अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?

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अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?
अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?

अशोक भाटिया

राजस्थान में 12 दिसंबर 2023 मंगलवार का वो दिन जब एक पर्ची से राजस्थान की सियासत पलट गई। ये वो दिन था जब राजस्थान में भाजपा सत्ता में लौटी और भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया। दिल्ली से केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को ऑब्जेर्वर बनाकर जयपुर भेजा गया था जिन्होंने भजनलाल शर्मा के नाम की पर्ची वसुंधरा राजे को थमाई थी लेकिन इससे पहले वसुंधरा राजे और राजनाथ सिंह के बीच एक होटल में मुलाकात भी हो चुकी थी। फिर भी पर्ची पर लिखे भजनलाल शर्मा के नाम को पढ़ते वक्त वसुंधरा राजे चौंक गई थीं क्योंकि पर्ची पर बतौर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का नाम लिखा था।तब से ही वसुंधरा के सियासी करियर को लेकर कयासों का दौर चलता आया है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री  चुनाव के बाद से ही साइलेंट रहीं। वसुंधरा अब अचानक मुखर हो गई हैं। अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?

उन्होंने सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर के सम्मान में आयोजित अभिनंदन समारोह के दौरान कहा कि ओम माथुर चाहे कितनी ही बुलंदियों पर पहुंच गए लेकिन इनके पैर हमेशा जमीन पर ही रहते हैं। इसीलिए इनके चाहने वाले भी असंख्य हैं वरना कई लोगों को पीतल की लौंग क्या मिल जाती है, वे खुद को सर्राफ समझ बैठते हैं। अब  वसुंधरा राजे की इस टिप्पणी ने नई चर्चा को जन्म दे दिया है। वसुंधरा की इस टिप्पणी को कोई मुख्यमंत्री  भजन से जोड़कर देख रहा है तो कोई विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके मदन राठौड़ से।

यह टिप्पणी किसके लिए थी, यह तो वसुंधरा ही जानें लेकिन बात इसे लेकर भी हो रही है कि चुनाव के बाद से साइलेंट चल रहीं वसुंधरा राजे अचानक मुखर क्यों हो गईं, क्यों तेवर दिखा रही हैं? राजनीतिक विश्लेषक बताते है  कि वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा का पावर सेंटर हुआ करती थीं लेकिन पिछले करीब एक साल में ही परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली कि वह हाशिए पर चली गई हैं। सत्ता परिवर्तन का असर कहें या क्या, जो नेता-विधायक पहले वसुंधरा की परिक्रमा करते नजर आते थे, अब दूरी बना रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी नेताओं के व्यवहार में खुद को लेकर आए बदलाव को लेकर निराशा बता रही है। सरकार में नहीं तो संगठन में ही सही या फिर कोई और जिम्मेदारी, महारानी अब तेवर दिखा रही हैं तो उसके पीछे अपना खोया सियासी वैभव पाने की कोशिश ही है।

एक पहलू यह भी है कि वसुंधरा राजे 71 साल की हो चुकी हैं। भाजपा  की अघोषित नीति 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट देने से परहेज कर मार्गदर्शक मंडल में डाल देने की रही है। राजस्थान के अगले चुनाव तक वसुंधरा भाजपा  में एक्टिव पॉलिटिक्स से रिटायरमेंट की इस आयु सीमा तक पहुंच चुकी होंगी। वसुंधरा राजे के सामने अब आगे भी एक्टिव पॉलिटिक्स में प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती है। 

वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी सियासत में हैं। दुष्यंत झालावाड़-बारां सीट से पांचवी  बार के सांसद हैं। भाजपा  ने जब मुख्यमंत्री  के लिए भजनलाल शर्मा का नाम आगे किया और इसका प्रस्ताव खुद वसुंधरा से ही रखवाया गया, ऐसा कहा जाने लगा कि पार्टी ने उन्हें दुष्यंत को लेकर जरूर कोई बड़ा आश्वासन दिया होगा। वसुंधरा की राजनीति का मिजाज भी ऐसा नहीं रहा है जिससे यह मान लिया जाता कि वह समर्पित सिपाही की तरह आलाकमान का हर फैसला ऐसे ही मान लेंगी। लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बन गई लेकिन दुष्यंत खाली हाथ ही रहे। पांच  बार के विधायक दुष्यंत मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाने से भी वंचित ही रहे। अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?

