राजेश कुमार पासी
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करके राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। उनसे इस कदम की अपेक्षा कोई नहीं कर रहा था क्योंकि वो 6 महीने से जेल में थे लेकिन जिद्द पर अड़े हुए थे कि वो जेल से सरकार चलाएंगे, इसलिये इस्तीफा नहीं देंगे । सच ये है कि जब से केजरीवाल जेल गए हैं तब से दिल्ली सरकार के सारे काम रुके हुए थे । सब कुछ जानने के बाद भी केजरीवाल इस्तीफा नहीं दे रहे थे लेकिन जैसे ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने नियमित जमानत दी, उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। केजरीवाल का आखिरी दांव क्या रंग दिखायेगा..?
बड़ा सवाल पैदा होता है कि जो आदमी जेल से सरकार चलाने की जिद्द पर अड़ा हुआ था, उसने जेल से बाहर निकलते ही सरकार क्यों छोड़ दी। आम आदमी पार्टी केजरीवाल को इस्तीफा देने पर सत्ता का मोह छोड़ने वाला नेता साबित करने की कोशिश कर रही है लेकिन देश तो सच जानता है। अब केजरीवाल के इस्तीफे के बाद उनके द्वारा 15 दिन में मुख्यमंत्री निवास को भी खाली कर देने की सूचना आ गई है। इसे भी आम आदमी पार्टी उनकी महानता साबित करने पर तुली हुई है जबकि सबको पता है कि चाहे कोई भी मुख्यमंत्री हो पद छोड़ने के बाद उसको मुख्यमंत्री निवास छोड़ना ही पड़ता है। वास्तव में केजरीवाल बेहद चालाक नेता हैं और वो जनता की नब्ज भी पहचानते हैं । उन्हें जनता की नाराजगी दिखाई दे रही है और वो जानते हैं कि जनता की नाराजगी आने वाले विधानसभा चुनावों में बड़ा असर डाल सकती है इसलिये उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे कर अपना आखिरी दांव चल दिया है। देखा जाए तो उन्होंने अपने इस दांव से पूरे विपक्ष को परेशानी में डाल दिया है। विपक्ष को केजरीवाल से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी इसलिए वो नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करने के लिए मजबूर हो गया है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि केजरीवाल ने पहले क्यों नहीं इस्तीफा दिया और अब क्यों इस्तीफा दे रहे हैं। वास्तव में केजरीवाल की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल सरकार और पार्टी को चला रही थी। वो अपनी पार्टी में किसी और पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन वो अपनी पत्नी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते थे क्योंकि इससे पार्टी में बगावत होने का डर था । सुनीता केजरीवाल बिना मुख्यमंत्री का पद लिए पार्टी और सरकार को चला रही थीं इसलिए केजरीवाल को कोई समस्या नहीं थी । अगर किसी और को मुख्यमंत्री बना दिया गया होता तो केजरीवाल की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर वो पार्टी और सरकार दोनों पर कब्जा कर सकता था। इसके अलावा केजरीवाल के परिवार को आलीशान शीशमहल भी खाली करना पड़ता । केजरीवाल और उनके परिवार को मुख्यमंत्री के पद को मिलने वाली सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ता । केजरीवाल को मुकदमो का खर्च भी खुद वहन करना पड़ता और अदालत में उनका केस भी कमजोर हो सकता था।
अब केजरीवाल जेल से बाहर आ गए हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार वो मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते और न ही कोई फैसला ले सकते हैं । उनके पास कैबिनेट बैठक बुलाने का भी अधिकार नहीं है। पांच महीने बाद दिल्ली के चुनाव होने वाले हैं लेकिन केजरीवाल जनता के काम नहीं कर सकते। चुनाव से पहले केजरीवाल कुछ लुभावने काम करना चाहते हैं ताकि जनता को खुश कर सके । संभावना है कि हर वयस्क महिला को हज़ार रुपये प्रतिमाह देने का वादा पूरा किया जा सके और चुनाव से पहले एक-दो महीने का पैसा उनके खाते में डाला जा सके । नए मुख्यमंत्री के बनने के बाद केजरीवाल चुनावी तैयारी करना चाहते हैं।
