हार-जीत की जारी है जंग…..

148

योगी बनाम अखिलेश,हार-जीत की जारी है जंग..…

मधुकर त्रिवेदी


सन् 2022 में उत्तर प्रदे श में होने वाले विधानसभा चुनावों में अब कुछ ही दिन रह गए हैं। नेताओं की यात्राओं और-जनसभाओं का दौर शुरू हो गया है। ये चुनाव इस दृश्टि से बहुत महत्वपूर्णा है कि इनका असर दो वर्श बाद सन् 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भी दिखाई देगा। सब मानते हैं कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से ही होकर जाता है। यह उत्तर प्रदे श एक तरह से देश के प्रधानमंत्रियों की टकसाल भी है। इसलिए यद्यपि चुनाव राज्य के हैं फिर भी प्रधानमंत्री मोदी जी धुआंधार दौरे कर रहे हैं, शिलान्यास, लोकार्पण का अनवरत क्रम जारी है। उन्हें भविश्य की चिंता है जो उचित भी है।


उत्तर प्रदेश के चुनाव मोर्चे पर एक ओर भाजपा है तो दूसरी ओर उसके मुकाबलें समाजवादी पार्टी है।प्रधानमंत्री जी पिछले दिनों गोरखपुर में थे तो उन्होंने कहा ‘लाल टोपी वाले यूपी के लिए रेड एलर्ट हैं‘ यानी खतरे की घंटी  है। अखिलेश जी ने कहा लाल टोपी भाजपा के लिए रेड एलर्ट है वही इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर करेगी। चुनावी दंगल में इन्हीं दोनों पाटियों में कड़ी टक्कर है। भाजपा जीतेगी तो एक रिकार्ड बनेगा क्योंकि इधर कोई मुख्यमंत्री दुबारा नहीं बनता रहा है। समाजवादी पार्टी अपनी खोई सत्ता हासिल नहीं करेगी तो उसके भविश्य पर प्र श्नचिह्न लगने लगेंगे। सो, प्रदेश में इस बार सीधी टक्कर वर्तमान मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्य नाथ और अखिले श यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के बीच है।


योगी जी मुख्यमंत्री है, भाजपा सत्तारूढ़ दल है तो उसके प्रति कुछ न कुछ असंतोश पनपना स्वभाविक है। पर उससे भी बढ़कर पार्टी के अंदर का असंतोश घातक होता है। योगी जी ने अपने कार्यकाल में अधिकारियों की टीम पर ज्यादा भरोसा किया है, अपने सहयोगियों पर कम। दूसरे वे कड़क भाशा ही नहीं बोलते हैं, व्यवहार में भी कड़क हैं। उनकी भाशा में ठोक दो, राम नाम सत्य कर दो, जवाब में गोली मार दो, सात पीढि़यों तक सजा, बुलडोजर चला दो जैसी शब्दावली है। बुआ-बबुआ, अब्बाजान, अखिले श यादव अली जिन्ना, जिन्नावादी, जिस गाड़ी में सपा का झंडा उसमें बैठा जाना पहचाना गुंडा जैसी संज्ञाएं भाजपा खेमे से दी जा रही है। पिछले चुनावों में शमसान-कब्रिस्तान और ईद-दिवाली में बिजली सप्लाई में फर्क के साथ तुश्टीकरण पर जोर था।


भाजपा खेमे में विकास का हो-हल्ला है तो साथ में हिन्दुत्व और जयश्रीराम की भी चर्चा है। अयोध्या और का शीनगरी के कायाकल्प के साथ राममन्दिर निर्माण और मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान का विवाद भी भाजपा के एजेण्डा में है। सच पूछो तो इन्ही लाइनों पर सन् 2022 के चुनाव को जीतने की भाजपाई-आरएसएस की रणनीति है।भाजपा के साथ एक दिक्कत यह भी है कि उसके कई सहयेागी राजनीतिक दल साथ छोड़ गए हैं और नए दल जुड़े नहीं हैं। छोटे-छोटे कई दल मसलन आजाद समाज पार्टी, प्रगति शील समाजवादी पार्टी (लोहिया) वीआईपी, सुभासपा, महानदल, गोंडवाना पार्टी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट ) और ओबैसी साहब की पार्टी आदि ऐन्टी भाजपा माहौल बनाने वाले हैं। भाजपा के साथ अपना दल (सोने लाल), निशाद पार्टी यही बचे हैं।


