समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधिमण्डल ने अमेठी जनपद के ग्राम राजापुर कोहरा के बूथ एजेन्ट आलोक पाल की हत्या की जांच की और शोकाकुल परिवार से भेंट कर सांत्वना दी।स्मरणीय है अमेठी के थाना संग्रामपुर के ग्राम राजापुर कोहरा के बूथ एजेन्ट आलोक पाल को 2 मार्च 2022 को बुरी तरह पीटा गया था। 3 मार्च 2022 को उनकी मौत हो गई थी।समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधिमण्डल में प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ डॉ0 राजपाल कश्यप, प्रदेश महासचिव समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश श्याम लाल पाल, पूर्व जिलाध्यक्ष रघुवीर यादव, प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्र अमेठी महाराजी देवी तथा जिलाध्यक्ष राम उदित यादव शामिल थे।डॉ0 राज पाल कश्यप ने बताया कि मृतक समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार कर रहा था। उसके विरोधियों के हमले से 2 मार्च को उसके गम्भीर चोटे लगीं, 3 मार्च 2022 को उसकी मौत हो गई। उसका भाई भी घायल है। स्थानीय प्रशासन की भूमिका मूकदर्शक की रही। आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है।शोकाकुल परिवार ने सबको सुरक्षा मुहैया कराने, एक व्यक्ति की नौकरी, परिवार के तीन सदस्यों को शस्त्र लाइसेंस, आरोपितों की गिरफ्तारी तथा एक करोड़ मुआवजे की मांग की है। प्रतिनिधिमण्डल ने शोक संतप्त परिवार को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया।
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अभियुक्त का नाम पता:-
रमेश कुमार पुत्र हनुमान प्रसाद नि0 पूरे दतई थाना धानेपुर जनपद गोण्डा।
पंजीकृत...
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विद्याथियों के लिए गीता का महत्व
डा. विनोद बब्बर
गीता केवल हमारे लिए नहीं, सम्पूर्ण विश्व के लिए है। मानवमात्र की हित चिंतक है गीता। उसे किसी काल विशेष से भी बांधा नहीं जा सकता क्योंकि सर्वकालीन है गीता।हर युग, हर देश, हर परिवेश, हर समाज, हर आयु वर्ग के समक्ष चुनौतियां अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं। कुछ लोग इन चुनौतियांे के समक्ष घुटने टेक देते हैं परंतु अधिकांश उनसे पार पाने का प्रयास करते हैं। न जाने क्यों, कर्म करने का उतना तनाव नहीं, जितना कर्म फल का होता है। कुछ तनावग्रस्त होते हैं तो कुछ तनावों पर नियंत्रण करते हुए केवल कर्म करते रहने के संकल्प पर दृढ़ रहते हैं।एक विद्यार्थी के लिए भी गीता का महत्व है। आज की शिक्षा प्रणाली में किसी भी विद्यार्थी की योग्यता, प्रतिभा को मांपने का एकमात्र तरीका परीक्षा में प्राप्त अंक हैं। अतः यह स्वाभाविक ही है कि परीक्षा, विशेष रूप से बोर्ड की परीक्षा में पहली बार भाग लेने वाले छात्रों की दशा अर्जुन जैसी होती है। पहली बार अपने विद्यालय से दूर, बिल्कुल अलग परिवेश, चारों ओर औपचारिकता जैसी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक निश्चित समय में अधिकतम अंक प्राप्त करने की लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे एक किशोर की व्यथा को समझना मुश्किल नहीं है। नये तरह के ढेरो प्रश्न।
