डॉ.रोहित गुप्ता{आयुर्वेदिक}
हमारी पीठ की इंजिनियरी जबरदस्त है,इसमें लोच है,इसके बोझा उठाने वाले बिंदु सदा सक्रिय रहते हैं । और हमारे पोस्चर को ठीक रखते हैं । एक बार मे एक ही काम करना चाहिए । अक्सर लोग हड़बड़ाहट में यह दोनों एक साथ कर बैठते हैं । और दर्द झेलना पड़ता है । वैसे ज्यादातर मामलों में गर्दन व पीठ का दर्द अपने आप ही मिट जाता है और कोई बड़ी समस्या नहीं बन पाता परंतु अचानक झटका लगने , भारी सामान उठाने , अचानक झुकने या मुड़ने के कारण पीठ में दर्द हो सकता है। रीढ़ की हड्डी में दर्द कारण निवारण और उपचार
रीढ़ की हड्डी का दर्द:-
नई तकनीकी खोजों , शारीरिक व्यायाम की कमी और आरामदायक जीवन – शैली से सिरदर्द,चक्कर आना और पीठ दर्द जैसी कई परेशानियाँ पैदा कर दी हैं। ज्यादातर ऑफिस जाने वाले लोग घंटों कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं वे अपने शरीर को ज्यादा कष्ट नहीं देना चाहते । वहीं दूसरी ओर महिलाएं घरेलू कामकाज के लिए मिक्सर , ग्राइंडर और वाशिंग मशीन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं । इन सब वजह से किसी न किसी प्रकार से दर्द झेलना पड़ता है।
अपने आप रोग पहचाने
अगर आप किसी आदमकद शीशे के सामने खड़े हो कर नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर दें तो अपनी रीढ़ की सही हालत का अंदाजा अपने आप लगा सकते हैं:-
क्या आपके सिर का झुकाव एक ओर रहता है..?
क्या गर्दन के बीचों-बीच बल पड़ता है..?
क्या एक कंधा दूसरे कंधे से ऊँचा है..?
क्या एक नितंब दूसरे नितंब से ऊँचा है..?
क्या एक नितंब दूसरे नितंब की तुलना में उभरा हुआ है..?
क्या आपको अपना सिर, आगे – पीछे और दाएं – बाएँ घुमाने में कठिनाई होती है..?
क्या आपको आगे और पीछे की ओर मुड़ने में तकलीफ होती है..?
क्या आपकी खड़ी हुई मुद्रा, एक ओर को झुकी दिखाई देती है..?
अगर आपने इनमें से किसी एक भी प्रश्न का उत्तर’ हाँ ‘ में दिया है तो इसका अर्थ होगा कि आपकी रीढ़ सही आकार में नहीं है जो अलग अलग अंगों में दर्द पैदा करने की वजह बन सकती है।
सर्वाइकल क्षेत्र में दर्द
सर्वाइकल स्पांडिलायसिस
चालीस साल की उम्र के बाद सर्वाइकल स्पाइन में आने वाले डिजेनेरेटिव बदलाव सवाईकल,स्पांडिलायसिस कहलाते हैं,65 वर्ष के बाद ये बदलाव सभी व्यक्तियों में पाए जाते हैं,यही गर्दन तथा कंधों में दर्द का सबसे बड़ा कारण होता है,इन बदलावों के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है,हिलाने में दिक्कत हो सकती है, या मांसपेशियाँ कमजोर पड़ सकती है, कभी कभी किसी एक ही व्यक्ति में एक या एक से अधिक लक्षण पाए जाते हैं, कई बार इसका संबंध व्यवसाय की प्रकृति से भी होता है, जैसे एक कार के ड्राइवर को लगातार अपनी गर्दन इधर – उधर मोड़नी पड़ती है और ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर सहने पड़ते हैं । इससे उसकी डिस्क के अंदरूनी हिस्से पर चोट पहुँचती है और उसे सहारा देने वाला पदार्थ कम हो जाता है । तनाव, आरामदायक जीवन – शैली और कसरत की कमी से मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं, और मेरुदंड को नुकसान झेलना पड़ता है।
निम्न कारणों से भी गर्दन में दर्द पैदा हो सकता है
