कोयले का गहराता संकट

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देश में गहराता जा रहा कोयले का संकट ज्यादातर बिजली कोयले से ही बनती है,देश में कोयले का संकट गहराता जा रहा है. ये बात केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने कही है. कोयले के संकट गहराने का असर सीधा-सीधा बिजली के उत्पादन पर पड़ेगा, क्योंकि देश में ज्यादातर बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता है. देश में इस वक्त 135 पॉवर प्लांट ऐसे हैं जहां कोयले से बिजली का उत्पादन होता है.कोयले के उत्पादन में भारी कमी देश में कोयले के उत्पादन में कमी से इसका स्टॉक लगभग खत्म होने के कगार पर है. लिहाजा बिजली का उत्पादन करने वाली आधे से अधिक प्लांट्स अलर्ट पर रखे गए हैं. बिजली मंत्री ने कहा कि उन्हें पता नहीं है कि अगले पांच-छह महीने उन्हें चैन मिलेगा कि नहीं क्योंकि कोयला संकट अभूतपूर्व है. आरके सिंह ने कहा कि पिछले एक सप्ताह से हालात बेहद खराब हैं. देश में 40 से 50 गीगावाट बिजली का उत्पादन करने वाले थर्मल पावर प्लांट्स में सिर्फ तीन दिन के कोयले का स्टॉक बचा हुआ है.बिजली उत्पादन के लिए अग्रणी मानी जाने वाली एनटीपीसी पर कोयले का संकट गहराता जा रहा है. सभी इकाइयों को मिला कर रोजाना करीब 15 हजार पांच सौ मीट्रिक टन कोयले की खपत हो रही है.इकाइयों को उनकी उत्पादन क्षमता के अनुसार चलाने पर तीस हजार मीट्रिक टन कोयले की खपत होती है.


कोयले कमी के 4 कारण –

अर्थव्यवस्था में सुधार आते ही बिजली की मांग काफी बढ़ गई.

सितंबर में कोयला खदानों पर ज्यादा बारिश होने से कोयले का उत्पादन प्रभावित हुआ.

विदेशों से आने वाले कोयले की कीमत में बढ़ोतरी होना.

मॉनसून की शुरुआत से पहले कोयले का स्टॉक न करना.

देश में सिर्फ चार दिनों के कोयले का स्टॉक बचा हुआ है. पिछले कुछ वक्त से कोयले की किल्लत ने सरकार को परेशान कर रखा है. कोयले की कमी की वजह से बिजली सेक्टर पर बड़ी आफत आ सकती है और देश को भारी ऊर्जा संकट से जूझना पड़ सकता है. बिजली मंत्री आर के सिंह ने ‘ इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि इस महीने के आखिर में देश के पावर स्टेशनों में सिर्फ चार दिन का स्टॉक बचा था. हाल के कुछ वर्षों में ऐसा कोयला संकट नहीं देखा गया था. अगस्त में देश के पावर स्टेशनों में औसतन 13 दिनों के कोयला का स्टॉक था. देश को इस संकट की स्थिति से सामान्य हालत में आने में छह महीने से भी अधिक का वक्त लग सकता है.देश में कोयले से बिजली उत्पादन क्षमता 203 गीगावाट है. हमारी 70 फीसदी बिजली कोयले से पैदा होती है. अगले कुछ सालों में देश में बिजली की मांग काफी बढ़ने वाली है. कई केंद्रीय मंत्रालय इस वक्त कोल इंडिया और एनटीपीसी के साथ मिलकर कोयला खदानों का उत्पादन बढ़ाने के उपायों पर विचार कर रहे हैं. फिलहाल कोयला खनन कंपनियां उन्हीं कंपनियों को पहले कोयला देंगी, जिन्होंने बकाये का भुगतान कर दिया है.कोयले की कमी और अन्य कारणों से करीब 10 यूनिट बंद पड़ी है. बिजली खपत भी 20 करोड़ यूनिट रोजाना से बढ़कर 24 करोड़ यूनिट हो गई है. ऐसे में आने वाले दिनों में बिजली संकट बढ़ सकता है.कोल इंडिया की तरफ से कोयले की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने की वजह से सूरतगढ़ थर्मल की 250 मेगावाट की 5 इकाइयां बंद हैं. जबकि छबड़ा थर्मल की 250 मेगावाट की 2 इकाइयों के लिए कोल इंडिया काफी समय से कोयले की आपूर्ति नहीं कर रहा है.

मंत्रालय के डराने वाले आंकड़े


– विगत सन 2019 में अगस्त-सितंबर में बिजली की खपत 106.6 बिलियन यूनिट्स हुई थी, जबकि इस साल अगस्त-सितंबर में 124.2 बीयू की खपर हुई. इसी दौरान कोयले से बिजली का उत्पादन 2019 के 61.91% से बढ़कर 66.35% हो गया. अगस्त-सितंबर 2019 की तुलना में इस साल के इन्हीं दो महीनों में कोयले की खपत 18% बढ़ गया.

– मार्च 2021 में इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की कीमत 60 डॉलर प्रति टन थी, लेकिन सितंबर-अक्टूबर में इसकी कीमत 200 डॉलर प्रति टन बढ़ गईं. इससे कोयले का इंपोर्ट कम हो गया.

मॉनसून सीजन में कोयले पर चलने वाली बिजली की खपत बढ़ गई जिससे बिजली घरों में कोयले की कमी आ गई. 1 अक्टूबर 2021 की स्थिति के अनुसार, 135 प्लांट ऐसे हैं जहां 3 दिन से भी कम का कोयला बचा है. 50 प्लांट ऐसे हैं जहां 4 से 10 दिन का स्टॉक है और सिर्फ 13 प्लांट ही ऐसे हैं जहां 10 दिन से ज्यादा का स्टॉक है.इसके अलावा पावर प्लांटों मे जो कोयला उपलबध है पानी बरसांत के कारण गीला होने की वजह से बिजली उत्पादन मे काफी रुकावटें आ रही है।