उच्च मेरिटधारी आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को कोटे तक सीमित रखना अन्यायपूर्ण। शिक्षक भर्ती महाघोटाला:चौटाला को 10 वर्ष की जेल तो योगी को क्यों नहीं। शिक्षक भर्ती महाघोटाला:चौटाला को 10 वर्ष की जेल तो योगी को क्यों नहीं..?
लखनऊ। उत्तर प्रदेश आरक्षण नियमावली-1994 की धारा 3(6) के अनुसार ओबीसी को 27%,एससी को 21% व एसटी को 2% आरक्षण कोटा निर्धारित है। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा- 2020 के सम्बंध में मा.उच्च न्यायालय इलाहाबाद खंड पीठ लखनऊ के निर्णय का स्वागत किया है।उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कई भर्तियों में ओबीसी,एससी वर्ग के कोटे की खुलेआम हकमारी की गयी।उन्होंने कहा कि अनारक्षित कोटा का मतलब सामान्य वर्ग की जातियों के लिए आरक्षित नहीं होता,बल्कि मेरिट के आधार पर सभी वर्गों का इसमें समायोजन होता है।बेसिक शिक्षा परिषद ने गलत तरीके से एमआरसी(मेरिटोरियस रिजर्व कटेगरी) को लागू कर आरक्षण कोटे की हकमारी की गयी। उन्होंने कहा कि किसी भर्ती परीक्षा में ओबीसी,एससी,एसटी की मेरिट या कटऑफ मार्क्स सामान्य वर्ग के समतुल्य या अधिक हो तो उसे उसके वर्ग के लिए आरक्षित कोटे में न रखकर उसका समायोजन किया जायेगा। 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती में ओबीसी,एससी के 18,988 पदों की हकमारी की गयी। ओबीसी को 27% की जगह मात्र 3.84% कोटा देकर 23.16%,एससी को 21% की जगह 15.61% ही.कोटा देकर 5.39%.की डकैती की गयी।एमआरसी चयन के बाद जिला आबंटन की प्रक्रिया को चयन से पूर्व लागू कर पिछड़े,दलित वर्ग के अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था।इस भर्ती घोटाला के विरूद्ध ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के देश का सबसे बङा आंदोलन चलाया,लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके साथ न्याय नहीं किया। शिक्षक भर्ती महाघोटाला:चौटाला को 10 वर्ष की जेल तो योगी को क्यों नहीं..?
निषाद ने बताया कि उत्तर प्रदेश आरक्षण नियमावली-1994 के अनुसार 69,000 पदों में ओबीसी को 18,630,एससी को 14,490 व एसटी को 1,380 पद मिलना चाहिए था। 69000 सहायक शिक्षक भर्ती की सम्पूर्ण चयन सूची को लखनऊ पीठ ने रद्द करते हुए 18,988 पदों पर सरकारी घोटाला को साबित किया है।ओबीसी,एससी,एसटी अभ्यर्थी जो सामान्य के बराबर अंक प्राप्त किए थे उन्हें सामान्य में शामिल न कर आरक्षित वर्ग में शामिल किया गया था जो कि सरकार की देखरेख में अधिकारियों द्वारा किया गया महा घोटाला था।
निषाद ने बताया कि 69000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले पर 16 अगस्त को लखनऊ हाईकोर्ट की डबल बेंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुए पूरी चयन सूची को ही रद्द कर दिया है । 90 दिन के अंदर नई चयन सूची प्राप्तांक एवं गुणांक के साथ बनाने का आदेश दिया है।जस्टिस ए. आर. मसूदी और जस्टिस बृजराज सिंह की बेंच ने पूरी चयन सूची को रद्द करते हुए सिंगल बेंच के आदेश को भी निरस्त कर दिया । सिंगल बेंच ने 8 मार्च 2023 को फैसला दिया था कि 69000 शिक्षक भर्ती 2020 की लिस्ट को रद्द किया जाता है। डबल बेंच ने भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने के स्थान पर नई सूची 1981 एवं 1984 आरक्षण नियमावली के अनुसार बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं।सिंगल बेंच ने एटीआरई (अपेक्स टैलेंट रिवॉर्ड एग्जाम ) को पात्रता परीक्षा नहीं माना था। डबल बेंच ने इस आदेश को रद्द करते हुए आरक्षण नियमावली 1994 की धारा 3 (6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन करने का सरकार को आदेश दिया है। कोर्ट ने 3 महीने के अंदर नई लिस्ट रिजर्वेशन का पालन करते हुए सरकार से देने को कहा है। वहीं एटीआरई परीक्षा को पात्रता परीक्षा माना है।
न्यायालय के अनुसार सामान्य सीट पर अगर आरक्षित वर्ग का मेरीटोरियस कैंडिडेट सामान्य वर्ग के बराबर अंक पाता है, तो उसको सामान्य वर्ग में रखा जाएगा। बाकी की 27% और 21% सीटों को ओबीसी/एससी से भरा जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा है कि 69000 शिक्षक भर्ती में बड़े स्तर पर 18,988 सीटों का घोटाला हुआ है। अर्थात अब 18,988 ओबीसी एवं एससी अभ्यर्थी सामान्य में शामिल होंगे और जो सामान्य अभ्यर्थी सरकार की कृपा से नौकरी पा गए थे उन्हें बाहर जाना पड़ेगा।लेकिन अब इन्तजार रहेगा कि क्या उप्र सरकार इस आदेश का पालन करेगी ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। निषाद ने कहा कि इसी तरह का भर्ती घोटाला हरियाणा में हुआ था जिसके आरोप में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उनके पुत्र सहित 50 अधिकारियों को 10 साल की सजा हुई और केछ दिनों पूर्व चौटाला की रिहाई हुई। उन्होंने कहा कि जब शिक्षक भर्ती घोटाले में चौटाला आदि को सजा हुई तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,तत्कालीन शिक्षामंत्री सतीश द्विवेदी,बेसिक शिक्षा सचिव सहित दोषी अधिकारियों को सजा व जेल क्यों नहीं? मुख्यमंत्री को तो इतने बङे घोटाले की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए। शिक्षक भर्ती महाघोटाला:चौटाला को 10 वर्ष की जेल तो योगी को क्यों नहीं..?
नोट-यह लेखक के अपने विचार संपादक मंडल का सहमत होना न होना जरुरी नहीं है।