11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर भाजपा सरकार का आचरण न केवल अलोकतांत्रिक रहा अपितु इतिहास का एक काला अध्याय भी बन गया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भाजपा नेतृत्व के इशारे पर जो व्यवहार किया गया वह कतई संविधान सम्मत नहीं हो सकता। लोकनायक की जयंती की अवमानना भाजपा को भारी पड़ेगी।सच तो यह है कि भाजपा न तो स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों का सम्मान करती है और नहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखती है। भाजपा लोकसभा चुनावों के बाद से ही घबड़ाई और बौखलाई हुई है। विवकेशून्य जैसा व्यवहार कर वह महापुरूषों का भी अपमान करने में कोई संकोच नहीं करती है। भाजपा का यह विद्वेष भाव उसे ही ले डूबेगा। भाजपा की आंखों में क्यों अखरती है..?
जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र का राजधानी लखनऊ में निर्माण समाजवादी सरकार ने किया था। यह केन्द्र अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर बना है। यह सबसे ऊंची बिल्डिंग है जिसमें एक बड़ा कांफ्रेंस हाल, 200 कमरे, 12 सौ की पार्किंग, स्विमिंग पूल, कैफे भी है। इसकी छत पर हेलीपैड है जहां हेलीकाप्टर उतर सकते हैं। जेपीएनआईसी की विशेषता यहां का समाजवादी संग्रहालय है जहां लोकनायक की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका प्रदर्शित है। इस भव्य जेपीएनआई में जयप्रकाश जी की आदमकद प्रतिमा है जहां उनकी जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है।
जिस जेपीएनआईसी बिल्डिंग और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुष पर देश-दुनिया को गर्व है उस महापुरुष की स्मृति में बनी बिल्डिंग भाजपा की आंखों में क्यों अखरती है? विगत वर्ष भीअखिलेश यादव को यहां जयप्रकाश नारायण जी की मूर्ति पर माल्यार्पण करने जाने से रोका गया था। इस बार अखिलेश यादव ने महानवमी और विजयदशमी पर्व की पवित्रता और गंभीरता को देखते हुए प्रतिरोध की जगह संयम का प्रदर्शन किया और घर के बाहर ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण की एक मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किये। समाजवादी कार्यकर्ता हमेशा अन्याय के विरूद्ध संघर्ष के लिए तैयार रहता है। जेपी की जयंती के अवसर पर उनकी मूर्ति पर पुष्पांजलि की अनुमति न देना अलोकतांत्रिक कृत्य है। समाजवादी अन्याय और इस तरह की कार्यवाहियों के विरूद्ध संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। भाजपा सरकार के उकसाने की कार्रवाई से हर तरफ उनकी ही थू-थू हो रही है।
कैसी विडम्बना है कि जैसे सन् 1942 की अगस्त क्रांति में जयप्रकाश जी हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर फरार हुए थे। उसी तरह तमाम सरकारी प्रतिरोध को पार करते हुए अखिलेश यादव ने जेपीएनआईसी का मुख्य गेट फांदकर अंदर जाकर जयप्रकाश जी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया था। इस वर्ष भी लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण करने से रोककर भाजपा सरकार ने दिखा दिया कि वह स्वयं अराजक है, उत्पात उसका मूल चरित्र है और संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना उसे नहीं आता है।
भाजपा कुछ बनाती तो है नहीं, बने-बनाये समाजवादी सरकार के कामों को अपना बताकर बेचती है और बर्बाद करती है। समाजवादी सरकार में बने पलासियों माल और किसान बाजार को भाजपा सरकार ने बेच दिया। अब जेपीएनआईसी बिल्डिंग को भी बेचना चाहती है। इसीलिए वह जनता को गुमराह करके बहाने बना रही है। 2027 के विधानसभा चुनाव में जनता भाजपा की लूट, झूठ, और भ्रष्टाचार की दुकान बंद करने के लिए संकल्पित है। भाजपा की आंखों में क्यों अखरती है..?