लोगों के मन में आक्रोश क्यों..?

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लोगों के मन में आक्रोश क्यों..?
लोगों के मन में आक्रोश क्यों..?
अमर बहादुर मौर्य

लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में जो घटनाक्रम हुआ है वह बहुत ही निंदनीय है। संसद भवन के अंदर पहुंचकर इस तरह की घटना को अंजाम देना यह सुरक्षा के लिहाज से बहुत बड़ी चूक है, लेकिन विचार यह भी किया जाना चाहिए की इस तरह का भाव लोगों के मन में आया क्यों। इसके पीछे का कारण कहीं लोकतांत्रिक तरीके से किया जा रहे। आंदोलन की अनदेखी तो नहीं है। कहीं न कहीं सरकारी संस्थाओं और सरकारी व्यवस्थाओं में हो रही लापरवाही एक बड़ा कारण बनता जा रहा है जो युवाओं के मन में आक्रोश पैदा कर रहा है और उसको लेकर वे उग्र हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में हुए आंदोलन को अगर देखा जाए तो उसके परिणाम पर सवाल उठते रहे हैं। आंदोलन कर रहे लोगों को प्राण तक गंवाने पड़े अपराधिक घटनाओं का सामना करना पड़ा। आंदोलन कर रहे लोगों को तमाम यातनाओं का भी सामना करना पड़ा पुलिस प्रशासन की झड़प झेलनी पड़ी। लखीमपुर में आंदोलन कर रहे लोगों को गाड़ी से कुचल दिए जाने की घटना जग जाहिर है और परिणाम भी उनके मांग की विपरीत रहा। किसान आंदोलन रहा हो, चाहे वह महिला खिलाड़ियों के शारीरिक शोषण संबधित आंदोलन रहा हो, चाहे वह सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ उत्तर प्रदेश 69000 बेसिक शिक्षक भर्ती आरक्षण घोटाले का मामला हो, चाहे वह अग्निवीर सेना भर्ती का आंदोलन रहा हो। लोगों के मन में आक्रोश क्यों..?

उपरोक्त सभी मामलों में लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन में शामिल रहे युवक, युवतियों, जवान, किसान आदि को अपेक्षाकृत न्याय नहीं मिल पाया। इन सभी आंदोलन को देखने के बाद कोई संगठन, कोई समूह या कोई व्यक्ति सरकारी संस्थाओं को निरंकुश या तानाशाह बताते हुए उग्र रूप धारण कर सकता है। ऐसे में सरकार, सरकारी संस्थाओं को किसी भी समस्या का समय रहते समाधान कर लेना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार का युवाओं में आक्रोश उत्पन्न न होने पाए। उत्तर प्रदेश 69000 शिक्षक भर्ती मामले में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी लगभग 550 दिन से अपनी नियुक्ति की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं कई बार उन्होंने उग्र रूप भी धारण किया और विधानसभा तक कूच करने का प्रयास भी किया। बावजूद इसके सरकार और शिक्षा विभाग अपनी हठधर्मिता पर अड़े हुए हैं किसी निष्कर्ष की ओर नहीं बढ़ रहे। ऐसे में किसी अप्रिय घटना के घट जाने पर कौन जिम्मेदार होगा आंदोलन कर रहे अभ्यर्थी जो 550 दिन से निवेदन कर अपनी नियुक्ति की मांग कर रहे हैं या फिर सरकार।

इस भर्ती मामले में स्वयं सरकार स्वीकार भी कर चुकी है आरक्षित वर्ग के साथ अन्याय हुआ है। सामाजिक न्याय की मांग कर रहे इन नौजवानों की आवाज सुनी क्यों नहीं जा रही। क्या किसी उपरोक्त ऐसे ही घटना का इंतजार किया जा रहा है? यदि सरकारी संस्थाएं लापरवाही छोड़कर संवैधनिक व्यवस्थाओं का पालन करते हुए जिम्मेदारी पूर्ण कार्य करना शुरू करें तो संसद भवन जैसी घटना भविष्य में देखने को न मिले। बेरोजगारी, शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, मंहगाई आदि को लेकर नेताओं के द्वारा किये गये वादे भी आंदोलन के कारण बनते है, नेताओं और राजनितिक दलों को इसपर विचार करना चाहिए। किसी आंदोलन को विपक्ष की शाजिस बताकर उसे नज़र अंदाज नहीं किया जाना चाहिए। लोगों के मन में आक्रोश क्यों..?