लोकसभा चुनाव परिणामों ने केजरीवाल को दिल्ली की जमीनी हकीकत का अहसास करवा दिया है। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान जनता की सहानुभूति पाने की भरसक कोशिश की थी। उन्होंने पूरी दिल्ली में घूम-घूम कर प्रचार किया कि अगर आप चाहते हो कि मैं जेल से बाहर आ जाऊ तो मुझे दिल्ली की सातों सीटें दे दो । उन्होंने मोदी सरकार को सबक सिखाने के लिए भी दिल्ली की जनता से सातों सीटों पर भाजपा को हराने की अपील की थी लेकिन इसका दिल्ली की जनता पर कोई असर नहीं हुआ और आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक भी सीट जीत नहीं पाई । केजरीवाल जानते हैं कि वो मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते इसलिये इस्तीफा देकर जनता की सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हैं। देखा जाए तो वो एक तरह से उंगली कटाकर शहीद होना चाहते हैं। वैसे भी चुनाव में पांच महीने का वक़्त बचा है और वो कुछ कर भी नहीं सकते इसलिए जनता की सहानुभूति पाने की कोशिश करना उन्हें बेहतर नजर आ रहा है। उनके द्वारा मुख्यमंत्री पद और मुख्यमंत्री निवास छोड़ने को आम आदमी पार्टी ने अभी से उनके त्याग के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है। आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने भाजपा की तोपों का मुंह उनकी तरफ कर दिया है। आतिशी पर भाजपा के हमले बता रहे हैं कि उनकी रणनीति ने अभी से काम करना शुरू कर दिया है। भाजपा का ध्यान उनसे हटकर आतिशी पर चला गया है, यही केजरीवाल चाहते हैं।
केजरीवाल चाहते हैं कि भाजपा का ध्यान उनकी सरकार के घपलों-घोटालों से हटकर आतिशी की ओर लग जाये । आतिशी के खिलाफ जिन मुद्दों को भाजपा उठा रही है, उनके बारे में केजरीवाल जानते हैं और उन्हें पता है कि जब आतिशी मुख्यमंत्री बनेंगी तो भाजपा उनको घेरने की कोशिश करेगी । ऐसा ही हो रहा है, भाजपा आतिशी और उनके परिवार पर हमले कर रही है। आतिशी पर हमले से न तो केजरीवाल पर कोई असर होने वाला है और न ही आम आदमी पार्टी को कोई नुकसान होगा। आतिशी पर हमले करके भाजपा अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रही है।
वास्तव में केजरीवाल समझ गए हैं कि दिल्ली की जनता में उनकी छवि बहुत खराब हो चुकी है । अगर उनकी सरकार के घोटालों को भाजपा मुद्दा बनाने में सफल रहती है तो उनके लिए चनाव जीतना बहुत मुश्किल होने वाला है । दूसरी बात यह है कि अगर भाजपा दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के घोटालों को मुद्दा बनाती है तो कांग्रेस भाजपा का विरोध नहीं कर पाएगी और केजरीवाल का बचाव भी नहीं कर सकेगी । केजरीवाल ने इस्तीफा देकर अपना आखिरी दांव चल दिया है और अब वो इसी आधार पर आगे की रणनीति बना रहे हैं। देश की जनता के स्वभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनका ये दांव सफल भी हो सकता है क्योंकि जनता में कब किस बात पर सहानुभूति पैदा हो जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता।
जनता की सहानुभूति पाने की कोशिश में केजरीवाल एक आम आदमी की तरह चुनाव प्रचार करते नजर आ सकते हैं। अब वो मुख्यमंत्री नहीं हैं इसलिये किसी छोटी निजी कार में घूमना शुरू कर सकते हैं। सौ रुपये वाली चप्पल और दो सौ रुपये वाली कमीज उनकी पहचान है, हो सकता है कि वो दोबारा पुराने वाले केजरीवाल की तरह मफलर पहन कर खांसते हुए चुनाव प्रचार में उतर जाएं । इसके अलावा मुख्यमंत्री निवास छोड़ने के बाद वो अब किसी छोटे से किराये के मकान में जा सकते हैं। केजरीवाल जानते हैं कि इस बार दिल्ली चुनाव आसान नहीं हैं क्योंकि जनता एक तरफ उनके घोटालों को जान चुकी है तो दूसरी तरफ दिल्ली सरकार की अव्यवस्था भी सामने आ चुकी है। दिल्ली चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि केजरीवाल का आखिरी दांव कितना काम करता है।
केजरीवाल ने आतिशी को अस्थायी रूप से मुख्यमंत्री बनाया है और वो सिर्फ उनकी खड़ाऊ लेकर शासन करेंगी और ऐसी घोषणा खुद आतिशी ने कर दी है । वो उनके लिए ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ रही हैं और उनका ही काम करेंगी । देखा जाये तो वास्तविक मुख्यमंत्री अभी भी केजरीवाल ही हैं । केजरीवाल ने इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री पद पाया है न कि खोया है क्योंकि मुख्यमंत्री होने पर भी वो काम नहीं कर सकते थे लेकिन मुख्यमंत्री पद छोड़कर काम कर सकते हैं । अब आतिशी उनके लिए फैसले लेंगी और उन्हें लागू भी करेंगी । वो तभी तक मुख्यमंत्री हैं,जब तक कि केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बन जाते । केजरीवाल ने कहा भी है कि अब वो दिल्ली की जनता के आदेश पर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे अर्थात चुनाव जीतने पर वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे। केजरीवाल का आखिरी दांव क्या रंग दिखायेगा..?