पटेल व कोली समुदाय पर क्यों टिकी है निगाह…?

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गुजरात चुनाव में किस जाति का कितना वोट, पटेल व कोली समुदाय पर क्यों टिकी है निगाह…?

लौटनराम निषाद

गुजरात के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बहुत तेजी से बदल रहे हैं। 1 मई, 1960 को गुजरात की स्थापना के बाद प्रारंभिक डेढ़ दशक में गुजरात के राजनीतिक जीवन में जाति, धर्म, संप्रदाय और समूह का इतना प्रभाव नहीं था, जितना 80 के दशक से लेकर हाल की परिस्थितियों में हुआ है। 1981 और 1985 में आरक्षण के खिलाफ मुहीम, 1994 में केशूभाई पटेल और बीजेपी की पारी, शंकरसिंह वाघेला कीहजुरिया-खजुरिया और राष्ट्रीय जनता पार्टी की सरकार राजनीतिक परिवर्तन के समसामयिक उदाहरण हैं।2002 में गोधराकांड के बाद नरेंद्र मोदी का लगभग 14 साल तक गुजरात में शासन और अब राजनीतिक, आर्थिक, और शिक्षित रूप से सबल होने के बावजूद आरक्षण की मांगकर सत्ताधारी बीजेपी के ही खिलाफ खड़े हुए उनके ही वफादार माने जाने वाले करीब-करीब 50 लाख पटेल मतदाताओं की आरक्षण को लेकर नाराजगी से भाजपा को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।कांग्रेस अभी से पटेल मतदाताओं को अपनी ओर करने के जुगत में लगी हुई है।सबसे अधिक 1 करोड़ के आसपास कोली मतदाता हैं,पर राजनीतिक दल इन्हें उतना भाव नहीं देते जितना कि पाटीदारों को।भाजपा की सरकारों में तो कोली समाज को हासिये पर कर दिया गया।2001 से 2020 तक सौराष्ट्र के ताकतवर कोली नेता पुरुषोत्तम भाई सोलंकी को महत्वहीन मत्स्य विभाग का राज्यमंत्री बनाकर कोली समाज के साथ दोयमदर्जे का बर्ताव किया गया। आखिर गुजरात में पटेल समुदाय जो एक समय आरक्षण के खिलाफ उठ खड़ा था वही इस बात की मांग में क्यों लगा है? पाटीदारों की सोच में ये 360 डिग्री का बदलाव क्यों आया? इस पूरी कहानी को समझने के लिए 80 के दशक के फ़्लैश बैक में जाना जरूरी है।

1981 में आरक्षण के खिलाफ जो आंदोलन था, वो मुख्यरूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिल रहे आरक्षण की नीतियों के खिलाफ था।इस आंदोलन की शुरुआत मेडिकल के छात्रों द्वारा शुरू की गई थी।बाद में दूसरे प्रोफेशनल कोर्स के छात्र भी इससे जुड़े। 1981 के इस आंदोलन में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के पक्ष में जिना भाई दरजी, माधवसिंह सोलंकी, मधुसुदन मिस्त्री और प्रबोध रावल आए। हालांकि, कुछ समय बाद ये आंदोलन पिछड़ी जातियों और उच्च वर्णों के बीच सामाजिक संघर्ष के रूप में परिवर्तित हो गयी। अन्य पिछड़े वर्ग की 63 जातियों को भी जस्टिस राणे कमीशन की तर्ज पर आरक्षण देने का फैसला हुआ।इस सामाजिक संघर्ष का राजनीतिक लाभ माधवसिंह सोलंकी ने एसटी, एससी के साथ अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण बढ़ाकर लिया।काका कालेककर कमीशन से अलग गुजरात में पहले जस्टिस राणे कमीशन और बाद में जस्टिस बक्शी कमीशन की अध्यक्षता में अन्य पिछड़े वर्गों का कमीशन बनाकर राज्य की 82 जातियों को आरक्षण का फायदा देने का राज्य सरकार ने संकल्प लिया। इस बात का प्रभाव 1984 के चुनावों में इतना ज्यादा रहा कि सोलंकी ने गुजरात विधानसभा चुनावों के इतिहास में सबसे ज्यादा 149 सीटें प्राप्त की जो अब तक का रिकॉर्ड है। 28 प्रतिशत आरक्षण देने को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार करना ही सोलंकी सरकार को जबरदस्त फायदा पहुंचा गया।

