वाल्मीकि रामायण के महिलापात्र एवं एक अनोखी सुनहरी गुफा की स्वयं प्रभा।
भारतीय जन जीवन के साथ राम कथा के प्रथम प्रवक्ता महर्षि वाल्मीकि ने इसे इतनी रमणीय शैली में प्रस्तुत किया था कि उसने केवल परवर्ती कवियों को ही अक्षय सम्बल प्रदान नहीं किया बल्कि साधारण जनता भी अपनी दिनचर्या समस्याओं को सुलछाने में इसके विभिन्न प्रसंगों और पात्रों से प्रेरणा लेती रही है।राम कथा के समालोचक इन प्रसंगों और पात्रों को बहुत तरह से समझने और समझाने का प्रयास करते रहे हैं और करते रहेंगे।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के महिला पात्रों का आध्यात्मिक,सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था।ये पात्र निम्नलिखित हैं जानकी,केकयी,कौशल्या,सुमित्रा,अहल्या,अनसूया,त्रिजटा,सूपर्णखा,शबरी,स्वयं प्रभा,तारा,मन्दोदरी एवम् मन्थरा।इसके पीछे मदर्षि वाल्मीकि की मनोभूमिका को हृदयंगम करने की आवश्यकता है ।समस्त गुणों से युक्त एक आदर्श प्रतिभा जानकी के ठीक विपरीत प्रतिकृति सूपर्णखा है।
दशरथ की सबसे छोटी रानी केकयी पाप दर्षिता फी शिकार अपने आप बन जाती है। राम के राज्याभिषेक की खबर सबसे पहले मन्थरा ही लाती हैं। केवल केकयी ही नहीं किसी भी रानी को खबर नहीं थी। महर्षि की निगाह में मन्थरा केकयी की ज्ञातदासी और ‘सहोषिता’ हैं इसलिए केकयी के अन्तर में ‘हृसीयसी’ के रूप में निरन्तर निवास करती हैं।इस लिए वह केकयी के महल मैं ऊपर चढ़ कर राम के राज तिलक की तैयारियाँ देखकर एकदम नीचे उतर आती हैं और केकयी…?
को सब सूचित करती हैं।बड़ी रानी कौशल्या जो सत्य,धर्म के प्रति अपनी धीर गम्भीर निष्ठा के बल पर संकट पूर्ण परिस्थितियों में अपनी उद्विग्न भावुकता पर विजय प्राप्त कर लेती है। इसके अलावा,अहल्या,तारा,मन्दोदरी जो पाँच कन्याओं में आती है।अचंचल भक्ति की भावना से परिपूर्ण हैं शबरी। लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा है जो राक्षसों होते हुए भी रामायण की भावी घटनाओं को परिभाषित करने वाले स्वप्न के दर्शन में अपने को अनुग्रहित मानती है।
सुनहरे गुफा की स्वयं प्रभा
रामायण के महिला पात्रों में स्वयं प्रभा का नाम बहुत कम लोग ही जानते हैं। हालाँकि रामायण के आध्यात्मिक भाव भूमिका के उन्नयन में इस पात्र का बहुत बड़ा महत्व है । किसी साधारण पाठक से अगर पूछा जाए कि स्वयं प्रभा का उल्लेख किस कांड में हुआ है तो वह शायद ही इस बात का उत्तर दे पाये। इस का कारण यह है कि वाल्मीकि रामायण के बाद के राम काव्यों में इस प्रसंग को कोई विशेष महत्व नहीं ही दिया गया था। कुछ कवियों ने इस का उल्लेख मात्र किया है कुछ ने तो इस बात को बिल्कुल छोड़ ही दिया है।दूसरा बड़ा कारण यह है कि महर्षि ने भी इस पात्र का राम से सीधा सम्बन्ध नहीं था ही जोड़ा है ।