जोड़ों के क्षतिग्रस्त लिगामेंट, लिगामेंट के ज्यादा खिंचाव से गर्दन अकड़ जाती है, ऑस्टियोफाइटस भी स्नायु पर दबाव डालते हैं, कई बार यह दर्द स्नायु से फैल कर दूसरे अंगों में भी पहुँच जाता है, अक्सर मरीज गर्दन व कंधे के साथ – साथ छाती की मांसपेशियों में तकलीफ की शिकायत भी करते हैं, नस पर किस जगह से दबाव पड़ रहा है,यह जान कर इलाज किया जा सकता है । इसके कारण अंगों में झनझनाहट या सुन्न होने की स्थिति भी हो सकती है।
सर्वाइकल:-
स्पांडिलायसिस गंभीर रूप ले ले तो यह पीछे की ओर जा कर मेरुदंड रज्जु पर दबाव डाल सकता है, जिससे शरीर के पूरी निचले भाग में कमजोरी या बोध की कमी हो सकती है, कभी-कभी डिस्क दो कशेरुकों के बीच से खिसक कर नाड़ी पर दबाव डालती है जिससे दर्द होने लगता है,एम.आर.आई और सी.टी.स्केन जैसे टेस्टों से ऐसी हालत का पता लगा कर इलाज किया जा सकता है । डिस्क के आगे की ओर उभरने वाली गंभीर स्थितियों में इसे शल्य क्रिया द्वारा हटाया जा सकता है।ताकि स्नायु पर पड़ने वाला दबा कम हो जाए।
सिरदर्द:-
जब सर्वाइकल वर्टिबरे में से होकर गुजरने वाली नाड़ियाँ उत्तेजित हो जाती हैं तो गर्दन में जकड़न और शरीर के ऊपरी अंगों के सुन्न होने की शिकायत हो सकती है । यह सिर दर्द का प्रमुख कारण होता है । वैसे तो अधेड़ उम्र में सिरदर्द की ज्यादा शिकायत होती है । लेकिन आजकल बच्चों में भी यह समस्या पाई जाने लगी है । अनेक ऐसे मामले भी देखे गए हैं जहाँ युवाओं में सिर दर्द व चक्कर आने की शिकायत पाई जाती है । उनके एक्स – रे से भी कुछ पता नहीं चलता । ऐसे में रोगी को मनोरोगी मान कर मनोचिकित्सक के पास भेज दिया जाता है । वह भी रोग का कोई मानसिक कारण नहीं खोज पाता जबकि यह मेरुदंड में होने वाली उत्तेजना की वजह से होता है । कीरोप्रक्टिक पद्धति से इस रोग का इलाज में किया जा सकता है । ब्रेन ट्यूमर , अपच , मानसिक कारणों , दाँत में इंफेक्शन या दिमाग पर असर डालने वाले दूसरे रोगों के कारण भी सिरदर्द हो सकता है
चक्कर आना:-
सर्वाइकल क्षेत्र से निकलने वाली नाड़ियों की उत्तेजना के कारण ही चक्कर आते हैं । इसका इलाज दवाओं से किया जाए तो रक्त के प्रवाह में सुधार होता है , अस्थायी आराम मिलता है परंतु रोग जड़ से नहीं जाता।
माइग्रेन:-
माइग्रेन में रोगी को अचानक तेज सिरदर्द का दौरा पड़ता है । उसे उल्टी करने इच्छा होती है या उल्टी आ जाती है । यह दर्द इतना तेज होता है रोगी जरा सा भड़काने पर उत्तेजित हो जाता है और बाहरी दुनिया से बच कर अपने खोल में छिप जाता है । यह दौरा कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन तक का हो सकता है । माइग्रेन का दवाओं से किया जाने वाला इलाज अधूरा और असंतोषजनक है । क्योंकि इसमें नाड़ियों की उत्तेजना शांत कराने का उपाय नहीं किया जाता जो कि इस रोग की जड़ है ।
थोरेसिक ( छाती ) क्षेत्र में दर्द होना:-
इंटरकोस्टल नसों पर दबाव पड़ने से छाती में तेज दर्द होता है । इसे डॉक्टरी भाषा में इंटरकोस्टल न्यूरोलाजिया ( Intercostal neuralgia ) कहते हैं । मेरुदंड रज्जु और पसलियों के बीच निकलने वाली तंत्रिकाओं में उत्तेजना की वजह से ऐसा होता ऐसी हालत में मरीजों को दर्द निवारक दवायाँ लेने की सलाह दी जाती है , जिनसे थोड़ी देर के लिए दर्द घटता है और दवा का असर मिटते ही हालत वैसी ही हो जाती है । कई बार इसे गलती से हृदय रोग मान कर उसी तरह इलाज कर दिया जाता है । कशेरुकों को सही स्थान पर बिठाने से यह दर्द ठीक हो सकता है । वैसे इस क्षेत्र से जुड़ी तकलीफें कम ही देखने में आती हैं ।
