यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी ने फिर तोड़ी किसानों की कमर..!

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यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी ने फिर तोड़ी किसानों की कमर..!
यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी ने फिर तोड़ी किसानों की कमर..!
विनोद यादव
विनोद यादव

यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी से किसान परेशान..! आखिर कैसे होगा बिना यूरिया के धान। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में यूरिया खाद की भारी किल्लत किसानों के लिए चिंता का कारण बन गई है। खरीफ सीजन के इस समय जब धान और मक्का जैसी फसलों को भरपूर पोषण की जरूरत होती है, उस वक्त यूरिया या तो उपलब्ध नहीं है, या फिर कई गुना महंगे दामों पर कालाबाजारी में बिक रहा है। यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी ने फिर तोड़ी किसानों की कमर!

यूरिया खाद की कमी से पूरे प्रदेश में हाहाकार मचाया हुआ है। मगर सरकार अपना गाल बजा रहीं हैं किसान सम्मान निधि के नाम पर मगर यूरिया खाद के लिए किसानों को जहां दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रहीं हैं, वहीं कहीं कहीं समितियों पर यूरिया खाद के लिए लाईन लगाए किसानों पर पुलिस लाठी भी भांज रहीं हैं। समितियों पर किसान बिना खाना पानी के घंटों लाईन लगाने के बाद भी उन्हें यूरिया नहीं मिल पा रही हैं। और मायूस होकर अपने घरों को लौट आ रहें हैं।मगर सरकार के अधिकृत मंडियों, साधन समितियों में यूरिया है ही नहीं? इसका जवाब न सरकार दे रहीं हैं न जिम्मेदार अधिकारी।हां एक काम जिले में अधिकारियों द्वारा जरूर किया जा रहा हैं लगातार छापेमारी कर धन उगाही का..छोटे दुकानदारों के यहां जाकर सेम्पलिंग के नाम पर धन उगाही की जा रही हैं जरूरत हैं यूरिया की न की छापेमारी की खैर जबरा मारे और रोवय न देय वाली कहावत चल रहीं हैं।बीते दिनों छापेमारी से तंग आकर छोटे दुकानदारों ने हर जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया मगर उसका हल कुछ नहीं निकला,सरकार का कहना है कि प्रदेश में यूरिया की जितनी जरूरत थी, उतनी समितियों पर भेज दी गयी है। सरकारी हुकूमती बयान को किसान किल्लत कहें या कालाबाजारी?यह किसान खुद ही नहीं समझ पा रहें हैं। दरअसल धान की रोपाई के पहले सप्ताह में यूरिया की जरूरत पड़ती है, जो इस समय पूरी नहीं हो पा रही।

प्रमुख समस्याएँ:

सरकारी गोदामों में यूरिया है, लेकिन दुकानों पर “स्टॉक खत्म” की पर्ची लटक रही है। ब्लैक मार्केट में 266 रुपये की बोरी 400-500 रुपये तक बेची जा रही है। प्रशासन की छापेमारी सिर्फ दिखावा, मुनाफाखोर बेखौफ। छोटे किसान मजबूरी में उधार लेकर महंगे दाम पर यूरिया खरीदने को विवश। किसान गुस्से और दर्द में:”खेत पानी मांगता है, फसल खाद मांगती है… और दुकानदार कालाबाजारी करता है। सरकार कहती है, व्यवस्था ठीक है… लेकिन हमारे खेत सूख रहे हैं!”


