़ संकल्प और ज्ञान अर्जित करने की शक्ति होती है। जो लोग शिक्षा में निवेश करते हैं और स्वयं को सामाजिक और बौद्धिक रूप से विकसित करते हैं, वे समय के साथ आर्थिक सफलता प्राप्त करते हैं।  

इसके विपरीत जो लोग अपनी क्षमता को पहचानने में असफल रहते हैं और आवश्यक कौशल अर्जित नहीं करते, वे संघर्ष करते हैं या समाज पर बोझ बन जाते हैं। इसलिए, विकास इस बात पर निर्भर करता है कि हम सनातन अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को कैसे अपनाते हैं, जो “अहं ब्रह्मास्मि” की भावना को प्रकट करता है। यह एहसास कि ब्रह्मांड और उसकी असीम संभावनाएँ हमारे भीतर ही विद्यमान हैं।  

इस प्रकार अंग्रेज़ी भाषा के 26 अक्षरों की शक्ति यह दर्शाती है कि हमारे पास असीमित अवसर उपलब्ध हैं। चाहे वह साहित्य, संगीत, भाषा या शिक्षा हो, मूल सिद्धांत वही रहता है—संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं लेकिन उनका मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन्हें किस प्रकार देखते और उपयोग करते हैं।  

सनातन अर्थशास्त्र हमें अपनी दृष्टि का विस्तार करने, अपनी क्षमता को पहचानने, और जो पहले से ही मौजूद है, उससे मूल्य उत्पन्न करने के लिए प्रेरित करता है। यदि हम ऐसा कर पाए, तो हम न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामूहिक आर्थिक वृद्धि को भी गति दे सकते हैं और अपनी संभावनाओं को ठोस वास्तविकताओं में बदल सकते हैं।