नफरत विघटन और बंटवारे की बढ़ती हिंसा

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न्यायालय ने विभाजनकारी ताकतों को दिखाया आइना
न्यायालय ने विभाजनकारी ताकतों को दिखाया आइना
विकास श्रीवास्तव

दुनिया से यह बात छुपी नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, ट्विटर पर, आवाज़ उठाने वाली महिलाओं तथा महिला पत्रकारों तक के साथ गाली गलौज और रेप की धमकी इत्यादि लगातार देखने में आ रही है। गुरमेहर, रिया चक्रवर्ती से लेकर तमाम महिलाएँ भीड़ का शिकार बनीं। नफरत विघटन और बंटवारे की बढ़ती हिंसा

विकास श्रीवास्तव

लखनऊ। 2014 से लेकर के देशभर में मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण खबरें साल दर साल बढ़ती गई है। पिछले 9 वर्षों से केन्द्र की मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में आरएसएस लगातार देश में नफरत और विघटन के एजेंडे को मजबूत कर रहा है। ‘‘द कश्मीर फाइल्स’’, ‘‘द केरला स्टोरी’’ जैसी फिल्मों को पूरे देश में टैक्स फ्री करने के साथ-साथ राज्यवार सांप्रदायिक मुद्दे को गरमाने में भारतीय जनता पार्टी और उसकी राज्य सरकारों की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। गृह मंत्रालय संसद मे स्पष्ट कर चुका है कि भारत में 2016 और 2020 के बीच सांप्रदायिक और धार्मिक दंगों के 3,399 मामले सामने आए हैं। यह डेटा काफ़ी सटीक है और एनसीआरबी के आंकड़ों से भी मेल खाता है। वर्ष 2021 से 2023 के आंकड़े जबकि सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हो पा रहें हैं। फिर भी एनसीआरबी के प्रस्तुत डाटा के आधार पर 2014 से 2020 के बीच सांप्रदायिक दंगों की लगभग 5417 घटनाएं दर्ज हैं।

प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कहा कि इन बीते 9 वर्षों में आरएसएस की पृष्ठभूमि से निकले मौजूदा लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी भी नफरत विघटन और बंटवारे की बढ़ती हिंसा को रोक पाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं। मोदी जी के प्रधानमंत्री रहते हुए बीजेपी का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने, देश के किसी भी राज्य में पनप रहें जातीय और धार्मिक विवादों को हवा दिया है, इसके साथ-साथ ही अपनें नफ़रत और विघटन के एजेंडा को और मज़बूत किया है। सीमावर्ती राज्यों में चाहे जम्मू-कश्मीर हो, असम, मणिपुर व मिजोरम जैसे पूर्वाेत्तर के राज्यों में पनप रहे स्थानीय विवादों का बीजेपी/आरएसएस ने सांप्रदायिककरण करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में कोई कसर नहीं छोड़ा। सच्चाई किसी से छुपी नहीं है कि राष्ट्रीय सीमावर्ती अति संवेदनशील इन सभी राज्यों में आरएसएस के बड़े नेता राम माधवन, बीजेपी संगठन प्रभारी के तौर पर लगातार विवादों के घेरे में रहें है।

कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कहा कि आज प्रश्न उठता है कि मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर रेप की घटना क्यों हुई? भीड़ को कहाँ से ताक़त मिली? मैतेयी और कुकी नागा समुदायों में पनपे विवाद और असंतोष को न रोके जाने के पीछे का षडयंत्र क्या है? 79 दिनों तक यह पाप कृत्य भरा वीडियो केंद्र सरकार और मणिपुर राज्य सरकार के संज्ञान में क्यों नहीं पहले आया? अगर सरकार की जानकारी में था, तो मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह समेत दिल्ली में बैठे प्रधानमंत्री और उनकी केंद्र सरकार अब तक क्यों सो रही थी? महिला उत्पीड़न, दलितों, अतिपिछड़ों के उत्पीड़न की लगातार देखी जा रही तमाम घटनायें दिल्ली समेत कई राज्यों और सीमावर्ती राज्यों में पनपते अंसतोष को भी सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।

