महिलाओं का अपमान समाज की आत्मा पर हमला

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महिलाओं का अपमान समाज की आत्मा पर हमला
महिलाओं का अपमान समाज की आत्मा पर हमला

जब कोई धर्मगुरु मंच से कहता है कि ‘महिला को यह नहीं करना चाहिए’, तो वह मेरे धर्म को नहीं, मेरी आज़ादी को चुनौती देता है। और मुझे खामोश करने से पहले, उसे मेरी आँखों में झाँकना होगा। जब कोई मंच, कोई माइक, कोई ‘धर्मगुरु’ महिलाओं के सम्मान पर चोट करता है, वो सिर्फ एक महिला को नहीं, पूरे समाज की चेतना को लहूलुहान करता है। महिलाओं का अपमान समाज की आत्मा पर हमला

जो समाज कोठों, वेश्यालयों और Oyo जाने वालों से कभी नहीं पूछता कि तुम पवित्र हो या अपवित्र? वही समाज एक लड़की की आंखों, कपड़ों और आवाज़ से उसका चरित्र तय कर देता है। #हद_है यह दोगलापन नहीं तो और क्या है..? पवित्रता का सर्टिफिकेट बांटने वाले ये स्वयंभू धर्मगुरु उस मानसिकता के प्रतीक हैं, जो पुरुष की वासना को स्वाभाविक और स्त्री की आज़ादी को पाप मानती है।

ये वही समाज है जहां #आशाराम बलात्कारी होते हुए भी बापू कहलाता है, #रामरहीम जेल में बैठकर भी भक्तों का गुरु बना रहता है, और #चिन्मयानंद छात्राओं से मसाज करवाकर भी महामंडलेश्वर बना रहता है लेकिन वहीं जब कोई लड़की अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीना चाहती है, तो उसे चरित्रहीन कहा जाता है — क्यों भाई ?

हमें यह भी सोचना होगा कि दासी प्रथा के दौरान ढोंगियों ने महिलाओं के चित्र, चरित्र और बाल्यावस्था तक को नोच डाला। और जब कोई लड़की उनके चंगुल से निकलने की कोशिश करती, तो उसे इसी अपवित्र चरित्र के जाल में फंसाकर मार डाला जाता रहा।

औरत को देवी कहने से पहले, उसे इंसान समझो। उसकी सोच, उसके कपड़े, उसकी आवाज़– ये तुम्हारे ‘आशीर्वाद’ या ‘अनुमति’ की मोहताज नहीं है। अरे कभी पुराने पन्नों को पलटिएगा-उनके एक-एक शब्द, एक-एक घाव, उनका दर्द आज भी आपको महसूस होगा ।

काश आमजन एक बार वस्त्रों से भेड़ियों को भी पहचानने की कोशिश करता, सर्टिफिकेट बांटने वालों का पूर्व अतीत को पुराने पन्नों में पढ़ने की भी कोशिश करता। अगर वह दासी प्रथा के दौर की पीड़ा को आंखें बंद कर महसूस करता — तो रोंगटे खड़े हो जाते, रूह कांप जाती, और सच आईने की तरह साफ हो जाता फिर आज के लपटों की चरित्रता वाली कथा सुनने से पहले उनके हाथों में कंपन होती और परिणाम हर उस कथा वाचक के गालों पर दिखता जो महज कुछ घंटे पहले ही आपने मौलाना साहेब के साथ होते देखा।

“पवित्रता का सर्टिफिकेट बांटने वाले ये स्वयंभू धर्मगुरु उस मानसिकता के प्रतीक हैं, जो ईश्वर को निजी संपत्ति समझते हैं, और धर्म को सत्ता का औजार बना चुके हैं। ये वही लोग हैं जो ‘आस्था’ के नाम पर प्रश्न पूछने वालों को नास्तिक और विरोध करने वालों को अधर्मी कह देते हैं। धर्म जब विवेक और करुणा से अलग हो जाए, तो वह ढकोसला बन जाता है। और ऐसे ढोंगियों से समाज को खतरा होता है, ईश्वर को नहीं।”

जब कोई स्वयंभू धर्मगुरु महिला पर आपत्तिजनक टिप्पणी करता है, और फिर वही शब्द बार-बार समाज में गूंजते हैं, तो समझिए कि वह सिर्फ शब्द नहीं—एक मानसिकता है, जो चारों तरफ़ फैल चुकी है। यह वही मानसिकता है जो महिलाओं को देवी कहती है, लेकिन जब वे बोलती हैं, सोचती हैं या विरोध करती हैं, तो उन्हें संस्कारों की दुहाई देकर चुप करवा देती है। धीरेन्द्र शास्त्री जैसे लोग जब धर्म के नाम पर ऐसे वक्तव्य देते हैं, तो वे केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं करते-वे पूरे समाज की सोच को पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं। समाज को यह तय करना होगा-क्या हम ऐसे मंचों पर तालियाँ बजाते रहेंगे, या विवेक से सवाल उठाएँगे..?धर्म के नाम पर औरत का अपमान-समाज की आत्मा पर हमला है..!

राजनैतिक और सार्वजनिक प्रतिक्रिया

साथ ही ओपी राजभर जैसे नेताओं ने धार्मिक प्रवक्ताओं की आपत्तिजनक टिप्पणियों पर सवाल उठाए, जैसे “क्या कोई जांच मशीन है क्या?”—इस बयान पर भी जोरदार प्रतिक्रिया आई है। उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य ने चेतावनी दी कि कथावाचक को मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि ‘आज की लड़कियां अपनी सीमाएं जानती हैं।’ दिशा पाटनी की बहन, पूर्व सैनिक खुशबू पाटनी ने सोशल मीडिया पर अतिशयोक्ति और आपत्तिजनक भाव रखने वाले बयान को कड़ी आलोचना की है।

अनिरुद्धाचार्य के बयान सिर्फ व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थे, बल्कि एक व्यापक सोच का प्रतीक हैं—जो नियंत्रित दृष्टिकोण, जन‑चरित्र पर सवाल और यौन‑मार्गदर्शन को धार्मिक दावा बनाकर पेश करती है। इसका विरोध इसलिए व्याप्त हुआ क्योंकि इसने न केवल महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाई, बल्कि हमारे समाज की चेतना और लोकतांत्रिक संस्कार को चुनौती दी।महिलाओं के खिलाफ इस तरह की टिप्पणियाँ सिर्फ व्यक्तिगत अपमान नहीं, समाज की आत्मा पर हमला कही जा सकती हैं।