क्या योगी खिला पाएंगे कमल..?

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क्या योगी खिला पाएंगे कमल..?
क्या योगी खिला पाएंगे कमल..?

भारतीय जनता पार्टी के लिए उप चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर है. अयोध्या की मिल्कीपुर सीट भाजपा की नक् का सवाल है. उपचुनाव में मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री सभी को अपनी ताकत को दिखाना होगा. उपचुनाव अग्नि परीछा हैलोकसभा चुनाव के बाद रिक्त हुई विधानसभा की 10 सीटों पर उपचुनाव होना है. इनमें फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, कुंदरकी, करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी और सीसामऊ सीट शामिल हैं. सपा के चार विधायकों के सांसद और एक विधायक को सजा होने के चलते पांच सीटें खाली हुई हैं, तो भाजपा कोटे के तीन विधायकों के सांसद बनने के चलती रिक्त हुईं हैं. इसके अलावा एक सीट आरएलडी के विधायक के सांसद बनने, तो एक सीट निषाद पार्टी के विधायक के भाजपा से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है. इस तरह पांच सीटें सपा कोटे की हैं, तो पांच सीटें भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के खाते की हैं. ऐसे में समझा जा सकता है कि उपचुनाव कितना अहम माना जा रहा है. क्या योगी खिला पाएंगे कमल..?

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के जीत का जिम्मा भाजपा की कोर कमेटी ने संभाल लिया है. मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में तय किया गया है कि संगठन और सरकार दोनों मिलकर उपचुनाव के जीत की इबारत लिखेंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री संगठन को दो-दो सीटों का टास्क दिया है. भाजपा के टॉप-5 नेता खुद उपचुनाव का मोर्चा संभालेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि योगी-केशव-पाठक-चौधरी और धर्मपाल में सबसे चुनौती वाली सीट किसे सौंपी गई है.

यूपी उपचुनाव की तैयारी के लिए सीएम योगी ने अपने 30 मंत्रियों की एक कमेटी बनाई थी, लेकिन अब ये तय हुआ कि ये जिम्मेदारी अब सरकार और संगठन के टॉप-फाइव नेता संभालेंगे. सीएम योगी आदित्यनाथ को कटेहरी और मिल्कीपुर विधानसभा सीट की जिम्मेदारी मिली है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मंझवा, तो बृजेश पाठक को सीसामऊ और करहल सीट की कमान सौंपी गई है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को कुंदरकी और मीरापुर, तो संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को गाजियाबाद और खैर सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

मुख्यमंत्री योगी क्या खिला पाएंगे कमल?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की मिल्कीपुर और अंबेडकरनगर की कटेहरी विधानसभा की जिम्मेदारी मिली है. यह दोनों ही सीटें 2022 में सपा ने जीती थीं. कटेहरी से लालजी वर्मा विधायक चुने गए थे, तो मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद जीते थे, लेकिन अब दोनों ही सपा विधायक सांसद बन गए हैं. सपा कोटे वाली इन दोनों ही सीटों पर कमल खिलाने का जिम्मा सीएम योगी को सौंपा गया है. मिल्कीपुर सीट के सियासी वजूद में आने के बाद से भाजपा सिर्फ दो बार ही जीत सकी है, जिसमें एक बार 1991 और दूसरी बार 2017 में जीती है. कटेहरी सीट भाजपा सिर्फ एक बार 1991 में जीत सकी है.

सपा और बसपा के लिए कटेहरी और मिल्कीपुर सीटें सियासी तौर पर काफी मुफीद मानी जाती हैं. भाजपा के लिए मुश्किल माने जाने वाली दोनों सीटों का जिम्मा सीएम योगी को मिला है. मिल्कीपुर और कटेहरी सीट पर भाजपा को जिताने का ताना बाना सीएम योगी खुद बुनेंगे. इसके अलावा इन दोनों ही सीटों के सियासी समीकरण को साधने का चैलेंज है. मिल्कीपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और दलित वोटर सबसे ज्यादा हैं. सामान्य वर्ग के साथ ओबीसी वोटर निर्णायक हैं, तो मुस्लिम भी अहम रोल में हैं. इसी तरह कटेहरी सीट पर दलित वोटर सबसे ज्यादा हैं, लेकिन मुस्लिम, ब्राह्मण, कुर्मी, निषाद वोटर भी बड़ी संख्या में हैं. जातीय समीकरण के लिहाज से भाजपा के लिए काफी मुश्किल भरी सीट मानी जाती है. ऐसे में देखना है कि सीएम योगी कैसे भाजपा के लिए जीत की इबारत लिखते हैं.

