राजेश कुमार पासी
लोकसभा में 13-14 दिसम्बर और राज्यसभा में 16-17 दिसम्बर को संविधान पर चर्चा हुई है। पक्ष-विपक्ष के सांसदों ने इस चर्चा में भाग लिया लेकिन उनके भाषणों में संविधान कहीं नहीं था। इन सांसदों ने जब भी संविधान का नाम लिया तो वो भी अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए लिया। ज्यादातर सांसद जब संसद में बोलते हैं तो वो इसकी तैयारी करके आते हैं लेकिन संविधान की चर्चा करने के लिए आये सांसद संविधान की नहीं बल्कि अपने विरोधी दल पर हमला करने की तैयारी करके आये थे । अगर कोई राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी इस बहस को अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए देखता तो अपना कीमती समय बर्बाद करता। संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर के नाम का इस्तेमाल भी उनके योगदान को याद करने के लिए नहीं बल्कि अपने विमर्श को चलाने के लिए किया गया। बाबा साहब ने कहा था कि बुरा संविधान भी अच्छा साबित हो सकता है अगर उसको इस्तेमाल करने वाले लोग अच्छे हों लेकिन अच्छे से अच्छा संविधान भी बुरा साबित हो सकता है अगर उसको इस्तेमाल करने वाले लोग बुरे हों। निरर्थक चर्चा से संविधान का हुआ अपमान
हमने देखा है कि संविधान का अच्छा इस्तेमाल भी हुआ है और बुरा भी हुआ है । पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की थी।आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की हत्या की गई और देश ने कांग्रेस सरकार की तानाशाही को देखा। संविधान द्वारा दिये गए सभी मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए, यहां तक कि जीवन का अधिकार भी खतरे में पड़ गया। आपातकाल को संविधान की हत्या बताया जाता है लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि आपातकाल संविधान में दिए गए प्रावधानों के अनुसार ही लगाया गया था। इंदिरा जी ने संविधान से बाहर जाकर कुछ नहीं किया था, उन्होंने संविधान का दुरुपयोग किया था। आंतरिक सुरक्षा के नाम पर आपातकाल देश पर थोपा गया जबकि उस समय देश की आंतरिक सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था। जनता पार्टी की सरकार ने संविधान संशोधन करके यह सुनिश्चित कर दिया कि अब इस तरीके से संविधान का गलत इस्तेमाल कोई दूसरी सरकार न कर सके ।
राहुल गांधी पिछले कुछ समय से संविधान को सिर पर उठाकर घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि संविधान की हत्या करने का विमर्श उन्हें मोदी सरकार के खिलाफ बड़े हथियार के रूप में मिल गया है। उनकी सोच की वजह यह है कि इस विमर्श ने उन्हें पिछले लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया है। इसके अलावा वो आरक्षण और मुस्लिम उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर सरकार को घेरना चाहते हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बावजूद उन्हें अब भी यह समझ नहीं आ रहा है कि उनके मुद्दे काठ की हांडी की तरह थे, जो एक बार चढ़ गई है और अब दोबारा वो चढ़ने वाली नहीं है।
राहुल गांधी दो सबसे बड़ी राजनीतिक गलतियां कर रहे हैं जो कांग्रेस को रसातल की ओर ले जा रही हैं। पहली गलती तो यह है कि वो मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से आगे निकल आये हैं और अब वो हिन्दू विरोध की नीति पर चल रहे हैं। कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति को हिन्दू समुदाय आज़ादी से पहले से देख रहा है और इसका आदी हो गया है लेकिन राहुल गांधी जिस तरह से खुलकर हिन्दू विरोध में उतर आए हैं, उसे हिन्दू समाज स्वीकार नहीं कर सकता। राहुल गांधी और कांग्रेस की दूसरी बड़ी गलती यह है कि अब जनता को उनकी नीयत पर शक होने लगा है। भारतीय राजनीति में जनता नेता और राजनीतिक दल की गलत नीतियों को माफ कर देती है लेकिन जिसकी नीयत पर उसे शक हो जाता है उसकी राजनीति को खत्म कर देती है । भाजपा ने राहुल गांधी का रिश्ता जॉर्ज सोरोस और उनके सहयोगी संगठनों से जोड़कर उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया है लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस इसका ढंग से विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं। वास्तव में भाजपा ने संसद और मीडिया में राहुल गांधी पर आरोप पूरे तर्क और तथ्यों के साथ लगाए हैं जिन्हें झुठलाना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है।