बेशक, केंद्र सरकर यूरिया की कमी को दूर करने लिए इस साल के अंत तक यूरिया के आयात को बंद करके नैनो लिक्विड यूरिया और नैनो लिक्विड डाई-अमोनियम फॉस्फेट जैसे वैकल्पिक उर्वरकों के बढ़ावे पर विचार कर रही हो? लेकिन कितने प्रतिशत तक यह यूरिया किसानों तक पहुंच पायी हैं यह भी सोचने वाली बात हैं अन्नदाता जहां दर दर की ठोकरें खा रहा वहीं यूरिया खाद के लिए औने पौने दाम पर यूरिया खरीदने पर मजबूर भी हो रहा हैं।यूरिया की किल्लत को लेकर देशभर के किसानों में जहां आक्रोश है।वहीं किसान संगठनों द्वारा धरना प्रदर्शन एंव आंदोलन भी हो रहें हैं ।बीते दिनों लखीमपुर में किसानों और पुलिस के बीच यूरिया को लेकर जमकर हंगामा हुआ। किसानों पर पुलिस ने लाठियां चलाई। इस घटना के बाद किसान रोस व्याप्त हैं। लखीमपुर ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में खाद के लिए दुकानों पर किसानों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई आपको देखने को मिल जायेगी । नई यूरिया नीति-2015 की माने तो लगभग 283.74 एलएमटी की वार्षिक क्षमता वाली 36 गैस आधारित यूरिया विनिर्माण इकाइयां हैं। फिर भी किसानों को टाईम पर यूरिया की किल्लत झेलने को मजबूर हैं।जिले के बड़े बड़े डीलर यूरिया को डंप करके छोटे दुकानदारों से मनमाना दाम ले रहें हैं और जब छोटे दुकानदार उसी यूरिया को दस रुपए बढ़ा कर बेचना चालू करते हैं तो अधिकारियों को सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार छोटे दुकानों पर दिखता हैं मगर सच्चाई से परिचित होने के बावजूद भी डीलरों पर अधिकारियों का हंटर इस लिए नहीं चल पाता क्यूंकि मोटा कमीशन वहीं से मिल जाता हैं।धान की खेती पूर्ण रूप से यूरिया खाद पर निर्भर है।

यूरिया ऐसी खाद है, जो किसी भी किस्म की फसल की उर्वरक उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। बेशक सरकारें ऑरगेनिंक फसलों पर जोर देती हों। लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि जमीनें अब उतनी ताकतवर नहीं रहीं, जो बिना यूरिया के फसलें उग सकें। खेतों में इस समय धान की फसलों में यदि समय से यूरिया नहीं पड़ती हैं तो धान की फसल में न वृद्धि होगी, न हरियाली ही आयेगी और धीरे धीरे धान की पत्तियों में पीला पन आना चालू हो जाता हैं और पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं।खैर कुल मिलाकर यूरिया की कमी का बिचौलिए और दलाल खूब फायदा उठा रहे हैं। यूरिया की पहली खेप जब सेंटरों पर पहुंची, तभी बड़े बड़े डीलरों ने स्टॉक जमा कर लिया। उन्हें पता था कि इस बार भी हर साल की भांति यूरिया के लिए मारामारी मचेगी।’मरता क्या न करता’ जैसी नौबत है। यूरिया धान में नहीं पड़ेगी , तो फसल नष्ट हो जाएगी इस चक्कर में किसान चक्कर काट रहा और परेशान हो रहा है।पूरे देश में यूरिया की उपलब्धता 280 लाख टन है, जबकि मांग करीब 350 लाख टन यूरिया की है। आखिर कैसे पूरा करेगी सरकार यह सबसे बड़ा सवाल हैं।बड़े बड़े दावे करने वाली सरकार ने एक भी फर्टीलाइजर के नयें प्लांट नहीं लगाए जो थें भी उनमें से कुछ बंद पड़े हैं।नीम लेपित यूरिया के आखिर कितने नयें प्लांट सरकार ने लगाए और कहां खुलवाएं इसका कोई आंकड़ा नहीं सिर्फ चुनावी समर में किसानों से उनके खुशहाली के दिनों की चर्चा कर देने से अन्नदाता खुश नहीं हो पायेगा, उसकी मूलभूत समस्या को समझना होगा मगर जब राजनीति धर्म पर टिकी हो तो किसानों की भला फिक्र कौन करें। यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी ने फिर तोड़ी किसानों की कमर!