पिछले 9 वर्षों में याद करिए कि क्या-क्या हुआ है? कठुवा की बच्ची के रेप के आरोपियों को बचाने के लिए बीजेपी द्वारा तिरंगा रैली निकाली गई जांच के बाद आरोपी बीजेपी से ही जुड़े निकले। गुजरात में बिलकिस बानो गैंग रेप के अपराधियों को गुजरात सरकार और केंद्र सरकार की लचर नीतियों की वजह से छोड़ा ही नहीं गया बल्कि बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ताओं द्वारा उनको फूल मालाओं से सम्मानित भी किया गया। उत्तर प्रदेश का उन्नाव रेप कांड और हाथरस गैंगरेप, महिलाओं के साथ घटी वीभत्सता को देश आज भी भूला नहीं है। कई मामलों में बेटियों के शोषण का वीडियो आने के बाद पुलिस द्वारा शिकायतकर्ता लड़की और उसके परिवार जनों को आरोपी बनाने का षड्यंत्र किया गया और फँसा कर जेल में डाल दिया गया था। अभी ताजा मामला जिसमें भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर की ख्याति दिलाने वाली महिला पहलवानों के यौन शोषण का है, महीनों से लगातार पहलवान बेटियों का मजाक बनाया जा रहा है।

विकास श्रीवास्तव ने कहा कि संप्रदाय विशेष से जुड़े मामलों में अदालती प्रक्रिया के बाहर मीडिया ट्रायल के दौरान कुछ मीडिया हाउस द्वारा खबरों के प्रस्तुतिकरण में आरएसएस के एजेंडे पर काम करना देश के लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता सौहार्द के लिए  दुर्भाग्यपूर्ण है। आरएसएस/बीजेपी योजनाबद्ध रणनीति के तहत लगातार देश में हो रही धार्मिक जातीय हिंसा को भड़काने के साथ-साथ नफरत और विघटन की खाई को और बड़ी कर रही है। सच्चाई यह है कि यह नफरती भीड़ एक दिन में तैयार नहीं होती, योजनाबद्ध तरीके से समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लोगों की भावनाओं को भड़काने में पूरा सिस्टम काम करता है। सरकार और मीडिया को दलीय भावना और विचारधारा से ऊपर उठकर संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाना पडेगा।

दुनिया से यह बात छुपी नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, ट्विटर पर, आवाज़ उठाने वाली महिलाओं तथा महिला पत्रकारों तक के साथ गाली गलौज और रेप की धमकी इत्यादि लगातार देखने में आ रही है। गुरमेहर, रिया चक्रवर्ती से लेकर तमाम महिलाएँ भीड़ का शिकार बनीं। आज नफरत और विघटन एजेंडे के सहारे राजनीति करने वालों को पता है कि भीड़ बनकर जघन्य से जघन्य अपराध भी करो तो भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में बचा लिए जायेंगे। जब चुनाव हो तो बीजेपी वाले ज़रूर बचा लेंगे। ऐसे में समाज में एक कुत्सित धारणा बनती जा रही है कि इसे हिंदू बनाम अन्य बना देंगे और वैधानिक अवैधानिक किसी भी तरीके से भीड़ तंत्र के रूप में अपराध करने वालों को बचा ही लिया जायेगा। वहीं अपराधी की पहचान समुदाय विशेष से है तो वहां पर बुलडोजर की त्वरित कार्रवाई करके भारतीय संविधान की मूल भावना से विपरीत जाकर आरएसएस का एजेंडा भी सरकार द्वारा मजबूत किया जा रहा है जो देश की एकता व अखण्डता के लिए खतरा है। नफरत विघटन और बंटवारे की बढ़ती हिंसा