किसी भी धर्म में हिंसा की गुंजाइश नहीं

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किसी भी धर्म में हिंसा की गुंजाइश नहीं
किसी भी धर्म में हिंसा की गुंजाइश नहीं

किसी भी धर्म में हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। मनुष्य के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है लेकिन इसके साथ साथ जब आडंबर अपना स्थान ग्रहण करने लगता है तो व्यक्ति की मूल भावना कहीं ना कहीं दिग्भ्रमित होने लगती है। किसी भी धर्म में हिंसा की गुंजाइश नहीं

डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

दुनिया के लोगों की यह मान्यता है कि  इस पृथ्वी पर सभी धर्म अपने आप में बेहतर है । सभी धर्म  अपनी – अपनी जगह ठीक हैं बशर्ते वे अपने मूल रूप में रहें।  सभी  ने अपनी विवेक और सुविधानुसार अपने अपने भगवान की रचना कर डाली है और उसके लिए तरह तरह का आडंबर रच दिया है।सबसे अधिक हिंदुओं ने अपने भगवान की रचना कर डाली है। हमारे यहाँ असंख्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। हमने कई महापुरुषों को भगवान का दर्जा देकर उंनको पूजने का काम शुरू कर दिया है। इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि पूजा पाठ से व्यक्ति का जीवन सुचारू रूप से चलता है। मनुष्य के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है लेकिन इसके साथ साथ जब आडंबर अपना स्थान ग्रहण करने लगता है तो व्यक्ति की मूल भावना कहीं ना कहीं दिग्भ्रमित होने लगती है।

अभी हाल में किसी जैन समाज का  धार्मिक आयोजन देख रहा था । वैसा कभी महावीर स्वामी ने भी नहीं सोचा होगा। आज बौद्ध मठों में वही स्थिति है। जिस अवधारणा के साथ गौतम बुद्ध या महावीर स्वामी ने अपने धर्म के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया और उसका पूरा स्वरूप ही बदल गया है। दरअसल हम अपने सुविधानुसार सभी चीजें सुनियोजित करते हैं। आज जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा की गई, वह सभी क्रियाकलाप इंसानों द्वारा की गई। आसमान से यहाँ कोई नहीं टपका था। हिंदुस्तान के सभी मंदिरों में सैकड़ों साल पहले यही प्रक्रिया अपनाई गई थी। इंसान जब अपने आदिमकाल में था तो उसे क्या पता कि भगवान  क्या  होता है।जब इंसान की थोड़ी बहुत बुद्धि जागृत हुई तो वह सबसे पहले धरती, आकाश, जल अग्नि या वायु की पूजा करने की सोची। भगवान का तब तक सृजन ही नहीं हो सका था। पुराणों की रचना के बाद ही देवता अस्तित्व में आये। उसके बाद भगवान को लेकर तरह तरह की अवधारणा वजूद में आई ।

अगर महाभारत या रामायण की घटनाओं को सत्य मान लें तो श्रीराम या श्रीकृष्ण केवल महापुरुष हो सकते हैं लेकिन भगवान कतई नहीं लेकिन आज हम सभी इन्हें भगवान बनाने में तुले हुए हैं बल्कि हमनें इन्हें भगवान बना दिया है। दरअसल इंसान भी भेड़चाल में ही विश्वास करता है। एक व्यक्ति कुछ करता है उसका देखा देखी दूसरा इंसान वही काम करने लगता है। आज किसी भी मंदिर में अपार भीड़ जमा होती है। अगर शिवरात्रि है तो करोड़ों की संख्या में लोग अलग अलग शिव मंदिरों में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का कार्य करते नज़र आएंगे। वैसे इसमें कोई बुराई नहीं है। जल या दूध चढ़ाने से अपना कुछ जाता नहीं है लेकिन इसके पीछे तर्क क्या है ये समझ में नहीं आता है। जिस ईश्वर ने ये सारा कायनात बनाया है उसे एक लोटे जल डालकर क्या हासिल कर लेगें।

ईश्वर की आराधना में कोई बुराई नहीं है लेकिन इस तरह के कर्मकांड से हमें बचना चाहिए। आज टेलीविजन के माध्यम से बहुत से तथाकथित बाबा लोग भोली भाली जनता को गुमराह करते रहते हैं। आम जनता चमत्कार की आशा में ऐसे बाबाओं के झूठी बातों को सच मानने लगते हैं लेकिन इसका फायदा जरूर है कि लोग कुछ अच्छे कामों में लग जाते हैं। कम से कम कुछ लोग तो दुर्व्यसन से दूर हो जाते हैं लेकिन दुर्भाग्य से केवल बुजुर्ग लोग ही इनकी बात मानते हैं, युवा वर्ग नहीं। आज युवाओं को धार्मिक होने की आवश्यकता है क्योंकि आज का युवा निश्चित तौर पर अपने मार्ग से भटकने लगा है। महानगरों में युवा ड्रग के जाल में फंसने लगे हैं। लड़के और लड़कियां दोनों इसके शिकार बनने लगे हैं। आज कोई इनको सही रास्ते में लाने में सफल नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कोई साधु संत अगर इनको सही रास्ता दिखला सके तो निश्चित तौर पर ये अच्छा कदम होगा लेकिन वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है। आज का युवा वर्ग किसी का प्रवचन सुनने को तैयार नहीं रहता है। इन लोगों की अपनी ही दुनिया रहती है लेकिन आज कम से कम ये तो जरूर हो रहा है कि पर्यटन के बहाने लोग धार्मिक स्थलों पर जा रहे हैं जिसमें युवा वर्ग भी शामिल रहते हैं। अगर ये युवा वर्ग मंदिरों में जाते हैं तो उनमें से कुछ के मन में तो भक्तिभाव जागृत होने की संभावना रहती है। अगर कुछ बच्चों में भी ये भाव आता है तो निश्चित तौर पर कुछ युवा वर्ग अच्छे मार्ग पर जरूर चलेंगे। धर्म अगर लोगों को मानवता के मार्ग पर ले जाने को प्रेरित करे तो ऐसे धर्म में कोई बुराई नहीं है लेकिन समस्या तब उत्पन्न हो जाती है जब लोग धार्मिक कट्टरता की वजह से हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।