संविधान पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने जिन मुद्दों को उठाया, उनमें नयापन नजर नहीं आया बल्कि प्रियंका गांधी तो अपने पहले भाषण में राहुल के मुद्दों को ही आगे बढ़ाती हुई नजर आईं। प्रियंका गांधी संसद में पहली बार बोल रही थी और मुद्दा संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर चर्चा करने का था लेकिन उन्होंने एक बार भी बाबा साहेब के योगदान को याद नहीं किया । दोनों भाई-बहन मिलकर यह साबित करने में लगे रहे कि मोदी सरकार संविधान के खिलाफ काम कर रही है। इसके जवाब में मोदी जी ने भी कांग्रेस सरकार के दौरान किये गए कई कार्यो को संविधान के खिलाफ बता दिया। राहुल गांधी पिछले कई सालों से जनता में संविधान बदलने का डर फैला रहे हैं तो मोदी जी ने भी पिछली कांग्रेस सरकारों द्वारा किये गए संविधान संशोधनों को संविधान बदलना बता दिया । एक तरह से मोदी जी ने भी यह जानते हुए कि वो गलत बोल रहे है, राहुल गांधी को उनकी ही भाषा में जवाब देने की कोशिश की है।
संविधान संशोधन कभी भी संविधान बदलना नहीं हो सकता बल्कि संविधान सुधार कहा जा सकता है। हमारे पूर्वजों ने संविधान को ऐसा बनाया है कि उसे वक़्त के अनुसार बदला जा सके। हमारे संविधान की ये विशेषता है कि 75 सालों से लगातार इससे पूरी व्यवस्था चल रही है और सौ से ज्यादा संशोधन होने के बावजूद इसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकी है। मेरा मानना है कि संविधान की हत्या करने का शोर मचाना पूरी तरह से संविधान और बाबा साहेब का अपमान करना है। संविधान की हत्या करने की कोशिश तो आपातकाल के दौरान भी नहीं हुई थी । इतना जरूर है कि उसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ की गई थी जिसे बाद में जनता पार्टी की सरकार ने ठीक कर दिया।
संविधान पर चर्चा के दौरान विपक्ष की जिम्मेदारी थी कि वो सरकार को बताए कि संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने के प्रयासों में उसने क्या कमी की है। विपक्ष तो सिर्फ सरकार पर बेसिरपैर के आरोप लगाता रहा । इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी ने अवसर का पूरा लाभ उठाया, उन्होंने अपनी लोककल्याण की योजनाओं को संविधान के उद्देश्यों के साथ जोड़ दिया । विपक्ष ने पूरी चर्चा को अपने नकारात्मक एजेंडे को चलाने के लिए इस्तेमाल किया और भाजपा ने भी विपक्ष पर कड़े प्रहार करते हुए उसके पूरे एजेंडे को ध्वस्त कर दिया। विपक्ष के पास मौका था कि इस मुद्दे पर एक सकारात्मक बहस करके वो सरकार के कामों में कमियां निकाल सकता था। राहुल गांधी ने तपस्या को शरीर में गर्मी पैदा करना बता दिया और प्रियंका गांधी अपनी ही एक राज्य सरकार को कोसती रही। कितनी अजीब बात है कि राहुल गांधी को भारतीय धर्म और संस्कृति की इतनी भी समझ नहीं है कि वो तपस्या और श्रम के अंतर को समझ पाएं। जिस तरह से प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश की चर्चा की, उससे लगता है कि वो सिर्फ सरकार को घेरने के लिए अडानी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही थीं। इससे यह भी साबित होता है कि दोनों नेता तैयारी करके नहीं आये थे बल्कि अपनी टीम द्वारा तैयार किये गए भाषण को पढ़ रहे थे। ऐसा लगता है कि अपनी टीम द्वारा तैयार किये गए भाषण से कुछ अलग बोलने की कोशिश में गलती कर गए।
अगर राहुल गांधी संविधान के मुद्दे पर सरकार को घेरना ही चाहते हैं तो उन्हें कम से कम संविधान का अच्छी तरह से विश्लेषण कर लेना चाहिए। मोदी जिस तरह से विपक्ष पर प्रहार करते हैं उसको देखते हुए विपक्ष के नेता को खुद को तैयार करके जाना चाहिए। जब मुद्दा संविधान पर चर्चा का था तो अपनी बात को संविधान तक सीमित रखने की जिम्मेदारी दोनों पक्षों की थी लेकिन पूरी चर्चा आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित हो गई। अगर विपक्ष को सरकार के खिलाफ बोलना था तो किसी और मुद्दे पर चर्चा की मांग की जा सकती थी । संविधान पर चर्चा के नाम पर दोनों पक्षों का एक दूसरे पर राजनीतिक हमले करना बताता है कि संविधान के सम्मान की परवाह नहीं की गई है। अगर मुद्दे उठाने थे तो उन मुद्दों को उठाना चाहिए था जिन्हें संविधान के खिलाफ माना जाए । विपक्ष की समस्या यह है कि वो खुद संविधान के खिलाफ काम करता नजर आ रहा है और उसे संविधान विरोधी सरकार को साबित करना है। संविधान सरकार को इतनी शक्ति और संसाधन देता है कि वो संविधान का इस्तेमाल करते हुए भी विपक्ष ने निपट सके तो दूसरी तरफ संविधान विपक्ष को भी सरकार का विरोध करने के अवसर देता है । बड़ी अजीब बात है कि विपक्ष संविधान की हत्या का शोर मचा रहा है तो दूसरी तरफ वो खुद ही संवैधानिक संस्थाओं पर हमले कर रहा है। विपक्ष को संविधान का शोर मचाने की जगह जनता के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। निरर्थक चर्चा से संविधान का हुआ अपमान