बिहार में सामाजिक न्याय के दम तोड़ते मुद्दे

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बिहार में सामाजिक न्याय के दम तोड़ते मुद्दे
बिहार में सामाजिक न्याय के दम तोड़ते मुद्दे

ओ.पी.सोनिक

      पिछले महीने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार के दरभंगा में अम्बेडकर छात्रावास का दौरा किया जबकि पुलिस ने उन्हें रोकने के प्रयास भी किए। छात्रावास दौरे के करीब एक महीने बाद उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के विद्याार्थियों की छात्रवृत्तियों से संबंधित मुद्दों पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। बिहार में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को डा0 अम्बेडकर के अपमान के आरोप में घेरने की राजनीतिक कोशिशें जारी हैं। राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने लालू प्रसाद यादव को उक्त मामले में नोटिस जारी कर जबाव देने को कहा है। बिहार में सामाजिक न्याय के दम तोड़ते मुद्दे

अब एक नए मुद्दे ने बिहार की राजनीति में निष्क्रिय पड़े नेताओं को सक्रिय कर दिया है। बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने रोहतास जिले के शिवसागर प्रखंड परिसर में डा0 अम्बेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए पर कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को अपने परम्परागत तरीके से भुनाने में जुट गयी है। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने डा0 अम्बेडकर की अनावरित प्रतिमा को दूध से धोकर शुद्धिकरण किया है। कांग्रेस का मानना है कि उप मुख्यमंत्री ने डा0 अम्बेडकर की प्रतिमा का अनावरण कर उसे अशुद्ध कर दिया है।

    अगर विशुद्ध राजनीति के नजरिए से देखें तो कांग्रेस ने डा0 अम्बेडकर की प्रतिमा पर दूध बहाकर ओछी राजनीति का परिचय दिया है। जिस राज्य में वंचित वर्ग के हजारों बच्चे कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हों , जो राज्य गरीब राज्यों की सूची में शुमार हो, उस राज्य में दूध को इस तरह बहाकर बर्बाद करना उचित नहीं माना जा सकता है और न ही अम्बेडकर की विचारधारा से इसका कोई ताल्लुक है। जहाँ तक शुद्धिकरण की बात है, तो डा0 अम्बेडकर को समाज में शुद्धिकरण के नाम पर समय-समय पर अपमानित होना पड़ा था। राहुल गांधी ने अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के जिन मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है, कांग्रेसी कार्यकताओं ने उन मुद्दों पर पानी फेरने काम किया है। राहुल गांधी ने बिहार का जिक्र करते हुए लिखा है कि बिहार में वर्ष 2021-22 में अनुसूचित जाति के किसी भी विद्यार्थी को पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृति नहीं मिली। वर्ष 2022-23 में कुल 1 लाख 36 हजार विद्यार्थियों को पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति मिली और वर्ष 2023-24 में पोस्ट-मैट्रिक का लाभ लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या घटकर 69 हजार रह गयी।

    राज्य सभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में पेश आंकड़ों के अनुसार बिहार में वर्ष 2021 में अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित 5 हजार 842, वर्ष 2022 में 6 हजार 509 मामले दर्ज हुए. वर्ष 2022 के मामलों में 168 दलितों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस वर्ष दलितों की हत्या के मामलों में बिहार टाप 5 राज्यों में दूसरे नम्बर पर रहा।

जहां तक दलितों को विधिक सहायता देने की बात है तो बिहार में वर्ष 2022 में 11 हजार 877, वर्ष 2023 में संख्या घटकर 6 हजार 348 रह गयी और वर्ष 2024 में विधिक सहायता पाने वाले दलितों की संख्या सिमटकर मात्र 4 हजार 802 रह गयी। इसी वर्ष अम्बेडकर जयंती के मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘डा0 अम्बेडकर समग्र सेवा अभियान’ का शुभारम्भ किया जिसके तहत बिहार सरकार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति वर्ग से संबंधित योजनाओ का गांव- गांव जाकर प्रसार-प्रसार करेगी। बड़ा सवाल है कि बिहार में नीतीश सरकार अब से पहल क्या कर रही थी। राज्य सभा में पेश सरकारी आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2021 से लेकर 2023 तक योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यक्रम आयोजित करने वाले 20 राज्य केन्द्र शासित प्रदेशों की सूची में बिहार शामिल नहीं है।

    भारत की राजनीति में अक्सर डा0 अम्बेडकर के सम्मान से जुड़े मुद्दे तो वही रहते हैं पर मुद्दों के राजनीतिक किरदार बदल जाते हैं। जनवरी 2023 में बिहार के बक्सर में केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने किसानों के मुद्दों को डा0 अम्बेडकर की प्रतिमा के सामने उपवास किया था। उन पर डा0 अम्बेडकर की प्रतिमा को अशुद्ध करने का आरोप लगाते हुए राजद और जदयू के कार्यकताओं ने प्रतिमा का शुद्धिकरण किया था। डा0 अम्बेडकर के जीते जी जिस राजनीति ने डा0 अम्बेडकर को राजनीति की जमीन पर टिकने नहीं दिया, संसद में प्रमोशन में दलितों के आरक्षण का बिल फाड़कर फेंक दिया, आज वही लोग डा0 अम्बेडकर के सम्मान और संविधान को बचाने की राजनीति करते नजर आ रहे हैं। बड़ा सवाल है कि हमारे देश के राजनेता और उनके कार्यकर्ता जितना जोर डा0 अम्बेडकर की प्रतिमाओं के शुद्धिकरण पर देते हैं, उतना जोर डा0 अम्बेडकर को मानने वाले वंचित वर्ग के प्रति मानसिकता के शुद्धिकरण पर क्यों नहीं देते।

   इसमें कोई दो राय नहीं कि सामाजिक न्याय के आन्दोलन में बिहार की अहम भूमिका रही है। फिर भी आजादी के 78 वर्षों बाद भी बिहार के वंचित वर्गों को सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है। बिहार की राजनीति का ऐतिहासिक सच है कि बिहार की सामाजिक विषमताओं की कोख से कई जातिवादी नरसंहारों का जन्म हुआ है। बसपा संस्थापक कांशीराम ने बिहार की बदहाली के बारे में कहा था कि ‘बिहार खनिज सम्पदाओं के मामले में अमीर राज्य है. जितनी खनिज सम्पदाएं अकेले बिहार में हैं, उतनी खनिज सम्पदाएं तो जर्मनी के पास भी नहीं हैं। जर्मनी विकास की बुलंदियों को छू रहा है और बिहार गरीबी के दलदल में फंसा है।‘

  बिहार में सामाजिक विषमताओं की गूढ़ परम्पराएं बिहार के विकास को बाधित कर रही हैं, सामाजिक न्याय के मुद्दे दम तोड़ रहे हैं। अगर हम सही मायने में बिहार को विकसित राज्य बनाना चाहते हैं तो तमाम सामाजिक विषमताओं के पूर्वाग्रहों को त्याग कर तथागत बुद्ध के इस चमन में समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की खुशबू फैला सकते हैं। बिहार में सामाजिक न्याय के दम तोड़ते मुद्दे