जब शिव हर श्वास में बसते हैं

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जब शिव हर श्वास में बसते हैं
जब शिव हर श्वास में बसते हैं
अजीत सिंह
अजीत सिंह

सावन… बाबा भोलेनाथ का महीना है। जहाँ घटाएं घिरती हैं, वहीं हर दिल ‘हर हर बम बम’ से भर जाता है। यह महीना केवल बारिश का नहीं, यह महीना है श्रद्धा, भक्ति और आत्मसमर्पण का। सावन सुनते ही सबसे पहले भोले बाबा याद आते हैं आज से हजार साल पहले भी पुरखों को सावन में बाबा ही याद आते थे। आज से हजार साल बाद भी सावन में बच्चों को बाबा ही याद आएंगे बाकी सबकुछ बदल जाता है। सबकुछ बदल जायेगा, बस सावन का भोले बाबा से सम्बंध नहीं बदलेगा जब जब सावन आएगा यह धरती हर हर बम बम चिल्लाने लगेगी। जब शिव हर श्वास में बसते हैं

अभी दस बीस साल पहले तक सावन में रिमझिम फुहारें पड़ती थीं एक दिन शुरू हो जाय तो दस पन्द्रह दिन बरसती थीं बूंदे खेत तो छोड़िये, पक्के मकानों की दीवारें भी सलसला जाती थीं। चारो ओर पसरी हुई हरियाली और भीगा हुआ मन आदमी का कलेजा तर हो जाता था। साहब… “तेरी दो टकिये की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए” जैसे गीत यूँ ही तो नहीं लोक में बस गए थे और अब..? बदल गया न…? कितने लोगों के लिए सावन लाखों का है…? पिछले पंद्रह बीस वर्षों में जन्मी पीढ़ी ने न सावन की रिमझिम बारिश देखी है, न ही प्रेमी जोड़े महसूस कर पाते होंगे प्रकृति के उस सजावट को,जब सावन लाखों का लगने लगता है कितना कुछ बदल गया न…? पिछली पीढ़ी की लड़कियों महिलाओं के लिए सावन झूले का महीना भी होता था सावन चढ़ते ही बगीचों के ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर झूले टांग दिए जाते, और हप्ता बीतते बीतते प्रवासी पक्षियों के जैसे उतर आतीं गाँव भर की समूची ब्याहता बेटियां उसके बाद आम, जामुन, झूला, कजरी कुछ बचा है क्या..?

जब शिव हर श्वास में बसते हैं

जब मन प्रकृति के संगीत में खो जाता है,
जब सावन की बूंदें आत्मा को छूने लगती हैं,
जब हर धड़कन से “हर हर महादेव” की गूंज निकलती है-
तब समझो, शिव हर श्वास में बसने लगे हैं।
वे कहीं बाहर नहीं — भीतर की नमी, मौन, और सरलता में बसते हैं शिव।

कब किसी को कजरी के चार बोल तक याद नहीं 8-10 हजार महीने की तनख्वाह पर किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने या मॉल में कपड़ा सहेजने के काम को जॉब मानने वाले जमाने में झूला और कजरी की फुर्सत किसे है भाई..? अब प्रवासी चिड़िया नहीं उतरती सावन में छुट्टी ही नहीं मिलती… हाँ, कुछ बचा है तो जल चढ़ाने का हुलास बचा है कांवर उठा कर सौ सवा सौ किलोमीटर दौड़ जाने का साहस बचा हुआ है। बोलबम के नारे बचे हैं, कांवरियों के गीत बचे हैं, और बची है श्रद्धा वह कभी समाप्त नहीं होगी। इस देश के कंकण कंकण में शंकर हैं न..! सावन बाबा का महीना था, है और हमेशा रहेगा… सावन चढ़ गया जितना सम्भव हो निभा लीजिये। एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाने वाले देव को भी प्रसन्न न कर सके तो क्या ही किया..? सनातन परिवार के सबसे बूढ़े देव तो यूँ ही आशीर्वाद बरसाते रहते हैं अपने बच्चों पर इतना सहज, इतना सुन्दर संसार में और कुछ नहीं…।

शिव को पाना नहीं होता, उन्हें पहचानना होता है। कैलाश दूर नहीं, अगर भीतर शिव का निवास हो। त्रिशूल बाहर नहीं, जब हम अपने तीन दोषों (काम, क्रोध, मोह) को वश में करें। और गंगा सिर पर नहीं, जब विचारों की पवित्र धारा भीतर बहती रहे। शिव तब हमारे होते हैं, जब हम स्वयं को छोड़ने लगते हैं। और जब वह हर श्वास में बस जाएँ-तो फिर खोजने की कोई ज़रूरत नहीं रहती। जब शिव हर श्वास में बसते हैं