ट्रंप की टैरिफ कूटनीति..!

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ट्रंप की टैरिफ कूटनीति..!
ट्रंप की टैरिफ कूटनीति..!

ट्रंप की टैरिफ कूटनीति: क्या अमेरिका अलग-थलग पड़ जाएगा।ऐसा लगता है कि ट्रम्प इस टैरिफ कूटनीति से भले ही अमेरिकी अवाम को खुश कर दें लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव अमेरिका पर भी पड़ेगा।  ट्रंप की टैरिफ कूटनीति..!

डॉ.ब्रजेश कुमार मिश्र

20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद सम्हालने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप ने कई प्रकार की ऐसी घोषणाएं करनी आरम्भ कर दीं जो वैश्विक भू-राजनीति एवं भू- अर्थिकी को व्यापक तौर पर प्रभावित करे। मसलन कनाडा को 51 वां राज्य बनाने की पहल, पनामा और ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाने की घोषणा, रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने का संकल्प एवं ‘टैरिफ’ कूटनीति। 5 मार्च को जब ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया तो कहा कि ‘अमेरिका इज बैक’ अर्थात अमेरिका अपने गौरव को पुनः प्राप्त करेगा। अपने सम्बोधन में यद्यपि ट्रंप ने कई बिंदुओं को उठाया परंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण  बिन्दु था ‘टैरिफ’। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका टैरिफ नीति पर कोई समझौता नहीं करेगा। 

अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और अन्य देशों द्वारा लगाए गए “अनुचित” टैरिफ की आलोचना दोहराते हुए 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब वही टैरिफ दरें लागू करेगा जो अन्य देश उसके निर्यात पर लगाते हैं। मतलब साफ है कि ट्रम्प अब रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की बात कह रहे हैं।  ट्रंप ने यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, भारत, मेक्सिको और कनाडा पर अधिक टैरिफ वसूलने का आरोप लगाया। भारत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत 100% से अधिक ऑटो टैरिफ वसूलता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को कोई छूट नहीं मिलेगी और अमेरिका असमान व्यापार नीतियों का जवाब देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि 2 अप्रैल से अमेरिका अन्य देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ के बराबर टैरिफ लगाएगा। यदि कोई देश अमेरिकी बाजार में बाधा डालता है तो अमेरिका भी उनके लिए गैर-मौद्रिक अवरोध लगाएगा। यह कदम अवैध आव्रजन और मादक पदार्थों की तस्करी का हवाला देते हुए मैक्सिको, कनाडा और चीन से आयात पर व्यापक शुल्क लगाने के बाद उठाया गया। 

अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के विरुद्ध दुनिया के किसी देश की उस तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई  जैसा चीन की आई। वस्तुतः अमेरिका ने चीन पर 1 फरवरी को 10 फीसदी का टैरिफ लगाया था। पुनः ओपिओइड फेंटेनाइल के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के निर्यात को रोकने में विफल रहने का हवाला देते हुए 4 मार्च से 10 प्रतिशत टैरिफ और बढ़ा दिया है। साथ ही यह घोषणा भी कर दी कि 2 अप्रैल से रेसिप्रोकल टैरिफ भी लग जाएगा । अमेरिका द्वारा की गई इस घोषणा के प्रतिक्रिया में चीनी दूतावास की तरफ से एक ट्वीट किया गया कि “यदि अमेरिका टैरिफ, ट्रेड या फिर किसी प्रकार का युद्ध लड़ना चाहता है तो हम उससे अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं।” आखिर अमेरिका ने चीन के साथ ऐसा क्यों किया, यह एक बड़ा प्रश्न है। चीन की अर्थव्यवस्था तीव्र गति से आगे बढ़ रही है और एक अनुमान है कि वह 2030 में अमेरिका से आगे निकाल जाएगी।

अमेरिका का चीन के साथ व्यापारिक घाटा लगभग 24 लाख करोड़ रुपये वार्षिक है। हाल ही में  चीन ने  बिना अमेरिकी सेमी कंडक्टर चिप के अपना ए.आई का वर्जन डीप सी निकाल दिया। इसका प्रभाव तत्काल अमेरिकी बाजार पर पड़ा और उनका बाजार गिर गया। यही कारण है कि अमेरिका ऐसा कर रहा हो। ट्रम्प का यह फैसला और उस पर चीन की प्रतिक्रिया का असर आने वाले दिनों में दिखेगा। वास्तव में अमेरिका उन संगठनों और क्षेत्रों से स्वयं को अलग कर रहा है जहां से उसे बहुत कुछ मिलता दिख नहीं रहा है। यह ट्रम्प प्रशासन का अपना हित है। हो सकता है कि कुछ दिनों के भीतर हमें यह भी देखने को मिले कि यूक्रेन के मसले पर रूस और अमेरिका के बीच एक सहमति बने और दोनों यूक्रेन के खनिज को आपस में बाँट लें।  

ऐसा लगता है कि ट्रम्प इस टैरिफ कूटनीति से भले ही अमेरिकी अवाम को खुश कर दें लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव अमेरिका पर भी पड़ेगा। हो सकता है कि अब विश्व में एक नई व्यवस्था उभर कर आए क्योंकि अब विश्व के अन्य देशों की निर्भरता अमेरिका के ऊपर से हटेगी  और वे चीन की तरफ शिफ्ट हो जाएं लेकिन इन देशों को चीन के चरित्र पर भी ध्यान देना होगा। भारत की इस समय क्या भूमिका होगी, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। भारत को फिलहाल धैर्य धरण करने की आवश्यकता है। हमें यह देखना होगा कि चीन और अमेरिका में कितनी दरार बढ़ती है। साथ ही हमें रूस और चीन के संबंधों को भी देखना होगा। भारत को स्वयं को एक मैन्युफैक्चरिंग बाजार के तौर पर पेश करना होगा ताकि इस टैरिफ कूटनीति से बचा जा सके। कुल मिलाकर भारत को आपदा में अवसर तलाशने की जरूरत है।  ट्रंप की टैरिफ कूटनीति..!