जब कब तब अब…

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जब कब तब अब...
जब कब तब अब...
हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित

जल पवित्र करता है। ऋग्वेद में जल माताएं हैं। सृष्टि का जन्म जल से हुआ है। नदियां भी माताएं हैं। हमारे पूर्वज वैदिक काल से ही नदियों की उपासना करते आए हैं। जल भारतीय चिंतन के पांच महाभूत तत्वों में एक है। यह जीवन जगत् व सृष्टि के प्रत्येक गोचर प्रपंच का मूलाधार है। पूर्वजों की दृष्टि जल की हर एक गतिविधि पर थी। ऋग्वेद के ऋषि का ध्यान वर्षा पर है। मेघों पर है। उनके गहरे श्याम वर्ण पर है। विद्युत की लपझप पर है। वर्षा से प्रसन्न गीत गाते मेंढकों पर है। नदी प्रवाहों पर है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अधिष्ठान जल आश्रित है। नदियां मनुष्य की आवश्यकता रही हैं। वैदिक पूर्वजों ने नदियों के गीत गाए हैं। सरस्वती उनकी प्रिय नदी है। वे इसे नदीतमा कहते हैं। सिंधु प्रवाह के गर्जन और रफ्तार पर पूर्वजों की रुचि है। ऋग्वेद वाले ऋषि विश्वामित्र का नदी से संवाद हुआ था। ऋषि ऊपर तक बहती नदी से नीचे और धीरे बहने की स्तुति करते हैं। उन्हें नदिया के पार जाना है। नदी कहती है, ”हम वैसे ही झुके जाते हैं, जैसे कोई माता स्तनपान कराने के लिए बच्चों पर झुक जाती है।” अथर्ववेद के ऋषि नदी प्रवाह को ध्यान से सुनते हैं, कहते हैं, ”हे सरिताओं! आप नाद करते बहती हैं, इसीलिए आपका नाम नदी है। जब कब तब अब…

नदी से गपशप करने का अपना मजा है। मैं गंगा मैया से बतियाया हूं, ”माता आपकी कृपा कैसे प्राप्त होती है? आप काफी समय से उद्विग्न हैं। मैं आपको कैसे प्रसन्न करूं?” गंगा ने कहा, ”मैंने लाखों लोगों, जीवों को जीवन रस दिया है। आप लोगों ने इसके बदले मुझे शव दिए। गंदगी दी, कूड़ा करकट दिया। नाले बहाए। आप यही पाप बंद करें। मैं प्रसन्न रहूंगी।” यमुना महाभारत और भागवत की घटनाओं की साक्ष्य हैं। राधा और गोपाल के प्रेम को गोपियों की सुंदर देहयष्टि को यमुना ने देखा है। यमुना जल उसी समय प्रदूषण से काला हो गया था। कालिया नाग जल प्रदूषण का दैत्य था-‘डेमन आफ वॉटर पॉल्यूशन‘। जैसे ऋग्वेद में वृत सूखे का दानव है-‘डेमन आफ ड्रॉट‘। इन्द्र उसका वध करते हैं। इन्द्र वृतहंता हैं। कृष्ण प्रदूषण के दैत्य कालिया नाग का वध करते हैं। मैंने अपनी सई नदी से भी तमाम बातें की हैं। लंदन में टेम्स नदी के तट पर दो बार गया हूं। नील नदी का भी दरश परस किया है। नदी देखते ही मैं चहक उठता हूं। पूर्वज नदी प्रेमी थे। उन्होंने आकाश में प्रकाशमान दूधिया गलियारे को प्रीतिवश आकाश गंगा कहा था।

वर्षा का नाद आनंदित करता है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक सिनेमा तक वर्षा नाद का आकर्षण है। एक गीत में ’टिप टिप बरसा पानी/पानी ने आग लगाई’ है। दूसरे गीत में ’बारिश का बहाना है, जरा देर लगेगी’ बताकर समय की छूट मांगी गई है। एक लोकप्रिय सिने गीत में भी विश्वामित्र वाली स्तुति दोहराई गई है, ’मेरे सैया जी उतरेंगे पार/नदिया धीरे बहो।’
मैंने गंगा तट स्थित उन्नाव जिला केन्द्र के महाविद्यालय से उच्च शिक्षा पाई और प्राइमरी शिक्षा सई नदी किनारे स्थित अपने गांव लउवा के स्कूल में। गंगा पुण्याहवाचन की नदी हैं और सई श्रम तप की। यह छोटी नदी सीतापुर के जलाशय से निकलती है। हरदोई आती है। थोड़ा ठिठक कर लखनऊ के पश्चिमी हिस्से से बनी होकर बाबा रामेश्वर धाम को स्पर्श करती है। फिर उन्नाव जिले के दरेहटा, गोमापुर, बेलौरा, चैपई, नीमटीकर गांवों को अपने दुलार प्यार से नहलाती दुलराती है। नदी के कम गहराई वाले स्थान में उतरकर पार करने में सुविधा रहती है। इसलिए यहां एक गांव का नाम उतरौरा है। इसके बाद उन्नाव जिले का गांव जबरेला और लखनऊ का गांव जबरौली है। जान पड़ता है कि जबरेला और जबरौली के बीच बहती नदी दोनों की प्रीति बढ़ाती है। फिर सोहो, रामपुर, चिलौली, तिसंधा और फिर हमारा गांव लउवा। इसी के पास भवरेश्वर शिव का ऐतिहासिक मंदिर है। बताते हैं कि औरंगजेब के लड़ाकों ने मूर्ति ध्वस्त करने का असफल प्रयास किया था। लाखों श्रद्धालु प्रति सोमवार शिव का नीराजन, उपासन व रुद्राभिषेक करते हैं। शिवरात्रि के पर्व पर लाखों की भीड़ जुड़ती है। बड़ी सुंदर जगह है यह मंदिर। गंगा से 4 किलोमीटर की यह दूरी अम्मा मुझे पैदल चला कर ले जाती थीं।