एकान्त तपोवन की स्वान्तस्मुख साधिका आराधिका के रूप में स्वयं प्रभा का चित्रण किया गया । स्वय प्रभा का मतलब यह है कि स्वयं की प्रभा से प्रकाशित। राम की प्रतिक्षा में जीवन की अन्तिम घड़ियों को गिनाते हुए आराधिका शबरी से स्वयं प्रभा बहुत कुछ मिलती हैं। दोनों एकान्त और प्रशान्त वातावरण में एकान्त जीवन व्यतीत करने वाली आश्रम वासिनियां है। दोनों आध्यात्मिक साधना और सिद्धि से सम्पन्न हें। शबरी का ‘मातंग वन’और स्वयं प्रभा का ‘सुनहरी गुहा’ साधारण आदमी की पहुँच से बाहर है।‘मातंगवन’ बाहर से। दिखाई देता है पर स्वयं प्रभा का सुनहरी गुहा बाहर से काजल की कोठरी की तरह रहस्यमयी गुफा है। इसी लिए महर्षि ने शबरी के आश्रम को ‘‘तद् वन’’और स्वयं प्रभा के सुनहरा गुफा को ‘महद्वन’ कहा है । शबरी से पहुँची हुई सुलझी हुई तपस्विनी स्वयं प्रभा है। हनुमान जी जैसी भावना रखने वाला ही स्वयं प्रभा की गरिमा और गम्भीरता को समझ सकता है ।
स्वयं प्रभा का प्रसंग रामायण में किष्किन्धाकान्ड के अन्तिम प्रकरण में आता है।जब हनुमान्,अंगद, जाम्बवान्आदि महाबानर अपने सहयोगीयों के साथ सीता की खोज में चल पड़े हैं। घने जंगलों ऊँचे -ऊँचे पहाड़ों पर चढ़ते उतरते उन्हें प्यास लग जाती हैं और वे एक स्थान पर कया देखते हैं कि गुहा से भीगे पंखों वाली चिड़ियाँ निकल रही हैं । यह देख कर उन लोगों के मन में विचार आता है कि इस गुफा में पानी तो अवश्य उपलब्ध होगा। बस हनुमान जी के इशारे पर उनके सब बानर सहयोगी एक दूसरे को सहारा देते हुए अन्धेरी गुफा में प्रवेश कर जाते हैं । काफ़ी चलने के बाद उन्हें प्रकाश दिखाई देता है । उन्हें लगता है कि यहाँ पर अवश्य किसी दैविक शक्तियों ने ही उन्हें वहाँ पहुँचाया है
वे सोंचने लगते हैं कि इतना सुंदर उपवन किसने बनवाया होगा जहाँ इतनी सुनहरे फल फूल कमल से युक्त सुन्दर सरोवर है और भवन है।यह सोंच ही रहे थे कि उन्हें प्रकाशित आभा वाली तपस्विनी दिखती हैं। किसी में उनसे बात करने की हिम्मत भी नहीं थी। यह हनुमान जी ही थे जिनमें हिम्मत थी। स्वयं प्रभा ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें जल,फल,फूल उपयोग करने की अनुमति दी। और अपने मेहमानों का उचित सत्कार किया। स्वयं प्रभा के सत्कार से वे लोग गद-गंद हो गये। पर उनमें इतनी हिम्मत नहीं थी। पर हनुमान जी उपवन और भवनके बारे में जिज्ञासा दबा न पाये,पूछ ही लिया। स्वय प्रभा ने अपने आश्रम की सारी गाथा सुनाती है। अनोखी सुनहरी गुफा की स्वयं प्रभा
असल में यह उपवन उसकी सहेली हेमा ने उसे दिया था। देवताओं के कुशल मायावी अभियन्ता ‘मय’ ने अपनी प्रेमिका हेमा के लिए यह उपवन बनाया था । बृह्मा की उसने कठोर तपस्या किया था। बृह्मा ने सन्तुष्ट होकर उसे चित्र,विचित्र प्रकार के कला कौशल को सिखाया था। वर्षों तक मय इस उपवन। में रह कर अन्त में हेमा से प्रेम लालसा प्रकट किया । वह देव कन्या थी। इसलिए इन्द्र ने बिगड़ कर मय को निकाल दिया । बाद में बृह्मा ने उस उपवन की देख भाल की व्यवस्था हेमा को दे दिया । क्यों कि वह ललित कलाओं में निपुण थी बाद में हेमा ने स्वयं प्रभा को दे