अवधेश प्रसाद के लोकसभा सांसद बनने के बाद अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट खाली हो गई है, जहां उपचुनाव होने हैं. अवधेश प्रसाद 2022 में मिल्कीपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. अयोध्या लोकसभा सीट की हार का हिसाब बीजेपी मिल्कीपुर सीट से बराबर करना चाहती है. इसके लिए बीजेपी यह विधानसभा सीट किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है, जिसके लिए मजबूत उम्मीदवार की तलाश भी शुरू कर दी गई है. पार्टी ऐसे उम्मीदवार को उतारने की फिराक में है, जो मिल्कीपुर सीट के सियासी समीकरण में फिट बैठता हो और जीतकर हार का हिसाब बराबर कर सके.आजादी से अब तक के इतिहास में मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर में यह तीसरा उपचुनाव होगा. मिल्कीपुर विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद ही अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुई है, उससे पहले तक यह सामान्य सीट हुआ करती थी. मिल्कीपुर विधानसभा सीट 1967 में वजूद में आई, जिसके बाद कांग्रेस, जनसंघ और सीपीआई, बीजेपी, बसपा और सपा यहां जीत हासिल करने में कामयाब रहीं. इस सीट पर सबसे ज्यादा सपा-लेफ्ट 4-4 बार जीतने में सफल रही. कांग्रेस तीन बार, बीजेपी दो बार, जनसंघ और बसपा एक-एक बार जीतने में सफल रही हैं.

केशव को फूलपुर और मझवां का टास्क

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के उपचुनाव की कमान सौंपी गई है. 2022 में फूलपुर सीट भाजपा जीतने में सफल रही है, तो मझवां सीट उसकी सहयोगी निषाद पार्टी ने जीती थी. इन दोनों ही सीटों के विधायक अब सांसद बन चुके हैं, जिसके चलते अब उपचुनाव होने हैं. फूलपुर सीट पर भाजपा 2017 और 2022 में जीतने में सफल रही थी, तो मझवां सीट पर 2017 में भाजपा जीती थी. 2022 में निषाद पार्टी के विधायक चुने गए थे. मझवां सीट पर सपा का खाता कभी नहीं खुला है, जबकि फूलपुर में 2012 में उसका विधायक चुना गया. फूलपुर और मझवां विधानसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए केशव प्रसाद मौर्य को जिम्मेदारी सौंपी गई है. केशव प्रसाद मौर्य खुद भी फूलपुर से सांसद रह चुके हुए हैं और इसी इलाके से आते हैं. फूलपुर में दलित और यादव मतदाता अहम हैं, लेकिन कुर्मी यहां पर तुरुप का इक्का साबित होते रहे हैं. ब्राह्मण और मुस्लिम बड़ी संख्या में हैं, जिसके चलते सपा जीत दर्ज करती रही है. मझवां सीट के समीकरण देखें तो ब्राह्मण, मल्लाह, कुशवाहा, पाल, दलित और ठाकुर वोटर अहम हैं, जिन्हें साधकर ही जीत की इबारत लिखी जाती रही है. 2002 से 2017 तक बसपा का कब्जा रहा है और उसके बाद 2017 में भाजपा और 2022 में निषाद पार्टी ने सीट जीती थी.भाजपा ने केशव मौर्य के जरिए ओबीसी वोट को साधकर अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखने की रणनीति बनाई है.

बृजेश पाठक को सबसे मुश्किल टास्क


उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को कानपुर की सीसामऊ और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट की कमान सौंपी गई है. ये दोनों ही सीटें भाजपा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती हैं. सीसामऊ विधानसभा सीट पर सपा लगातार तीन बार से जीत रही है और इरफान सोलंकी विधायक थे. 1996 के बाद से भाजपा यह सीट जीत नहीं सकी. करहल सीट सिर्फ एक बार सपा हारी है. इस तरह से दोनों ही सीट सपा की मजबूत सीटों में मानी जाती है और भाजपा के लिए काफी मुश्किल भरी रही हैं. इस तरह से बृजेश पाठक को उपचुनाव में सबसे मुश्किल टास्क सौंपा गया है, जहां पर उन्हें कमल खिलाने की जिम्मेदारी है. करहल सीट से 2022 में अखिलेश यादव विधायक रहे हैं, जिन्होंने सांसद बनने के बाद इस्तीफा दे दिया है.