लम्बर ( कमर ) क्षेत्र में दर्द होना:-
कई बार हम पीठ दर्द की वजह आस्टियोआर्थराइटिस , स्लिप डिस्क या मेरुदंड को बैठाते हैं जबकि कारण कुछ और ही होता है । यह दर्द अनेक जटिल कारणों से टो सकता है क्योंकि पीठ में अनेक हड्डियाँ , लिगामेंट , मांसपेशियाँ नाडियाँ और रक्त नलिकाएँ हैं जो*सलाह भी दी जाती है । कभी – कभी गंभीर मामलों में रोगी को पैर का लकवा भी मार सकता है जिससे वह न तो पैर उठा पाता है । और न ही चल पाता है । हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं ।
प्रोलैप्स्ड डिस्क ( prolapsed disc ) के कारण दर्द होना:-
जब भी मरीजों की पीठ में असहनीय दर्द होता है तो वे इसे ‘ स्लिप डिस्क का नाम दे देते हैं । यह एक गलतफहमी है । डिस्क नहीं खिसकती । दबाव पड़ने या झटका लगने के कारण यह एक बिंदु पर बाहर की ओर उभर आती है । यदि आम भाषा में कहें तो यह कमजोर मांसपेशियों के कारण आगे चल कर खिसक सकती है । अचानक झटका लगने के कारण के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ अचानक झटका लगने के कारण डिस्क के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ ( न्यूक्लियस पलपोसस ) बाहरी घेरे को तोड़ कर बाहर आ जाता है जिससे तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ने लगता है । और तेज दर्द होने लगता है । डिस्क एक नरम और भंगुर पदार्थ है जो शरीर में शॉक एब्जावर ( shock absorber ) का काम करती है । चौबीस हड्डियों के ढांचे में डिस्क के 23 सैट होते हैं । केवल भारी सामान उठाने से ही यह तकलीफ नहीं होती । कभी – कभी छोटी सी वजह भी प्रोलैप्स डिस्क का कारण बन जाती है । जमीन से हल्का सा भार उठान , कार से सामान उतारने या तेजी से व्यायाम करने से भी डिस्क में दरार पड़ सकती है । कई बार सट किया लम्बे समय तक ( वर्षों तक ) चल अगर दर्द बना रहता है । यहाँ तक कि एक स्वस्थ व्यक्ति भी इस तरह के दर्द का शिकार हो सकता है । इस समय उसे डॉक्टर , कीरोप्रेक्टर या फिजियोथैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए ।
शियाटिका:-
अधेड़ उम्र में अक्सर जाँघों व टाँगों में सनसनाहट महसूस होती है । इसे ‘ शियाटिका ‘ कहते हैं । शियाटिका इस बात का लक्षण है । कि शरीर के किसी अंग के ठीक काम न करने या चोट लगने की वजह से तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ रहा है या उत्तेजना पैदा हो रही है । शियाटिका स्नायु शरीर में सबसे लंबे और बड़े होते है जो कि नितंबों की दाईं ओर से ले कर , जाँघों के पीछे , पाँवों तक फैले होते हैं । शियाटिका का असर इसकी लम्बाई पर निर्भर करता है वैसे ज्यादातर मामलों में यह जाँघ के पीछे दर्द जलन या झनझनाहट के रूप में महसूस होता है । यह पीठ – दर्द के साथ भी उभर सकता है । जब कोई व्यक्ति लगातार झुक कर काम करता है तो हालत और भी बदतर हो जाती है । यहाँ तक कि खाँसने और छींकने से भी तेज दर्द होता है । गठिया , चोट लगना , कूल्हे का कोई रोग , गर्भधारण के दौरान दबाव पड़ना , सिफलिस , सर्दी लगना व मदिरापान आदि शियाटिका के मुख्य कारण हो सकते हैं । शियाटिका स्नायु पर दबाव पड़ने या चोट लगने से जलन महसूस हो सकती है ।
इन सभी रोगों का इलाज कैसे हो…?