दिया। तब से वे उसकी देखभाल कर रही थी । यह केवल अपनी तपस्या साधना और निष्ठा के बल पर कर रही थी । महर्षि ने इस वन की ‘महद्वन’ उत्तम वन, कांचन वन आदि विशेषणों से वर्णन किया है । वे हनुमान जी से कहती है कि अगर उचित लगे तो जिस राम काज के लिए निकले है उसके बारे में संक्षेप में बताए । हनुमान जी ने संक्षेप में बताया कि सीता जी का हरण हो गया है और वे उन्हीं को ढूँढने अपने दल बल के साथ निकले थे काफीसमय व्यतीत हो गया है। इसलिए उनको शीघ्र ही निकल कर जाना होगा ।
अत: स्वयं प्रभा ने उन्हें बताया कि कि अपने हाथ की उँगलियों से आँखों को बन्द कर लें फिर गुफा से बाहर निकले । पल भर में वे गुफा से बाहर आ जाते है । और स्वयं , स्वयं प्रभा भी खड़ी थी उन्हें विदा करने के लिए ।सामने समुद्र था। स्वयं प्रभा हनुमान जी और उनके साथियों को विशिष्ट अनुभूति प्रदान करती हैं जो सीता जी की खोज में उनकी मदद देती है । स्वयं प्रभा न समुद्र के पास बैठे ‘संपाति’नामक पक्षी से उनका परिचय कराया ।वह दूर दर्शन की अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न होने के कारण सीता जी के अवस्थान में उनकी मदद करेंगे । (ऐसी बातों से उन्हें आश्वासन दिया) अनोखी सुनहरी गुफा की स्वयं प्रभा
रामायण कथा तो हर किसी ने सुनी है। इसमें सीता की खोज के समय वानर सेना को एक गुफा में तपस्विनी स्वयं प्रभा के दर्शन होते हैं। जो हनुमानजी के वानर दल का आदर-सत्कार कर उन्हें भोजन करवाती है। लंका तक पहुंचाने के लिए वह अपने तपोबल से उन्हें समुद्र तक भी पहुंचाती है। जिसके बाद ही संपाती की मदद से सीता का पता प्राप्त कर हनुमानजी लंका जाते हैं। पर शायद ही कोई जानता है कि गुफा में तपस्या कर रही ये स्वयं प्रभा आखिर थी कौन…..? जब रावण सीता को हर ले गया तो वानर राज सुग्रीव के आदेश पर वानर दलों ने उनकी चारों दिशाओं में खोज शुरू की। इनमें से हनुमानजी, अंगद व जटायु का दल सीता की खोज करते हुए स्वयंप्रभा की गुफा तक पहुंच गया। भगवान राम का दल जान स्वयं प्रभा ने उनकी खूब आवभगत की। फिर अपने तपोबल से उन्हें लंका तक पहुंचाने के लिए समुद्र तट पर छोड़ दिया। जिसके बाद ही संपाती के पता बताने पर हनुमानजी सीता खोज में लंका गए। उधर, स्वयं प्रभा खुद भगवान राम के पास गई और उनके दर्शन से परमधाम प्राप्त कियाजब रावण सीता को हर ले गया तो वानर राज सुग्रीव के आदेश पर वानर दलों ने उनकी चारों दिशाओं में खोज शुरू की। इनमें से हनुमानजी, अंगद व जटायु का दल सीता की खोज करते हुए स्वयंप्रभा की गुफा तक पहुंच गया। भगवान राम का दल जान स्वयं प्रभा ने उनकी खूब आवभगत की। फिर अपने तपोबल से उन्हें लंका तक पहुंचाने के लिए समुद्र तट पर छोड़ दिया। जिसके बाद ही संपाती के पता बताने पर हनुमानजी सीता खोज में लंका गए। उधर, स्वयं प्रभा खुद भगवान राम के पास गई और उनके दर्शन से परमधाम प्राप्त किया।
