डॉ. नीरज भारद्वाज
भारतवर्ष की हर एक वस्तु धन-धान्य से भरी हुई है। इसका कण-कण स्वर्ण से भरा हुआ है। यहां की वनस्पति, पेड़-पौधे, नदी, पर्वत, मिट्टी सभी अथहा गुणों से भरे हुए हैं। भारतवर्ष युगों-युगों से विश्व पटल पर सोने की चिड़िया रहा है और आगे भी रहेगा। यहां का हर एक जीव आनंद में रहता है, उमंग, उल्लास से भरा हर समय अपने अंदर नव संचार भरता रहता है। हमारे देवी-देवता, आदि पुरुष और वर्तमान में भी कितने ही पुरुष और महापुरुष पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं, वृक्षों आदि से सीधे संवाद करते रहे हैं। हमारी जीवन दयानी नदियां और उनका मधुर स्वर हमें आनंदित करता रहता है। तीज-त्योहार और अर्थव्यवस्था
हमारे देश का ऋतु चक्र हमें नई सोच और विचारों को जन्म देता रहता है। प्रकृति हमारी सबसे बड़ी गुरू है। प्रकृति को आधार मानकर हमारे कवियों ने काव्य-महाकाव्य सभी कुछ लिखा है। आयुर्वेद तो हमारी सेहत का खजाना है, इसे विश्व को सभी ने माना है। हमारी संस्कृति ही हमारी आस्था और व्यवस्था का आधा बिंदु रही है। हमारी अर्थव्यवस्था कभी नहीं डूबती है और नहीं कभी डूबेगी। हमारी धन-दौलत-संपदा को देखकर ही विदेशी आक्रमणकारी हमारे ऊपर हमला करते रहे। यहां के खजानों को लूटते रहे। हमारे देवी-देवताओं के मंदिरों को लूटते रहे। अपने धर्म का प्रचार करने हेतु हमारे मंदिरों को तोड़ते रहे, उनमें रखा खजाना लूटते रहे। हमारे पूर्वजों ने कितने ही आक्रमणों को झेला है। हमारे कितने ही देशभक्त इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करके, हमें स्वतंत्र राष्ट्र देकर चले गए।
कितने ही हमले, आक्रमण, शासन होने के बाद भी हम बने हुए हैं। इसमें हमारी संस्कृति, आस्था, संस्कारों आदि का बहुत बड़ा योगदान है। हमारी संस्कृति में तीज-त्योहारों का बहुत बड़ा महत्व है। यह तीज-त्योहार हमारे अंदर संचार भरते हैं। इन तीज-त्योहारों के चलते ही हमारे बाजारों में एक नई ऊर्जा और कार्यशैली बढ़ती है। अर्थव्यवस्था को नया जीवन मिलता है। सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में नव संचार आ जाता है। फसलों के साथ जुड़ा यह देश, देवी-देवताओं के आधार पर तीज-त्यौहार मानता आ रहा है। हमारे देश में तीज-त्योहारों की कमी नहीं है। इन तीज-त्योहारों के चलते, हर एक वर्ग और स्थिति के लोगों को काम मिलता है। अर्थव्यवस्था तेजी से दौड़ती है। इस देश में रहने वाले हर एक व्यक्ति को काम मिलता है। इसके विपरीत विदेश की बात करें तो वहां तीज-त्योहारों की कमी है। उमंग, उत्साह कम है। इसलिए अर्थव्यवस्था लगभग ठप पड़ी रहती है। दूसरों का मुंह ताकती रहती है।
भारतवर्ष अपने में एक वैश्विक अर्थव्यवस्था है। कितनी ही भाषाएँ, कितने ही रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा आदि सभी इसकी सुंदरता को चार चाँद लगा देते हैं। विश्व हमसे जुड़ना चाहता है, हम विश्व से अपने आप जुड़ जाते हैं। सबसे ज्यादा फैसलें, तीज-त्यौहार, ऋतु चक्र, मौसम आदि भारत की भूमि पर हैं। हम विश्वगुरु के साथ-साथ विश्व अर्थव्यवस्था हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसे छोटा करके बताया-समझाया, जो बहुत गलत विचार था। हमारे देश में युगों-युगों से लोग व्यापार करने आते रहे हैं और आते रहेंगे। हमने विश्व को शांति का संदेश दिया है। हमारे देश के साथ इतनी लूटपाट, हमले, शासन होने के बाद भी हमने वैश्विक विरोध नहीं, बल्कि विश्व के एकीकरण और शांति की बात कही है। हम सभी के साथ प्रेम से रहना चाहते हैं। हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था, हमारी प्राचीन परंपराओं, संस्कृति और तीज-त्योहारों का ही फल है। हमें अपने तीज-त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाने चाहिए। नकारात्मक सोच और विचार से दूर रहना चाहिए। हम तोड़ने की नहीं, जोड़ने की बात करते हैं। तीज-त्योहार और अर्थव्यवस्था