
आवासीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का हुआ समापन। संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाने का लिया गया संकल्प।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ द्वारा आयोजित आवासीय संस्कृत भाषा शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का समापन संस्थान के प्रेक्षागृह में हुआ। यह शिविर 2 मार्च 2025 से 11 मार्च 2025 तक चला, जिसमें प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए 75 महिला एवं पुरुष प्रतिभागियों ने भाग लिया।
दीप प्रज्वलन से हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ
कार्यक्रम की शुरुआत आस्था शुक्ला के स्वागत गीत से हुई, जबकि संचालन अमित पाण्डेय ने किया। मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर शुभारंभ किया। शिविर का समन्वय धीरज मैठाणी, अनिल गौतम एवं राधा शर्मा ने किया, जबकि शिक्षण कार्य राजन दुबे, कृति यादव, आस्था शुक्ला, सत्यम मिश्र एवं महेंद्र मिश्र ने संभाला। इस अवसर पर संस्थान गीतिका अनन्या श्रीवास्तव ने प्रस्तुत की, जबकि अनुभव कथन प्रवेश कुमार शुक्ल एवं शालिनी कश्यप ने किया। अभिनय गीत सौरभ मिश्रा एवं दीपिका मिश्रा ने प्रस्तुत किया, जबकि नाट्य प्रस्तुति आकांक्षा निगम एवं प्रेरिका अग्रवाल ने की। कार्यक्रम का समापन ज्योत्स्ना सिंह द्वारा शांति मंत्र के उच्चारण के साथ हुआ। संस्थान के इस प्रयास से संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को एक नई दिशा मिली है, जिससे संस्कृत को घर-घर तक पहुँचाने की मुहिम को बल मिलेगा।
संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार पर जोर
समापन सत्र में संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव ने कहा कि इस शिविर का उद्देश्य संस्कृत भाषा को जन-जन तक पहुँचाना, इसे दैनिक जीवन में उपयोगी बनाना और संस्कृत एवं संस्कृति के प्रति नवचेतना का संचार करना है। उन्होंने बताया कि संस्थान “मिस्ड कॉल योजना” (ऑनलाइन) और “गृहे-गृहे संस्कृतम् योजना” (ऑफलाइन) के माध्यम से संस्कृत प्रेमियों और छात्रों के लिए अभियान चला रहा है। संस्थान निःशुल्क सिविल सेवा कोचिंग, योग एवं पौरोहित्य प्रशिक्षण शिविरों का भी आयोजन कर रहा है, जिससे संस्कृत भाषा और संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो सके।
संस्कृत नाटक की प्रस्तुति और प्रमाण पत्र वितरण
शिविर के समापन समारोह में प्रतिभागियों ने संस्कृत में एक लघु नाटक प्रस्तुत किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। कार्यक्रम में सभी प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। समापन अवसर पर मुख्य वक्ता जगदानंद झा ने संस्कृत भाषा की भावी संभावनाओं पर प्रकाश डाला। योजनाप्रभारी प्रधान सहायक श्रीभगवान सिंह चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प