विश्व पर्यावरण दिवस-2025 

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विश्व पर्यावरण दिवस-2025 
विश्व पर्यावरण दिवस-2025 
राजू यादव
राजू यादव

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि बिगत आठ वर्षों में राज्य में 210 करोड़ पौधे लगाए गए हैं, जिनमें से 75 प्रतिशत पेड़ जीवित हैं। वहीँ योगी सरकार के अधिकारीयों से जब पूछा जाता है 210 पेड़ लगाने के लिए कितने क्षेत्रफल की आवश्कता होगी तो वह बगले झाकने लगते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस-2025 

विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय दिवस है। कोरिया गणराज्य विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की मेज़बानी करेगा, जिसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना है। 2025 में विश्व पर्यावरण दिवस प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर केंद्रित होगा। ग्रह को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करना सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें जलवायु कार्रवाई, सतत उत्पादन और उपभोग, समुद्र और महासागरों की सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र की मरम्मत और जैव विविधता को बनाए रखना शामिल है।

भारत देश में सदा से ही सड़कों किनारे वृक्षारोपण का प्रचलन रहा है। लेकिन आज टोल वसूलने वाली सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कहने को हम .कागजों में नदी, तालाब के संरक्षण की बात करते हैं तो पेड़ लगाकर धरती को बचाने के नारे भी खूब उछालते हैं पर सच्चाई कुछ ओर ही है। जो पेड़ लगते भी है उनकी देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं है। जब तक वृक्षारोपण के बाद की जिम्मेवारी तय नहीं होगी पर्यावरण संरक्षण का कोई अर्थ नहीं होगा। जबं स्वच्छ वायु, स्वच्छ पानी की कल्पना अनियोजित विकास की अवधारणा की भेंट चढ़ रही हो तो शहरीकरण की चपेट में आने से प्रकृति और नैसर्गिकता को कैसे रोका जाए इस प्रश्न पर नीति -निर्धारकों के मौन को आखिर अपराध नहीं तो और क्या माना जाए?

इस बात से शायद ही कोई असहमत हो कि बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को आमंत्रित करती है। परंतु इस पर कोई ठोस कदम उठाते हुए स्वयं को राष्ट्रभक्त घोषित करने वालों को तीव्र प्रतिक्रिया का तो अन्यों को अपने वोटबैंक गवांने का भय रहता है। इसलिए वे मौन रहने में भी अपनी भलाई समझते हैं। ऐसे में विकास की अवधारणा का भटक जाना स्वाभाविक है क्योंकि विकास से कई गुणा अधिक उनके उपभोग करने वाले लगातार बढ़ते रहते हैं।

लगभग हर वर्ष कहा जाता है कि इस साल ‘रिकार्डतोड़ गर्मी रही’। हमे पेड़ पौधो को बचाने की चिंता नहीं। जो पेड़ हमारे लालच से बचे भी है तो तथाकथित विकास ने हर फुटपाथ को पूरी तरह सीमेंट से ढक दिया गया है तो वहां लगे पेड़ पौधों को पानी कहां से मिलेगा इसकी चिंता किसी को नहीं। पाताल में समाते भूजल तक पेड़ की जड़े पहुंच नहीं पाती अतः जरा सी तेज हवा या आंधी उसका काल बन जाती है। ऐसे में पर्यावरण का क्या हो सकता है समझना मुश्किल नहीं।

दुनिया में सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ। भारत में भी नदियों की अविरल धारा और उसके तट पर मानव-जीवन फलता- फूलता रहा है। हमने नदियों को देवता माना पर आज क्या दशा है हमारी नदियों की? गंदे नाले में बदल चुकी यमुना नदी को नदी कहे भी तो आखिर कैसे? जबकि निर्मल यमुना के नाम पर हजारों करोड़ रूपये बहाने के बाद भी स्थिति ‘जस की तस’ रहने पर किसी को अपराध बोध न होना क्या विकास के गलत मॉडल का दुष्परिणाम नहीं है?

