
डॉ.वेदप्रकाश
चिंता या पीड़ा सृजन का मूल है। आज उत्तराखंड के देहरादून में देश का पहला लेखक गांव बनकर तैयार हो चुका है। इसके मूल में एक लेखक की लेखकों के प्रति चिंता अथवा पीड़ा रही है। लेखक संवेदनशील व्यक्ति होता है। वह समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए लेखन करता है। वह ऐसे व्यक्ति अथवा नागरिकों का निर्माण करता है जो देश के विकास में अपना योगदान देते हैं। समूची भारतीय ज्ञान परंपरा जिस पर हमारी सनातन संस्कृति खड़ी है और जिसमें जीवन के अनेक सूत्र एवं मानवता के कल्याण की कामना है, वह लेखकों की ही देन है। यह भी सर्वविदित है कि लेखक का जीवन निहित स्वार्थों से परे होता है। परहित की चिंता में वह स्वयं को खापा देते हैं। अनेक लेखक ऐसे रहे हैं जिनका जीवन गरीबी और बदहाली में बीता है।
आज हम गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस पर गर्व करते हैं लेकिन उनका जीवन भी अभावों में ही बीता। मध्यकाल के अनेक कवि या तो राज्याश्रय में रहते थे अथवा वृद्धावस्था में काशी, वृंदावन जैसे तीर्थों पर जीवन यापन करते रहे। हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित प्रेमचंद के फटे जूते नामक पाठ भी प्रेमचंद की स्थिति को उजागर करता है तो दूसरी ओर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और नागार्जुन जैसे महत्वपूर्ण लेखकों का जीवन भी अभाव में ही बीता। आज भी अनेक लोग लेखन के चलते अभाव का जीवन जीते हैं। स्थिति यहां तक हो जाती है कि कई बार वृद्धावस्था में उनका कोई ठौर ठिकाना भी नहीं रहता। क्या आज हमें इस विषय पर गंभीरता से विचार नहीं करना चाहिए? ध्यान रहे विकसित राष्ट्र का मूल वहां की ज्ञान परंपराएं हैं, जिन्हें विकसित करने का काम लेखक करते हैं।
आज वाइब्रेंट विलेज और स्मार्ट सिटी की बात हो रही है, क्या ऐसे में लेखक गांव भी नहीं बसाने चाहिए? हाल ही में यूनेस्को द्वारा केरल में स्थित कोझीकोड को भारत का पहला साहित्य शहर घोषित किया गया है। जानकारी के अनुसार इस शहर में 500 से अधिक पुस्तकालय और 70 से अधिक प्रकाशन गृह है। यहां सालाना 400 से 500 पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। शहर में कई पुस्तक मेले, साहित्य उत्सव और लेखक सम्मेलन भी आयोजित किए जाते हैं, क्या आज देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे साहित्य शहर नहीं बनने चाहिए? लेखन साधना सापेक्ष कार्य है। लेखक को लिखने के लिए एक वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। जिसमें उसकी चिंतन प्रक्रिया आकार लेती है। पर्वतीय क्षेत्र,नदी, समुद्र के किनारे अथवा शांत वातावरण में लेखक साधनारत होकर रचना करता है। उसकी रचनाएं समाज के काम आती हैं।
भारतवर्ष के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता के साथ-साथ लेखक अभी थे। उनकी अनेक रचनाएं हम सबके सामने हैं। एक बार उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी की एक पुस्तक का लोकार्पण करते हुए उन्होंने बहुत कष्ट महसूस करते हुए मंच से कहा था कि- इस देश में लेखकों का सम्मान नहीं है, क्या भारत में कभी लेखकों के लिए लेखक गांव बन सकेगा? उन्होंने श्याम नारायण पांडेय जैसे उत्कृष्ट लेखक के जीवन का हवाला देते हुए कई लेखकों के कष्टकर जीवन की बात कही थी। स्पष्टत अटल जी की पीड़ा लेखकों के कष्टमय जीवन से उपजी हुई पीड़ा थी, जिससे प्रेरणा लेते हुए डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने लेखक गांव बनाने का संकल्प लिया। आज देहरादून के थानों नामक स्थान पर भारत का पहला लेखक गांव आकर ले चुका है।

देहरादून के पर्वतीय अंचल में बसाया गया यह लेखक गांव अपने आप में अनूठा है। स्पर्श हिमालय अभियान के अंतर्गत बनाया गया यह लेखक गांव अनेक विशेषताओं से संपन्न है। इस लेखक गांव का मुख्य आकर्षण यहां बने लेखक कुटीर हैं। ये कुटीर मूल रूप से ऐसे लेखकों को समर्पित होंगे जिन्होंने अपना सारा जीवन लेखन में लगा दिया, लेकिन वृद्धावस्था में उनके पास कोई आर्थिक सुदृढता अथवा देखभाल का सहारा नहीं है। इसी प्रकार यहां अतिथि लेखक विश्राम गृह बनाए गए हैं, जिनमें नवोदित लेखक आकर कुछ समय रहे सकें और अपने लेखन को दिशा प्रदान कर सकें। हिमालय रसोई इस लेखक गांव का एक अन्य आकर्षण एवं महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसमें हिमालय के आंचल में उत्पादित शुद्ध जैविक उत्पादों से निर्मित आहार की व्यवस्था रहेगी। उत्तराखंड के क्षेत्रीय लोग,देश एवं विदेश के लोग यहां आकर साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां संपन्न कर सकें, इसके लिए लेखक गांव में हिमालय सभागार एवं पुस्तकालय बनाया जा रहा है।
हिमालय संग्रहालय में समूचे हिमालयी साहित्य एवं संस्कृति की झलक मिल सके इसके लिए प्रयास किया जा रहा है। लेखक गांव ज्योतिष विज्ञान केंद्र, योग एवं ज्ञान केंद्र, पंचकर्म एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र आदि नई और महत्वपूर्ण आवश्यकताओं का भी बड़ा केंद्र बनेगा। आने वाली 25, 26 एवं 27 अक्टूबर को लेखक गांव में अंतरराष्ट्रीय साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ विश्व के लगभग 50 देशों से साहित्य, संस्कृति एवं कला के अनेक विद्वान भागीदारी करेंगे। यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि ऐसे आयोजन भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं कला को तो समृद्ध करते ही हैं राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर समन्वय और ज्ञान- विज्ञान के प्रचार- प्रसार का भी कार्य करते हैं।
लेखक गांव की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि- इस लेखक गांव का उद्देश्य देश- दुनिया के उन विलक्षण विद्वान साहित्यकारों, गीतकारों, कलाकारों को ठौर प्रदान करना है, जिनकी लेखनी ने अनेक कालजयी रचनाओं का सर्जन किया है…। साररूप में भारत का यह पहला लेखक गांव एक नया संकल्प है, जिसका जन्म लेखकों की पीड़ा को लेकर एक लेखक के मन में हुआ और अब इसकी सिद्धि भी एक लेखक द्वारा हो रही है। भारत का यह पहला लेखक गांव लेखकों को समर्पित है और आने वाले दिनों में इससे प्रेरणा लेकर देश में कुछ अन्य स्थानों पर भी लेखक गांव बनेंगे, ऐसा विश्वास है। लेखकों की चिंता से बना पहला लेखक गांव