इतिहास:-
किसी भी रोग के सफल इलाज के लिए मरीज की केस हिस्टरी पता होना बहुत जरूरी है । यह जानना जरूरी होता के दर्द कहाँ व किस हिस्से में है , कितने समय से है , दर्द गिरने की वजह से हुआ या किसी दुर्घटना की वजह से आदि । कई बार वजन बढ़ने या किसी तरह के संक्रमण ( इंफेक्शन ) के कारण भी दर्द हो सकता है । जांच – पड़ताल डॉक्टर को देखना चाहिए कि रोगी दोनों ओर ठीक तरह से गर्दन हिला रहा है या नहीं । उसके ऊपरी अंगों में किसी तरह की जकड़न तो नहीं हैं । इस तरह पता चल जाएगा कि दर्द किस हिस्से में है ।
रीढ़ की हड्डी में दर्द का इलाज
दर्द किस हिस्से में है,कितने समय से हो रहा है,मांसपेशियों की दशा और movement पर विचार करने के बाद ही इलाज शुरू किया जाता है । कुछ इलाज नीचे बताए गए हैं।
♦️कमर दर्द के लिए एक्यूपंचर एक बेजोड़ इलाज है । इस पद्धति मे मांसपेशियों को आराम देने के लिए कई तरह की । सुईयँ इस्तेमाल की जाती हैं । छोटे बच्चों के लिए एक्यूपंचर इस तरह होता है , जिससे उन्हें दर्द का एहसास न हो ।
♦️कई बार लोकल एनस्थीसिया जाइलोकेन (1%) देने से भी मांसपेशियों को आराम मिल जाता है । वैसे बिगड़े हुए मामलों में ही इसका प्रयोग होता है इस पद्धति को ‘ न्यूरल थैरेपी कहते है ।
♦️गुनगुने आयुर्वेदिक तेल से की गई मालिश से भी शरीर खुलता है और दर्द भी नस्ट होता है ।
♦️कीरोप्रेक्टर भी समस्या को हल कर सकता है बशर्ते अनाड़ी हाथों से न किया जाए । यह पद्धति ‘आस्टियोपैथी’ कहलाती है।
♦️ओजोन थैरेपी में ओजोन का इंजेक्शन दिया जाता है । बहुत गंभीर मामलों में जब रोगी गर्दन हिलाने की हालत में न हो और कंधे की मांसपेशियाँ अकड़ कर दर्द करने लगे तो एक्यूपंचर , गर्म तेल की मालिश , लोकल एनस्थीसया और ओजोन थैरेपी को मिला कर इलाज करना पड़ता है । जब एक – दो दिन में मांसपेशियों को आराम आ जाए तो सभी जोड़ों को सही जगह आराम से बिठाना चाहिए । गलत तरीके से इलाज करने पर परेशानी बढ़ भी सकती है । रोगी को इलाज के लिए कितनी बार आना होगा यह उसके दर्द पर निर्भर करता है, इसके बाद रोगी को दोबारा डॉक्टर के पास दिखाने अवश्य जाना चाहिए और लगातार एक-दो सप्ताह तक गर्म आयुर्वेदिक तेल से हल्की मालिश करनी चाहिए ।
रीढ़ की हड्डी में दर्द के घरेलू उपचार
♦️सोंठ- सोंठ का चूर्ण या अदरक का रस , 1 चम्मच नारियल के तेल में पकाकर फिर इसे ठंडा करके दर्द कमर पर लगभग 15 मिनट तक मालिश करें । इससे रीढ़ की हड्डी में दर्द , कमर दर्द में आराम मिलता है।
♦️सहजन- सहजन की फलियों की सब्जी खाने से रीढ़ की हड्डी में दर्द में फायदा होता है ।
♦️मेथी- मेथी दाने के लड्डू बनाकर 3 हफ्ते तक सुबह – शाम सेवन करने और मेथी के तेल को दर्द वाले अंग पर मलते रहने से पूर्ण आराम मिलता है
♦️अजवाइन- अजवाइन को 1 पोटली में । रखकर उसे तवे पर गर्म करें । फिर इस पोटली से कमर को सेंकें इससे आराम होगा
♦️छुहारा- सुबह-शाम 1-1 छुहारा खायें । इसके सेवन से रीढ़ की हड्डी में दर्द व कमर दर्द मिट जाता है । रीढ़ की हड्डी में दर्द कारण निवारण और उपचार