इलेक्टोरल बांड का मामला मोदी सरकार के लिए सर दर्द हो गया है। एसबीआई ने इस मामले में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए जब सुप्रीम कोर्ट से जून तक की मोहलत मांगी तो वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसे कोर्ट की अवमानना बताते हुए एक याचिका दाखिल कर दी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है और इस मामले की सुनवाई सोमवार से शुरू होगी। जानकारों का मानना है कि मामला शुरू होने के बाद एसबीआई के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कड़ी कार्रवाई कर सकता है । यदि ऐसा हुआ तो चुनाव से पहले इलेक्टरल बॉन्ड के सभी खरीददारों का नाम सार्वजनिक करना पड़ेगा। ऐसे में किस राजनीतिक दल को किस उद्योगपति ने इलेक्टोरल बांड खरीद कर दिया है इसका खुलासा हो जाएगा। सरकार यह नहीं चाहती है कि उसका किसी उद्योगपति के साथ संबंध चुनाव से पहले जाहिर हो जाए। इलेक्टोरल बांड का क्या होगा..?
इलेक्टोरल बांड की जानकारी देने में 136 दिन क्यों…..?
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष दिनेश कुमार खरा को मोदी सरकार ने रिटायरमेंट के बाद 10 महीने का सेवा विस्तार दिया है। एसबीआई के प्रबंध निदेशक अश्विनी कुमार तिवारी को भी 2 साल का सेवा विस्तार मोदी सरकार ने दिया है। इनके अतिरिक्त दो प्रबंध निदेशक और है जिन्हें 2 साल का सेवा विस्तार दिया गया है। एक महिला प्रबंध निदेशक स्वाति गुप्ता है जो भाजपा से जुड़ी रही हैं और दिल्ली एमसीडी की पार्षद भी रहीं है। स्वाति गुप्ता कह रही हैं की इलेक्टोरल बांड की जानकारी हम 136 दिनों बाद दे पाएंगे यानी की चुनाव के बाद। इससे साफ है की स्टेट बैंक मोदी और भाजपा को इलेक्टोरल बांड का जो 16000 करोड़ का खेल हुआ है बेनकाब होने से बचा रहे हैं। क्या इन लोगों को इसीलिए यह सेवा विस्तार दिया गया है कि ये लोग छुपा सके कि 16000 करोड़ के इलेक्टोरल बांड घोटाले में कौन सी पार्टी और कौन से उद्योगपति शामिल है? और यह कारनामा एसबीआई के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी कर रहे हैं। नहीं तो जो बैंक हर दिन 23000 से अधिक डिजिटल अकाउंट खोलता है उसे 22000 इलेक्टोरल बांड की जानकारी देने में 136 दिन क्यों चाहिए…?
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बड़े फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध और असंवैधानिक बताकर रोक लगा दी है। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर पिछले साल 31 अक्टूबर से सुनवाई चल रही थी जिस पर अब फैसला आ गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वोटर्स को यह जानने का हक है कि फंडिंग कहां से आ रही है। फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
चुनावी बांड एक प्रकार का मनी इंस्ट्रूमेंट होता है जो एक वाहक बांड के रूप में कार्य करता है। जिन्हें भारत में व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है। इसके नाम के अनुरूप ये बांड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के लिए जारी किए जाते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया माना जाता है। इस बांड की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि बैंक से इसे खरीदने वाले का नाम बांड पर नहीं होता है। इससे आप यह कह सकते है कि कोई भी व्यक्ति गुमनाम तरीके से अपनी पसंद की पार्टी को फंडिंग कर सकता था। इन बांड को कोई भी खरीद सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक तय समयसीमा में इलेक्टोरल बांड की जानकारी SBI द्वारा चुनाव आयोग को उपलब्ध न कराने पर अवमानना याचिका दायर हुई है। ADR (एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की ओर से दायर इस याचिका में SBI पर जानबूझकर कर कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर लोगों की चंदे की जानकारी से वंचित रखने का आरोप लगाया है। दरअसल 15 फरवरी को दिए फैसले में SC ने इलेक्टोरल बांड स्कीम को रद्द करते हुए SBI से कहा था कि वो 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक के इलेक्टोरल बांड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपे। कोर्ट ने तब इसके लिए 6 मार्च तक की समयसीमा तय की थी। पिछले दिनों SBI ने SC में अर्जी दायर कर इसके लिए 30 जून तक का वक़्त दिए जाने की मांग की है। इलेक्टोरल बांड का क्या होगा..?