अधिकांश के उत्तर वह जानता है लेकिन उलझ जाता है कि किसे पहले? लेकिन कैसे आदि-आदि। उसे स्वयं की स्मरण शक्ति और क्षमता पर संदेह होने लगता है। तनावग्रस्त छात्र परेशान होता है क्योंकि वह नहीं जानता कि महात्मा गांधी ने कहा है, ‘जब शंकाएं मुझ पर हावी होती हैं, और निराशाएं मुझे घूरती हैं, आशा की कोई किरण नजर नहीं आती, तब मैं गीता की ओर देखता हूं।’प्रतियोगिता, परीक्षा और तनाव के संबंध में सभी जानते हैं। सबने अपने अपने समय में इसका अनुभव अवश्य किया है। तनाव होना तब तक सामान्य बात है जब तक तनाव का स्तर सामान्य रहे। असामान्य तनाव का अर्थ है- हमारी अपनी बुद्धि ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हो जाये।बस इस संतुलन को बरकरार रखने की कला हमें गीता से ही मिल सकती है। वह शिक्षा व जीवन में व्यावहारिक बनने की प्रेरणा देती है। आज के प्रतियोगी जीवन में हमें एक प्रेरक चाहिए। जो हमें समय प्रबंधन सिखाये, तनाव नियंत्रण के गुर बताये। श्रीकृष्ण एक महान प्रेरक हैं। और उनके श्रीमुख से प्रवाहित गीताज्ञान अज्ञान के अंत के लिए ही है। सोशल मीडिया, स्मार्ट फोन, इंटरनेट आदि की तकनीकी तो अभी आई हैं लेकिन महाभारत काल में भी इसकी झलक मिलती है। परिस्थितियां प्रमाण है कि ‘टेलीपैथी’, ‘दिव्यदृष्टि’ प्राप्त की जा सकती है अगर हम अपने कर्तव्यों को लेकर गंभीर रहें, आत्मविकास करें। यही बात एक विद्यार्थी को समझनी है कि गीता हमें स्मार्ट बनना सिखाती है। ऐसा होकर ही हम अपने जीवन की मूर्खताओं को पहले ढकते हैं और फिर अनुभव से उनसे छुटकारा पाते हैं।
कृष्ण कोई और नहीं, बल्कि हमारी चेतना है और तनावों, शंकाओं, विकारों से घिरा हमारा मन अर्जुन है। जो प्रश्न तब थे, वही अब भी हैं। हमारे हर सवाल का जवाब हमारे विवेक के पास है लेकिन विवेक सोया है, तो जवाब नहीं मिल सकता। गीता विवेकवान बनाती है। जिसका विवेक जागृत हो जाता है, उसका जीवन सफलता और प्रेरणा का गीत बन जाता है।श्रीमद्भगवद् गीता हमें स्वयं में विश्वास और ईश्वर में आस्था की प्रेरणा देते हुए सिखाती है कि हमें मैदान छोड़कर भागना नहीं है, बल्कि रचनात्मक बनना है। परिणाम का तनाव छोड़कर अपने कर्तव्य पथ पर चलते रहने वाला ही जीवन का आंनद प्राप्त करता हैं। तकनीक के विकास को अपना विकास मानने के कारण ही तो हम अपना आंतरिक विकास करना भूल गये है। इसी कारण किशोर छात्र के सामने काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर और अहंकार रूपी भाव तो हैं ही, अपसंस्कृति, नशा, कामुकता, विदेशी शक्तियों के भ्रमजाल, देशद्रोही विचारधारा जैसे अनेक शत्रु प्रलोभन और आकर्षण के साथ विद्यमान हैं। आज भी एक अपरिपक्व युवा उस अर्जुन की तरह उन्हें अपना मानते हुए उनसे युद्ध करने को सहज तैयार नहीं है। उसे इस फिसलन भरे वातावरण से निकलने और बचाने का काम श्रीमद् भागवत गीता ही कर सकती है।विश्व के श्रेष्ठ ग्रंथों में शामिल गीता, न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी, बल्कि कही और सुनी भी जाती है। द्वितीय अध्याय का 47 वां और सबसे अधिक प्रचलित श्लोक है-कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।चतुर्थ अध्याय का 39 वां श्लोक कहता है-श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दसवें अध्याय के 20वें श्लोक में कहा है -
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भाजपाई पहले बिजली का निजीकरण करेंगे, फिर बिजली की रेट बढ़ाएँगे, उसके बाद कर्मचारियों की छँटनी करेंगे, फिर ठेके पर लोग रखेंगे और...