स्वयं प्रभा आज्ञाचक्र की सर्वज्ञ साधिका है । योगा शास्त्र के अनुसार मूलाधार से लेकर आज्ञाचक्र है जो छठा चक्र है । जो दोनों आँखों के बीच और नासा दण्ड के ऊपर दोनों भृकुटियों के बीच प्रतिष्ठित होता है। कमर से लेकर कण्ठ तक की सारी काया को शिर और ग्रीवा के साथ सामान्य रख कर दोनों आँखों की दृष्टि को नाक के कोने पर स्थिर करने से आज्ञा चक्र के दर्शन हो जाते हैं। जब हम आँखों को बन्द कर लेते है , और इष्ट देव में तल्लीन हो जाते हैं। तब बाहर की दुनिया से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं रहता है।आन्तरिक जगत काअनन्त प्रकाश हमे चकित कर देता है एक बार समाधिस्थों होने पर प्रकृतिस्थ होने में कठिनाई होती है इसके लिए उस प्रभु या प्रभा का सहारा लेना ज़रूरी हो जाता है।स्वयं प्रभा कहती हैं कि अगर तुम बिल या गुफा से बाहर जाना चाहते हो तो अपनी आँखों को बन्द कर लो। इससे समाधि का लगाना या खुलना संम्भव हो जाता है ।इसी रहस्य का केनोपनिषद् मेंउल्लेख मिलता हैंजब रावण सीता को हर ले गया तो वानर राज सुग्रीव के आदेश पर वानर दलों ने उनकी चारों दिशाओं में खोज शुरू की। इनमें से हनुमानजी, अंगद व जटायु का दल सीता की खोज करते हुए स्वयंप्रभा की गुफा तक पहुंच गया। भगवान राम का दल जान स्वयं प्रभा ने उनकी खूब आवभगत की। फिर अपने तपोबल से उन्हें लंका तक पहुंचाने के लिए समुद्र तट पर छोड़ दिया। जिसके बाद ही संपाती के पता बताने पर हनुमानजी सीता खोज में लंका गए। उधर, स्वयं प्रभा खुद भगवान राम के पास गई और उनके दर्शन से परमधाम प्राप्त किया। अनोखी सुनहरी गुफा की स्वयं प्रभा
‘यदेतद् विद्युतो व्यद्युतदा, इति न्यमीमिषदा’
( बिजली की तरह यह छवि पल भर में प्रकाश से भर जाती है और फिर वह ओझल होजाती है।’)
‘यही वह आभा है जो शरीर को अशरीर से काल को अकाल से ससीम को असीम से। दृष्टा को दृष्टि को दृष्टि से मिलाती है। यही आभा का आभास स्वंय प्रभा में दृष्टि गोचर होता है ,जिसके सहारे अशोक वाटिका मेंमाता देवी सीता का दर्शन सम्भव हो सका है। स्वयं प्रभा का प्रसंग बहुत रोचक घटना है लेकिन यह वाल्मीकि रामायण के आध्यत्मिक धरातल का एक महत्वपूर्ण अवस्थान है। कहानी की दृष्टि से यह रोचक कहानी है पर कविता की दृष्टि से यह कमनीय कल्पना है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह विश्वात्मा के विराट सौन्दर्य का साक्षात्कार करने में सहायक,एक अद्भुत साधना पाठ है और साथ में सिद्धपाठ भी है।वेद को काव्य रूप देने मे कृतसंकल्प वाल्मीकि ने स्वयं प्रभा के माध्यम से अलौकिक योग साधना को मनोहर कथा का रूप दिया है। लेकिन बहुत कम परवर्ती राम काव्यों ने इस प्रकार के प्रासंगिक इतिवृत्तों की गहराई पहचाना है।इसलिए रामायण को मात्र एक कहानी के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह परम रमणीय राम का अयन है, जिसके क़दम -क़दम पर आत्मा के अनन्त सुषमा के दर्शन होते है।राम लीला आत्मा की आनन्दमयी गाथा है। स्वयं प्रभा इस गाथा की महत्वपूर्ण ग्रंथि है। ।