 दरअसल किसी भी धर्म में हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। किसी भी धर्म में एक लचीलापन होना चाहिए। समय और परिस्थितियों के अनुसार उसमें समय समय पर सुधार की गुंजाइश होनी चाहिए। धर्म के मामले में हमें लकीर का फ़क़ीर नही बने रहना चाहिए। किसी भी धर्म में मानवतावादी पक्ष सबसे प्रबल होना चाहिए।आज पूरा विश्व अगर शांतिपूर्ण तरीके से रह रहा है तो इसके पीछे धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है वर्ना पूरा विश्व अराजक हो जाता लेकिन कुछ लोगों की कट्टरता की वजह से विश्व में आतंकवाद का खतरा बना रहता है। दरअसल इस तरह की मानसिकता वालों को धर्म से कोई लेना देना नहीं रहता है। ऐसे लोग धर्म की आड़ में समाज में अशांति फैलाने का कार्य करते हैं।

हिन्दू धर्म की खासियत रही है कि इस धर्म के मानने वाले कभी भी हिंसा में विश्वास नहीं रखते हैं। हिन्दू धर्म शुरू से शांति का पक्षधर रहा है और यही कारण है कि इस देश में बाहर से जो भी आया, वह इस देश की मिट्टी में रच बस गया। हिन्दू धर्म के मानने वालों ने कभी भी दूसरे धर्म के प्रति दुर्भावना नहीं रखी। आज इस देश में कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो अभी भी हिन्दू मुस्लिम इस देश में अमन और शांति से रह रहे हैं। कुछ राजनीतिक लोग अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के चक्कर में इस देश की गंगा यमुना तहज़ीब को ख़त्म करने पर तुले रहते हैं। हमें ये नही भूलना चाहिए कि अब इस देश में हिन्दू मुस्लिम समाज को एक साथ ही रहना है. कभी कभी कुछ लोग  धार्मिक जुलूसों पर अकारण हमला करके दंगा भड़काने का  काम करते हैं। दरअसल ऐसे अराजक तत्वों से कड़ाई से निपटने की आवश्यकता है। आज कुछ राज्यों में ऐसे लोगों पर सख़्ती बरती जाती है लेकिन कुछ राज्यों में इन पर वहाँ की सरकार कठोर कार्रवाई करने में हिचकती है। ऐसे राज्य देश की अखंडता के लिए खतरा बने हुए हैं।

दरअसल अब केंद्र और राज्यों में एक विचारधारा के राजनीतिक दलों का शासन होना चाहिए। दक्षिण के राज्य अपनी जातीय व्यवस्था के कारण देश के बाकी हिस्से से कटे हुए रहते हैं। पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुसलमान और बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण वहाँ की स्थिति भी अराजक है। वोटबैंक की राजनीति के चलते सरकार उंनको प्रश्रय देती रहती है. इसका परिणाम आने वाले समय बहुत भयानक रूप ले लेगा इसमें कोई संदेह नहीं।केरल में जिस तरह ईसाई मिशनरियों को छूट दी गई उसके फलस्वरूप ही वहाँ की स्थिति अराजक हो गई है। केरल में हिंदुओं के लिए बहुत मुश्किल स्थिति पैदा होते जा रही है ।

जिस तरह कुछ भ्रष्ट नेताओं पर ई डी का शिकंजा कसता जा रहा, उससे राजनीतिक दलों की मिट्टी पलीद होते जा रही है। एक एक करके बहुत से नेता जेल की हवा खा रहे हैं। इस मामले में विपक्ष कितना भी हो हल्ला मचा ले लेकिन आज की परिस्थिति में जो सरकार केंद्र में है वहाँ से भ्रष्ट नेताओं पर राहत की गुंजाइश कम ही दिखती है । आज भ्रष्ट लोगों में जबरदस्त दहशत है। ये पहली बार हो रहा है कि जाँच एजेंसियां बहुत ईमानदारी से काम कर रही है जबकि उन पर पक्षपात करने का आरोप लग रहा है। वैसे ये भी सच है कि सत्ता दल के नेताओं पर ई डी की कार्यवाही नहीं के बराबर हो रही है। जो नेता पहले भ्रष्ट श्रेणी में थे वे बीजेपी में आकर ईमानदार कैसे हो गए। दरअसल उनके खिलाफ भी वही कार्यवाही होनी चाहिए। जांच एजेन्सी को इसमें निष्पक्ष भूमिका निभाने की आवश्यकता है , तभी भ्रष्ट लोगों पर कार्रवाई संभव है।  किसी भी धर्म में हिंसा की गुंजाइश नहीं