भाजपा राज में प श्चिम में किसान आंदोलन, पूर्वांचल में बाढ़ और धान-गेहूं की खरीद में धांधली की वजह से, भाजपा सरकार के प्रति जो असंतोश है उसे कम करने के लिए किसानों की मांग पर तीन कृषि विधेयकों की वापसी और गोरखपुर में एम्स तथा खाद का कारखाना सहित पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की सौगात जैसे कदम उठाए गए हैं।सौगात बांटने का सिलसिला जिला-मडं ल स्तर पर जारी है। लेकिन महंगाई बेरोजगारी, शिक् शा-स्वास्थ्य के क् शत्रे में बदहाली, किसान-नौजवान में असंतोश, नए उद्योगों की स्थापना न होना, कोरोना काल में सरकारी संवेदन शून्यता ऐसे मुद्दे हैं जिनके दाग भाजपा सरकार पर लग रहे हैं। महिलाओं और बच्चियों के साथ दुश्कर्म की घटनाएं थम नहीं रही है। पुलिस की छवि बिगडी़ है।लाख निर्देशों के बावजूद प्रशासन कीकछुआ चाल बरकरार है और अपनी सरकार की कार्यप्रणाली के अंतर्विरोधों से निबटना और इन्कम्बैंसी पर रोक लगा पाना ऐसी चुनौतियां है, योगी जी और भाजपा को जिनसे मुकाबला है।


विपक्ष में अखिलेश जी की साफ सुथरी छवि है। शुरू से अब तक उनका सीधा वार राज्य सरकार पर है। उनका कहना है कि भाजपा सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में सिवाय समाजवादी सरकार के कामों को अपना बताने, उन पर अपने नाम का ठप्पा लगाने और उद्घाटन का उद्घाटन, शिलान्यास का शिलान्यास करने के अलावा कुछ नहीं किया है। एक यूनिट बिजली नहीं बनाई। किसानों-नौजवानों से किए वादे नहीं निभाए। उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर के संस्थान बनाए जिन्हें भाजपा ने बिगाड़ दिए। न्यूयार्क की तर्ज पर यूपी डायल पुलिस सेवा शुरू की भाजपा ने उसका नम्बर बदल कर 112 किया और पूरी व्यवस्था बर्बाद कर दी। 108 एम्बूलेंस सेवा, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेट्रो सेवा सब सपा सरकार की देन है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की शुरूआत स्वयं अखिलेश जी ने की थी, गोरखपुर में एम्स के लिए मुफ्त जमीन उन्होंने दी थी। राजनीति में और खासकर चुनावी दौर में आरोप-प्रत्यारोप खूब लगते हैं। इसमें नीतिगत आलोचना तो पीछे रह जाती है व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप ज्यादा मुखर होते हैं।कई बार ऐसी बातें ‘बिलो दि बेल्ट‘ भी देखने को मिलती है। योगी जी अखिले श जी को अपराधी तत्वों का आश्रयदाता बताते है तो अखिले श जी भी चिलमची, लैपटाप-स्मार्टफोन चलाने में अनभिज्ञ और नई टेक्नालॉजी से अनजान जैसे आरोप योगी जी पर उछाल देते हैं।