भवरेश्वर शिव मंदिर की सीढ़ियां सई नदी तक विस्तृत है। दर्शनार्थी दर्शन के पूर्व नदी घाट पर आचमन करते हैं। मान्यता है कि जल पवित्र करता है। अनेक श्रद्धालु स्नान भी करते हैं। इस दिव्य मंदिर में तीन जिले मिलते हैं। लखनऊ की सीमा मंदिर से। मंदिर की एक सीमा उन्नाव से व एक सीमा रायबरेली से। मजेदार संगम है। प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती मिलती हैं, तो तीर्थराज। सई नदी तट पर तीन जिले मिलते हैं, लेकिन नदी का पानी विषाक्त है। मंदिर की शिव मूर्ति पर किए गए जल अभिषेक का पानी एक छोटी सी नाली से नदी में जाता है। श्रद्धालु इस जल का आचमन करते हैं, लेकिन सई नदी का पानी काला है। मछलियां मर जाती हैं। स्नान के बाद त्वचा में जलन होती है।

मंदिर के दर्शनार्थियों में ’बड़े-बड़े लोग’ होते हैं। यह राजधानी से 38 किलोमीटर दूर है। लेकिन जल प्रदूषण रोकने के प्रयास शून्य हैं। नदी जल प्रदूषण का जिम्मेदार एक नाला है बांक। असरेंदा के प्रधान वरिष्ठ नेता लल्लन सोनी ने बताया, ”बांक नाला लखनऊ की दुबग्गा मंडी के निकट से निकला है। लखनऊ की एलडीए कॉलोनी, औरंगाबाद, बिजनौर होते हुए सीजीपीजीई के बगल से नाला निकला है। पीजीआई का हजारों टन अपशिष्ट नाले में बहाया जाता है। फिर मोहनलालगंज, तारापुर, अगईया, रघुनाथखेड़ा, रंजीतखेड़ा, अहिरवार होते हुए सई नदी में मिल जाता है। यह नाला नदी का दुश्मन है। हम सब ने बड़ा विकास कर लिया है। सोशल मीडिया की चैट हैं। तेज रफ्तार गाड़ियां हैं। शील अश्लील से विस्थापित हो गया है, लेकिन जीवन के आधार जल स्रोतों का संरक्षण नहीं कर सके हैं। नहीं कर रहे हैं।

सावन के दिनों में सई नदी में बाढ़ आती थी। अब नहीं आती। तब बाढ़ का पानी गांव में घुस आता था। रामविलास व देवतादीन हमारे मित्र कांटे में मछली फंसाते थे। मुझे इस खेल में मजा आता था। एक बार हमारी डोरी में एक सुंदर मछली फंस गई। तड़पती मछली हमारी ओर टकटकी लगाकर देख रही थी। उसकी कातर तड़प हमारे भीतर तक पैठ गई। मैंने मछली को पानी में वापस करने का निर्णय किया। दोनों मित्रों ने कहा इसे खाएंगे। हमारा झगड़ा हो गया। शायद मैं सही था। भयंकर जल प्रलय से एक मछली ने मनु महाराज व सृष्टि बीजों की रक्षा की थी। मनु के वंशज उसी मछली के वंशजों को मारते हैं।

अम्मा गंगा सहित सभी नदियों के स्नान पर जोर देती थीं। उन्होंने हाथ पकड़ कर मंदिर तट पर नदी में डुबकी लगवाई थी। मैं स्नान से दूर भागता रहा हूं। शीत ऋतु में फिर पानी गर्म कर देती थीं। अब भी नहाने में मेरी रुचि नहीं। अम्मा ने वचन लिया था कि बिना स्नान भोजन नहीं करोगे। सो स्नान नियमित है। गए 15 साल से देख रहा हूं कि वाटर पार्क खुल गए हैं। मैं जब यह आलेख लिख रहा हूं, तब मेरे सामने के अखबार में वाटर पार्क का विज्ञापन है भारी भरकम। पीने, आचमन के लिए जल संकट और हमारे मित्र वाटर पार्क में स्नान के आनंदी हैं।
गए शुक्रवार को हमारे मित्र जनसंघ के समय के सहयोगी हेमराज सोनी का आज असामयिक निधन हो गया। वे हमसे 11-12 साल छोटे थे। आर्य समाज के स्थानीय मंत्री थे। मुझे गहन शोक हुआ है। उनकी आत्मा को मुक्ति मिले।

’चेजिंग्स दि मॉन्क्स शैडो’ पेंगुइन प्रकाशन की चर्चित पुस्तक है। पुस्तक में निशि शरण ने चीनी यात्री ह्वेन सांग की एक यात्रा का वर्णन किया है। चीन और भारत के मार्ग का सुंदर वर्णन पुस्तक में है। पुस्तक ज्ञानवर्धक तो है ही। सुरुचिपूर्ण भी है। भारतीय पुलिस सेवा के सुयोग्य अधिकारी विक्रांत वीर ने मुझे यह पुस्तक कुछ समय पहले भेंट की थी। उनके प्रति धन्यवाद। पुस्तक की प्रशंसा आउटलुक, टाइम्स आफ इंडिया और टेलीग्राफ जैसे अखबारों ने भी की। जब कब तब अब…