मौन की शक्ति

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मौन की शक्ति
मौन की शक्ति
 विजय गर्ग
विजय गर्ग 

ज के दौर में हर कोई भाग-दौड़ और प्रतिस्पर्धा में लिप्त है। हर तरफ शोर, सूचनाओं की बाढ़ और एक अंतहीन होड़ हमें घेर लेती है। सोशल मीडिया के शोर ने हमारे भीतर मानसिक और भावनात्मक कोने को लगभग खत्म कर दिया है। हम हर समय किसी न किसी तरह के शोर से घिरे होते हैं। ऐसे में मौन की शक्ति और उसकी प्रासंगिकता को समझना पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। मौन सिर्फ शब्दों की अनुपस्थिति नहीं है, यह एक गहरा आत्म-संवाद है। यह वह स्थिति है, जहां हम बाहरी दुनिया से कटकर अपनी आंतरिक दुनिया से जुड़ते हैं। आधुनिक जीवन की आपाधापी में हम इस मौन की जरूरत को भूलते जा रहे हैं । एक श्लोक है- ‘मौनं सर्वार्थसाधकम्’, यानी मौन सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला है । इसका तात्पर्य यह है कि मौन में अपार शक्ति छिपी होती है, जो हमें आत्मनिरीक्षण का अवसर देती है। हम जब मौन होते हैं, तब हमारे विचार स्पष्ट होते हैं और हम अपनी वास्तविक भावनाओं और उद्देश्यों को समझ पाते हैं । आज के समाज में जहां मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर चुनौती बन गया है, मौन और आत्मचिंतन के महत्त्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर पांच में से एक व्यक्ति अवसाद या मानसिक तनाव का सामना कर रहा है। ऐसे में मौन आत्मचिंतन का एक सशक्त साधन बन सकता है। जब हम मौन में होते हैं, तब हम अपने मन की गहराई तक पहुंचते हैं। यही वह स्थान है, जहां हम अपने दुख, तनाव, और चिंताओं से उबरने के रास्ते खोज सकते हैं। मौन की शक्ति

मौन की इस प्रक्रिया में हमें खुद को जानने और अपने भीतर की आवाज को सुनने का अवसर मिलता है। मौन से जुड़े लोगों को समाज अक्सर गलत समझता है । लोग उन्हें उदास या अकेला मानते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि मौन व्यक्ति गहरे आत्म-चिंतन में होता है। वह अपने विचारों और भावनाओं को समझ रहा होता है, जो शोर-शराबे में खो जाता है। मौन हमें खुद के साथ-साथ दूसरों के प्रति भी संवेदनशील बनाता है। जब हम मौन के माध्यम से अपने दुख और कष्टों को समझते हैं, तभी हम दूसरों की पीड़ा को भी गहराई से अनुभव कर पाते हैं । यही मौन हमें करुणामय बनाता है और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का अहसास कराता है। आधुनिक समाज में जहां हर कोई दूसरों से आगे निकलने की होड़ में है, मौन हमें यह सिखाता है कि असली सफलता बाहरी शोर में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति में है । सोशल मीडिया के इस युग में हर कोई अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। ऐसे में मौन हमें यह सिखाता है कि खुद से जुड़े रहना कितना महत्त्वपूर्ण है । हमें यह समझना चाहिए कि हर समय खुद को प्रकट करने से बेहतर है कि हम कुछ पल मौन में बिताएं, खुद से जुड़ें और अपने जीवन की दिशा पर चिंतन करें । दार्शनिक प्लेटो कहा था, ‘अज्ञानी होना कोई अपराध नहीं, लेकिन अज्ञानी बने रहना और सत्य की खोज न करना अपराध है।’ यह मौन हमें सत्य की ओर ले जाने वाला सबसे सशक्त माध्यम है। मौन में हम अपने सवालों के जवाब ढूंढ़ते हैं, अपनी चुनौतियों का सामना करते हैं और अपनी ताकत को पहचानते हैं ।

एक मशहूर उक्ति है- ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’, यानी हमें असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मौन हमें इसी सत्य और प्रकाश की ओर ले जाता है । यह हमें खुद को समझने और दुनिया को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर देता है । आज की दुनिया में, जहां बाहरी दिखावा और शोर ने हमें अपने आप से दूर कर दिया है, मौन ही वह माध्यम है, जो हमें आत्मबोध की ओर ले जाता है । यह न केवल हमारे भीतर की शांति और स्थिरता का स्रोत है, बल्कि यह हमारे जीवन की जटिलताओं को समझने और उनसे निपटने की शक्ति भी देता है । आधुनिक समाज में ज्यादातर लोग खुद को प्रकट करने में लगे हैं, उसमें मौन हमें सिखाता है कि कभी-कभी खुद को न प्रकट करना, बल्कि खुद को सुनना ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। मौन की यह यात्रा हमें खुद से जोड़ती है और हमें अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानने का अवसर देती है । जब हम मौन के साथ समय बिताते हैं, तो हमें अहसास होता है कि असली शक्ति और संतुलन बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। यह मौन हमें न केवल आत्मबोध की ओर ले जाता है, बल्कि हमें दूसरों के प्रति अधिक संवेदनशील और करुणामय भी बनाता है। आज की तेज-तर्रार जिंदगी में हर कोई दौड़ में शामिल है, मौन ही वह ठहराव है, जो हमें सही दिशा दिखाता है । यह एक ऐसी शक्ति है, जो हमें शांति के साथ संतुलित जीवन जीने का मार्ग सिखाती है। मौन हमें सिखाता है कि कभी-कभी सबसे गहरे उत्तर उस मौन में मिलते हैं, जिसे हम अक्सर अनसुना कर देते हैं। दुनिया चाहे कितनी ही शोर-शराबे से भरी हो, असली समाधान और सच्ची शांति हमें मौन की इस गहराई में ही मिलती है। मौन की शक्ति