इस बार चुनाव अभियान में अखिलेश यादव ने अपने साथ ओपी राजभर, संजय चौहान, कृष्णा पटेल, के शव देव मौर्य को तो जोड़ा ही सबसे मजबूत साथी जयंत चौधरी को बनाया है। राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में जाट वोट सम्हालेंगे जो किसान आंदोलन की वजह से भाजपा से नाराज है। अखिलेश जी डॉ0 लोहिया-अम्बेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए चुनाव में उदार हिन्दू छवि के साथ जातीय जनगणना की आड़ में पिछड़ा वर्ग को और मुस्लिमों को (एमवाई समीकरण) साधते हुए चुनाव की रणनीति बना रहे हैं। सवर्णों को जोड़ने का भी काम चल रहा है। उन्होंने अपनी पार्टी में बसपा, कांग्रेस से आए पिछड़े, दलित, मुस्लिम नेताओं के साथ ब्राह्मणों को भी शामिल किया है। पिछड़ा वर्ग, दलित और ब्राह्मण इन तीन वोट बैंकों पर भाजपा-समाजवादी पार्टी दोनों की निगाहें हैं। आबादी के हिसाब से पिछड़ा वर्ग ज्यादा प्रभावी है। ब्राह्मण वोटरों पर बसपा सुप्रीमों मायावती भी पूरा जोर लगाए हैं। उनके महासचिव सती श मिश्र की पत्नी, बेटा इसी फ्रंट पर काम कर रहे हैं।

कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने लुभावना चुनावी घोशणा पत्र जारी कर महिलाओं को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है। कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं रह जाने से उसकी ताजा चुनावी गणित में कोई गिनती नहीं कर रहा है।कांग्रेस में अंतर्कलह का भी अंत नहीं हो रहा है। जहां तक मायावती और बहुजन समाज पार्टी की बात है, अभी तक उनका तालमेल किसी अन्य दल से नहीं हुआ। वे अपने दलित वोट बैंक के साथ ब्राह्मणों को जोड़कर 2017 की जीत को दुहराना चाहती है। लेकिन इधर उनकी पार्टी से तमाम विधायकों ने टा-टा कर दिया है और वे विरोध में सक्रिय हुए हैं। पार्टी के लिए ये शुभ लक् शण नहीं कहे जा सकते हैं। महिलाओं और मुस्लिम आबादी को लुभाने की को शिशें भी जोरों पर हैं। मुस्लिम स शक्तीकरण के नाम पर ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इŸिाहादुल मुसलमीन के नेता असदुददीन की प्रदेश  में आमद पर पहले जैसी अखबारी सुर्खियां बन रही थी अब उनका ज्यादा जिक्र नहीं। उनसे सपा को होने वाला खतरा भापं कर ही अखिले श यादव ने पटेल जयंती पर जिन्ना कार्ड खेला जिसे भाजपा ने लपक कर ध्रुवीकरण की को शिश की।

इस बार भाजपा राम मन्दिर की चर्चा के साथ कारसेवकों पर 1990 में गोली चलने को भी मुद्दा बनाकर उछाल रही है। यह घटना श्री मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल की है। फिर भी भाजपा के मुकाबले में समाजवादी पार्टी पूरे दमखम के साथ मैदान में है। उसकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही है। खासकर बुन्देलखण्ड की सभाओं और रथयात्रा में अखिलेश जी को मिला जनसमर्थन भाजपा की पे शानी पर पसीना लाने वाला है।बुन्देलखडं की सभी 19 सीटों पर भाजपा गत विधानसभा चुनाव जीती थी। वहां सभाओं में भारी भीड़ और सपा का झंडा लहराना वाकई ध्यान खींचता है। मेरठ की सभा सपा की भी काफी कामयाब रही। योगीजी भी सपा के गढ़ आजमगढ़, इटावा में दहाड़ चुके हैं। मोदीजी अखिले श यादव का नाम लेकर उन्हें कोस रहे हैं। अखिले श जी फिलहाल अपने दल की एक नई छवि उभारने में लगे हैं ताकि हर वर्ग का वोटर उनसे जुड़ सके। उनका नया नारा-‘नई हवा है, नई सपा है, बड़ों का हाथ, युवा का साथ‘ सन् 2022 के चुनाव में कितनी सफलता दिलाता है, इसी पर पार्टी का भविश्य तय होगा। देखना है इस दंगल में कौन किसको चित करता है और कौन किस पर विजय हासिल करता है।

             (लेखक ‘यशभारती’ सम्मान एवं प्रभाश जो शी पुरस्कार प्राप्त वरि श्ठ पत्रकार है)