1984 में मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों को माधवसिंह सोलंकी सरकार द्वारा दिए गए 10 से लेकर 28% आरक्षण के खिलाफ आंदोलन छेड़ा गया। मजेदार बात ययह रही कि, 1981 और 1985 दोनों ही आरक्षण विरोधी आंदोलनों में पाटीदार या पटेल समुदाय आगे रहा।शंकरभाई पटेल नामक एक अध्यापक ने आरक्षण की इन नीतियों के खिलाफ अहमदाबाद से मोर्चा संभाला था। करीब 30 साल बाद, इसी पटेल समुदाय का एक नेता- हार्दिक पटेल अपने समुदाय के गरीब और पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया,पर भाजपा सरकार ने लाठी,गोली के अलावा कुछ नहीं दिया।हार्दिक पटेल इस समय कांग्रेस के नेता के तौर पर काम कर रहे हैं।इस आंदोलन का गुजरात के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा।यहां तक कि इस मामले को सही तरह से सुलझा नहीं पाने की वजह से गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप से आंनदीबेन पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था।बात यहां रुक जाती तो ठीक था, लेकिन इस दौरान जूनागढ़ के ऊना में दलितों पर अत्याचार के स्वरूप जिग्नेश मेवानी और अन्य पिछड़े वर्ग का आरक्षण बचाये रखने की मंशा लिए ठाकोर समुदाय के एक और युवा नेता अल्पेश ठाकोर उठ खड़े हुए।युवा नेताओं की इस तिकड़ी के कारण गुजरात का 2017 का चुनाव काफी रसप्रद बना हुआ था और कांग्रेस की सरकार बनने के पूरे आसार बन गए थे।पर,कांग्रेस की गुटबाजी आयी हुई सत्ता को गंवा दिया।इस बार कांग्रेस काफी संजीदा है।

गुजरात में जाति समीकरण-

कुल आबादीः 66056202 (2017 के अनुसार)
जाति/ धर्म प्रतिशत आबादी
ब्राह्मण 1.5 995133
बनिया 1.5 995133
राजपूत 5 3331111
पाटीद
(कडवा, लेउवा) 12 7961038
दलित 7 4343956
आदिवासी 15 9951335
ओबीसी 40 26536894
मुस्लिम 9 5970801
अन्य(अल्पसंख्यक/
जैन,पारसी,क्रिश्चियन) 3 1990267
अन्य(सोनी,लोहाना)​ 6 3980534
कुल 100 66056202

राहुल गांधी का कोलियों के साथ 3 संवाद कार्यक्रम हो गया होता तो बन गयी होती कांग्रेस की सरकार-


राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि पिछले विधानसभा में भाजपा ने फर्जी जाति की राजनीति करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कोरी की बजाय कोली प्रचारित कर 24 प्रतिशत की बड़ी आबादी वाले कोली जाति को झांसे में ले लिया।यही नहीं नापाक राजनीति को जानते हुए भी राष्ट्रपति की गरिमा को दागदार करते हुए रामनाथ कोविंद कोली मछुआरा समाज की महिलाओं से राखी बंधवाने गुजरात चले गए।इस गन्दी राजनीति से काफी कष्ट था और कोरी व कोली के मुद्दे पर भाजपा को नङ्गे करने के लिए गुजराज के बड़े कांग्रेसी नेताओं से सम्पर्क किया।पर,उधर से सकारात्मक जवाब न मिल पाने के कारण गुजरात प्रवास के कार्यक्रम नहीं बना पाया और भाजपा राष्ट्रपति की फर्जी जाति बताकर कोली निषाद मछुआरों का वोट ले लिया।सौराष्ट्र के भावनगर या जामनगर,दक्षिणी गुजरात के सूरत या बलसाड़ व उत्तर गुजरात के अहमदाबाद या पालन में राहुल गांधी जी के साथ कोली मछुआरों व निषादों का संवाद कार्यक्रम हो गया होता तो भाजपा 50 सीट भी नहीं सीट पाई होती।इस बार पहले से ही गुजरात मे टीम के साथ गुजरात मे डेरा डाला जाएगा और भाजपा की इस तरह की गन्दी राजनीति का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।उनका कहना है कि राष्ट्रपति कोरी जाति के हैं और कोरी का कोली से कोई जातिगत,वंशगत व सांस्कृतिक सम्बन्ध नहीं है।कोरी वीवर/जुलाहे होते हैं और कोली सागरपुत्र मछुआरे।