यदि ईमानदारी से विश्लेषण करे तो समझा जा सकता है कि विकास के जिस माडल पर हम आत्ममुग्ध हैं कि इसने हाईवे, माल, मल्टीप्लेक्स एवं संचार व परिवहन के द्रुतगामी साधन दिये परंतु किस कीमत पर? हमारा पर्यावरण बिगाड़ा, सांस्कृतिक मूल्य नष्ट हुए। समाज को बाजार बनाने वाली इस व्यवस्था ने चकाचौध तो अवश्य दी है पर तेजी से बढ़ती असमानता की कीमत पर। इसे विकास कहे या विकास का मुखौटा जिसने कुछ साधारण लोगों को बेशुमार दौलत के स्वामी बनाया है पर सामान्यजन तो साफ हवा पानी से भी वंचित है।

स्पष्ट है कि वास्तविक विकास के लिए केवल सरकारे बदलना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए व्यवस्था को भी संसाधनों के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा तभी विकास का वास्तविक लाभ देश के आम आदमी तक पहुंच सकेगा। जिस समाज में गरीबों की बहुत बड़ी संख्या मौजूद हो वहां किसी भी योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है। नये नगर बसाने का काम पूरी तरह निजी बिल्डरों के हवाले न करते हुए पर्यावरण संरक्षण को कड़ाई से लागू करने पर बल दिया जाये। अब समय आ गया है जब संसाधनो के दुरपयोग व दुष्परिणामं की जिम्मेवारी तय की जाए। क्या यह उचित नहीं होगा कि सभी मंत्रालयों का दायित्व उस क्षेत्र के विशेषज्ञ को सौंपा जाए। वर्तमान सरकार से देश को बहुत सी आशाएं हैं। एक झटके में देश की मुद्रा बदलने वालों को व्यवस्था बदलने की चुनौती स्वीकारनी चाहिए अन्यथा बहुमूल्य संसाधन बर्बाद होते रहेंगे और हम विकास के दावों (झूठे) के बावजूद किसी गड्ढ़े अथवा भीड़ के जाम में फंसे रहेगे।

धरती आज रो रही, नदियाँ अपना जल खो रही।
वृक्ष काटे जा रहे, बेमौसम की बारिश हो रही।
हवाओं का रुख बदल रहा, स्वार्थ मानव में मचल रहा।
चिड़ियों का घर उजाड़ कर, जंगलों को उखाड़ कर।
जंगल में रहने वाले जीवों की ना समझी भावनाएँ।
पर मना रहे हैं विश्व पर्यावरण दिवस।

धरती की पुकार और हमारी ज़िम्मेदारी

हमारी धरती सिर्फ एक ग्रह नहीं, हमारा घर है। हमने उसे मां कहा है, लेकिन व्यवहार उपभोक्ता जैसा किया है। अब समय है कि हम केवल ‘धरती माता की जय’ बोलने की जगह धरती माता की रक्षा में खड़े हों। हमें जंगलों, नदियों, पहाड़ों, पशु-पक्षियों और पूरे जैव विविधता तंत्र को बचाना होगा।

“धरती खाली-सी लगे, नभ ने खोया धीर..! अब तो मानव जाग तू, पढ़ कुदरत की पीर..!”

परिवहन और उद्योग में बदलाव जरूरी

भारत और विश्व के लिए अब समय है कि वह अपने उद्योग और परिवहन व्यवस्था को पर्यावरण-अनुकूल बनाए। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए सौर, पवन और अन्य हरित ऊर्जा स्रोतों की ओर अग्रसर होना होगा। वाहनों में इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाना, रेलवे और सार्वजनिक परिवहन को सुलभ और स्वच्छ बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह बदलाव न केवल प्रदूषण कम करेगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव भी घटाएगा। वायु प्रदूषण से हर साल दुनिया भर में लगभग 70 लाख मौतें होती हैं। यह आंकड़ा जलवायु संकट की गंभीरता को दर्शाता है।

जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण का मसला नहीं है, यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौती भी है। यदि हमने पर्यावरण को अनदेखा किया, तो कृषि, स्वास्थ्य, रोजगार, और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्र भी संकट में आ जाएंगे। आज की सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि हम विज्ञान, तकनीक और परंपरागत ज्ञान के समन्वय से ऐसी नीतियां बनाएं जो टिकाऊ विकास को संभव बनाएं। स्कूलों में जलवायु शिक्षा हो, गाँवों में हरित रोजगार के अवसर हों, शहरों में स्वच्छ परिवहन और स्वच्छ ऊर्जा की व्यवस्था हो। विश्व पर्यावरण दिवस-2025