वसुंधरा राजे सिंधिया के तेवरों के पीछे यह भी एक फैक्टर हो सकता है कि दुष्यंत का लोकसभा चुनाव में टिकट पक्का रहे। दुष्यंत पांच  बार के सांसद हैं और अब जब पार्टी वसुंधरा की परछाई से बाहर निकलने की तरफ बड़े कदम बढ़ा चुकी है, पूर्व मुख्यमंत्री  को यह चिंता भी सता रही होगी कि कहीं पांच  बार की एंटी इनकम्बेंसी का हवाला देकर पार्टी उनके बेटे का टिकट ही न आगे काट दे। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा  ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बेटे और यूपी की पीलीभीत सीट से सांसद रहे वरुण गांधी का टिकट काट दिया था।

लोकसभा चुनाव नतीजों में दिखी उम्मीद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले दम पूर्ण बहुमत के आंकड़े को पार करने वाली भाजपा  हालिया लोकसभा चुनाव में 240 सीटें ही जीत सकी। दोनों ही चुनावों में राजस्थान की सभी 25 सीटें जीत क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा  को इस बार 11 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सीटों पर पार्टी के कमजोर प्रदर्शन को भी वसुंधरा के लिए आपदा में अवसर की तरह बताया जा रहा है।

वसुंधरा राजे ने 3 अगस्त 2024 को भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष कार्यक्रम में कहा, “राजनीति का दूसरा नाम उतार-चढ़ाव है, हर इंसान को इस दौर से गुजरना पड़ता है। हर व्यक्ति को 3 चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है- पद, कद और मद। पद और मद स्थाई नहीं है लेकिन कद स्थाई है जो आपके काम से बनता है और आपके काम से ही लोग आपको याद करते हैं। पद का मद हो जाता है, तो कद अपने आप कम हो जाता है।

16 अगस्त को राजे ने उदयपुर में जैन समाज के एक कार्यक्रम में कहा, “किसी का दिल तोड़ना भी हिंसा है,अब जीओ और जीने दो के नारे की जगह, जीओ और जीने मत दो, जैसा बोओगे-वैसा ही काटोगे।‘ पूर्व मुख्यमंत्री  ने कहा कि जैन धर्म का सिद्धांत जीओ और जीने दो है, लेकिन कई लोगों ने इसे उलट दिया है। जीओ और जीने मत दो, यानी खुद तो जीओ, लेकिन दूसरों को जीने मत दो। ऐसा करने वाले वाले भले ही थोड़े समय खुश हो जाएं, पर वे हमेशा सुखी नहीं रह सकते क्योंकि जैसा बोओगे-वैसा काटोगे।

अब सवाल ये है कि वसुंधरा राजे के लगातार आ रहे ये तमाम बयान आखिर किस तरफ इशारा कर रहे हैं। राजे की भाजपा आलाकमान से नाराजगी अब तक जारी है या फिर अब राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की तरफ राजे का ईशारा है। बहरहाल, भाजपा खेमा इसे बड़े नेताओं के बीच लंबे समय बाद हंसी मजाक का हिस्सा बता रहा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने राजस्थान की सरकार को साधते हुए कहा है कि वसुंधरा राजे ने अपना निशाना मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से पर साधा है क्योंकि राजस्थान में जिस तरह सरकार काम कर रही है ये जग जाहिर है।

वसुंधरा राजे के बयान के बाद अब कांग्रेस हमलावर हो गई है। कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि वसुंधरा राजे का बयान ने प्रदेश सरकार को आईना दिखाने का काम किया है और यह बात वसुंधरा राजे ने भी साबित कर दी। उन्होंने कहा कि आपने कोई सोने का लौंग नहीं पहना है। 9 महीने में पीतल का लौंग पहना है। खाचरियावास ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री  वसुंधरा के बयान से साबित हो गया कि जनता दो पाटों के बीच में पिस रही है। अचानक क्यों मुखर हुईं वसुंधरा राजे..?