
लखनऊ। जब 1947 में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तब तिरंगा देशभर में लहराया, लेकिन “एक भारत” का विचार अभी भी नाजुक था। उपमहाद्वीप कई हिस्सों में बँटा हुआ था—एक ओर ब्रिटिश भारत और दूसरी ओर 560 से अधिक रियासतें, जिनके अपने-अपने राजा, सेनाएँ और आकांक्षाएँ थीं। एक संयुक्त, लोकतांत्रिक गणराज्य का सपना उस समय सुनिश्चित नहीं था। विचारक संजय मुखी नें कहा कि ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर सरदार वल्लभभाई पटेल, जो उस समय भारत के उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार के रूप में उभरे। पटेल की अटूट दृढ़ता, कूटनीतिक कुशलता और दूरदृष्टि ने इन बिखरे हुए क्षेत्रों को एक राष्ट्र के सूत्र में पिरो दिया। वह दृष्टि जिसने राष्ट्र का निर्माण किया :संजय मुखी
उन्होंने कहा इतिहासकार राजमोहन गांधी कहते हैं “एकता की प्रेरणा जिसने पटेल के कार्य को मार्गदर्शन दिया, वहीं आधुनिक भारत की नींव है। आदर्शवाद से अधिक उनके यथार्थवाद ने देश को एकजुट रखा।” सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि दृढ़ विश्वास और राजनीतिक सूझबूझ से लैस पटेल और उनके सचिव सी.पी. मेनन ने रियासतों के शासकों को भारत में सम्मिलित होने के लिए राजी करने में अथक प्रयास किए। उन्होंने एग्रीमेंट ऑफ एक्सेशन (इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन) को एक कानूनी उपकरण के रूप में उपयोग किया और रियासतों के राजाओं की जिम्मेदारी व नियति की भावना को संबोधित किया।
संजय मुखी नें कहा कि 1949 के मध्य तक लगभग सभी रियासतें, कुछ जटिल मामलों जैसे हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर को छोड़कर, भारतीय संघ में शामिल हो गईं। पटेल ने स्वयं कहा था— “अब हर भारतीय को भूल जाना चाहिए कि वह राजपूत है, सिख है या जाट, उसे केवल यह याद रखना चाहिए कि वह भारतीय है।” आगे उन्होंने कहा कि यह केवल राजनीतिक वार्ता नहीं थी— यह स्वतंत्र भारत की पहली कूटनीतिक कवायद थी जिसने देश के मानचित्र, आत्मा और प्रशासनिक एकता को परिभाषित किया।
पटेल का प्रभाव केवल एकीकरण तक सीमित नहीं रहा। देश के पहले गृह मंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की स्थापना की। उनका मानना था कि ये संस्थाएँ कुशल प्रशासन के माध्यम से देश को एक सूत्र में बाँध सकती हैं। उनकी इस दूरदृष्टि ने भारत को एक इस्पाती ढाँचा प्रदान किया जो सात दशकों से अधिक समय तक कायम है।
पटेल ने कहा था—
“भारत की एकता बल प्रयोग से नहीं, बल्कि विश्वास से प्राप्त हुई है।” यह कथन उनके राजनीतिक दर्शन का सबसे स्थायी सत्य है। पटेल के अद्वितीय योगदान को मान्यता देते हुए, भारत सरकार ने 2014 में 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया। इस दिन देशभर में “रन फॉर यूनिटी”, सामूहिक शपथ ग्रहण और भव्य एकता परेड आयोजित की जाती है—जो भारत की सामूहिक एकता की इच्छाशक्ति का प्रतीक है।
इस वर्ष जब भारत सरदार पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है, तब उनकी प्रासंगिकता और भी गहरी प्रतीत होती है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और सांस्कृतिक विविधता के इस युग में पटेल का उदाहरण हमें याद दिलाता है कि एकता कोई नारा नहीं, बल्कि एक सतत नागरिक जिम्मेदारी है।
स्वतंत्रता के 78 वर्ष बाद भी भारत की आंतरिक एकता को निरंतर पोषण की आवश्यकता है। क्षेत्रीय आकांक्षाएँ, सामाजिक विभाजन और भाषाई विविधताएँ अक्सर संघीय ढाँचे की मजबूती की परीक्षा लेती हैं। लेकिन पटेल की भावना हर सहमति और हर सामूहिक प्रयास में जीवित है जो एक बेहतर भारत के निर्माण की दिशा में उठाया जाता है।
उनका संदेश आज भी युगों से गूंज रहा है— “एकता के बिना मानव शक्ति कोई शक्ति नहीं है, जब तक वह संगठित और समन्वित न हो।” अंत में उन्होंने कहा कि यही उस राष्ट्र की नींव है जिसकी रचना में पटेल ने अपना जीवन समर्पित किया। वह दृष्टि जिसने राष्ट्र का निर्माण किया :संजय मुखी






