सीसामऊ सीट के समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, उसके बाद ब्राह्मण, फिर दलित, कायस्थ, वैश्य, यादव और सिंधी हैं. मुस्लिम वोटर एक लाख के करीब हैं, तो 50 हजार ब्राह्मण हैं. इरफान सोलंकी मुस्लिम वोटों के साथ-साथ अन्य जातियों का वोट जोड़कर जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. करहल सीट सपा की परंपरागत सीट रही है, जहां यादव वोटर एक लाख से भी ज्यादा हैं, उसके बाद पाल और शाक्य वोटर हैं. इसके अलावा दलित और ठाकुर वोट भी ठीक-ठाक हैं. इस तरह से बृजेश पाठक को सबसे मुश्किल भरी सीट देकर उनकी चुनौती को बढ़ा दिया है. इन दोनों सीट पर भाजपा को जितना बृजेश पाठक के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है.

मिल्कीपुर विधानसभा सीट के जातीय समीकरण को देखें तो सबसे ज्यादा 65 हजार यादव मतदाता है. इसके बाद पासी 60 हजार, ब्राह्मण 50 हजार, मुस्लिम 35 हजार, ठाकुर 25 हजार, गैर-पासी दलित 50 हजार, मौर्य 8 हजार, चौरासिया 15 हजार, पाल 8 हजार, वैश्य 12 हजार के करीब है. इसके अलावा 30 हजार अन्य जातियों के वोट हैं. इस तरह मिल्कीपुर विधानसभा सीट के सियासी समीकरण को देखें तो यादव, पासी और ब्राह्मण तीन जातियों के वोटर अहम भूमिका में है. सपा इस सीट पर यादव-मुस्लिम-पासी समीकरण के सहारे जीत दर्ज करती रही है तो बीजेपी सवर्ण वोटों के साथ दलित वोटों को साधकर जीतने में सफल रही है. मिल्कीपुर सुरक्षित सीट होने के बाद से दो बार सपा जीती है और एक बार बीजेपी ने अपना कब्जा जमाया था. सपा से अवधेश प्रसाद जीतते रहे हैं तो 2017 में बीजेपी से बाबा गोरखनाथ चुने गए थे. 2022 के चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद को 103,905 वोट मिले थे और बीजेपी के गोरखनाथ को 90,567 वोट मिले थे. सपा यह सीट 13,338 वोटों के जीतने में कामयाब रही थी.

धर्मपाल सिंह की होगी अग्निपरीक्षा


उत्तर प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है. 2022 में दोनों ही सीटें भाजपा जीतने में सफल रही थी. गाजियाबाद सीट पर 2007 से भाजपा का कब्जा है, तो खैर सीट पर 2017 से भाजपा जीत रही है. इन दोनों ही विधानसभा सीट पर जाट वोटर अच्छी खासी संख्या में हैं और आरएलडी के साथ गठबंधन होने के चलते भाजपा की स्थिति मजबूत मानी जा रही है. गाजियाबाद में वैश्य, दलित, जाट और मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं, तो खार सीट पर जाट, दलित और मुस्लिम जीत और हार की भूमिका में हैं. भाजपा के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के कंधों पर भाजपा की जीत के सिलसिले को बरकरार रखने का चैलेंज है.

भूपेंद्र चौधरी को मिला कठिन चैलेंज


भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को मुजफ्फरनगर की मीरापुर और मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट की जिम्मेदारी मिली है. भाजपा के लिहाज से दोनों ही सीटें मुश्किल भरी मानी जाती हैं. कुंदरकी सीट पर भाजपा महज एक बार चुनाव जीत सकी है, जबकि मीरापुर सीट के सियासी वजूद में आने के बाद भाजपा सिर्फ एक बार 2017 में जीती है. 2022 में कुंदरकी सीट सपा जीतने में कामयाब रही है, तो मीरापुर सीट आरएलडी ने सपा के समर्थन से जीती थी. आरएलडी से विधायक बने चंदन चौहान अब सांसद चुन लिए गए हैं. इस सीट पर आरएलडी उपचुनाव लड़ने की तैयारी में है, तो कुंदरकी सीट पर भाजपा किस्मत आजमाएगी.

कुंदरकी सीट के सियासी समीकरण देखें तो 65 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, उसके बाद दलित और अन्य ओबीसी मतदाता हैं. इसके अलावा राजपूत वोटरों की संख्या 30 हजार के करीब है. मीरापुर सीट के समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा मुस्लिम हैं. एक लाख दस हजार मुस्लिम और 55 हजार के करीब दलित वोटर हैं. इसके बाद जाटों की संख्या 25 हजार, तो गुर्जर 20 हजार हैं, जबकि प्रजापति और अन्य ओबीसी के वोट भी ठीक-ठाक हैं. इस तरह से दोनों ही मुस्लिम बहुल सीट होने के चलतेभाजपा के लिए काफी मुश्किल भरी सीट है.ऐसे में देखना है कि भूपेंद्र चौधरी किस तरह से भाजपा और अपने सहयोगी के जीत का फॉर्मूला तय करते हैं.