योग सिंधू में संघ की जलधारा

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योग सिंधू में संघ की जलधारा
योग सिंधू में संघ की जलधारा
राकेश सैन

“योग सिंधू में संघ की जलधारा” केवल एक संगठन की भूमिका का वर्णन नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे योग जैसी सार्वभौमिक साधना को सामाजिक-सांस्कृतिक दिशा देने का कार्य संघ जैसी संस्थाओं ने किया है। यह मिलन आधुनिक भारत की आध्यात्मिक चेतना और सामाजिक चेतना के संगम का प्रतीक है।

भारत की सनातन संस्कृति की तरह योग भी सनातन है, अविरल है। यह तो संभव है कि आकाश के तारे गिन लिए जाएं या धरती के कणों की सही-सही संख्या का पता लगा लिया जाए परन्तु योग के सिंधू में कितनी जलधाराएं मिलीं, कितने नद समाहित हुए इसका अनुमान लगाना भी असंभव है। इन्हीं अनन्त जलराशियों में शामिल है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसका उद्देश्य व्यक्ति उत्थान से राष्ट्रोत्थान रहा है और संघ ने योग को अपने इस काम का साधन बनाया है। योग सिंधू में संघ की जलधारा

सृष्टि के प्रारम्भ से ही भगवान शिव को ‘योगेश्वर’ माना गया है। अनेक योग परंपराएँ जैसे नाथयोग, हठयोग, मंत्रयोग, लययोग, राजयोग, आदि सभी भगवान शिव से ही प्रारंभ मानी जाती हैं। गुरु गोरखनाथजी के सम्प्रदाय में शिव को ‘आदिनाथके रूप में पूजा जाता है और ध्यान मुद्रा में उनकी उपासना की जाती है। नाथ संप्रदाय में योग को शिवविद्या या महायोगविद्या कहा गया है, जिसमें आत्मा और ब्रह्मांड के सामरस्य की अनुभूति प्रमुख है। शिवगीता में भगवान शिवजी ने भगवान राम को योग का दिव्य उपदेश दिया, जब वे सीता-वियोग से व्याकुल थे। उन्होंने आत्मज्ञान, चित्त की एकाग्रता, और भौतिक आसक्ति से विरक्ति का विस्तार से निरूपण किया। भगवान शिव को ध्यानमग्न योगी के रूप में भी दर्शाया गया है, जिनका ध्यान जीवन के परम लक्ष्य ‘मोक्षकी ओर उन्मुख करता है। वेदों में वर्णित शिवसंकल्पसूक्त योग के लिए वैदिक प्रेरणा का आधार है, जो भगवान शिव की चेतना और व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

रामायणकाल में महर्षि वसिष्ठ ने भगवान श्रीराम को गहन अद्वैत वेदान्त के सिद्धांतों के माध्यम से योग का मार्ग बताया है। राम को उपदेश करते हुए महर्षि वसिष्ठ कहते हैं – द्वौ क्रमौ चित्तनाशस्य योगो ज्ञानं च राघव। योगो वृत्तिनिरोधो हि ज्ञानं सम्यगवेक्षणम्॥

महर्षि वसिष्ठ योग के अत्यंत प्राचीन और समग्र दृष्टा माने जाते हैं। वे सप्तर्षि-मंडल में स्थित रहकर आज भी विश्वकल्याण में लगे हुए हैं। महाभारत में योग को आत्मसाधना और अंत:करण की शुद्धि का मार्ग माना गया है। महर्षि वेद व्यासजी ने ध्यानयोग के लिए द्वादश साधनों (देश, कर्म, आहार, दृष्टि, मन आदि) के संयम को अनिवार्य बताया है। इसके शान्ति पर्व में ऋषियों को योग की 12 विधियों से ध्यानयोग का अभ्यास करते बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण को भी ‘योगेश्वर’ कहा गया है क्योंकि वे न केवल योग के आचार्य हैं बल्कि स्वयं योग के मूर्तिमान स्वरूप भी हैं। भगवद्गीता को स्वयं भगवान की साक्षात योगयुक्त वाणी कहा गया है, जो आज भी अज्ञान और मोह का नाश कर आत्मबोध करा सकती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विभिन्न योगों का उपदेश दिया – कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्ति योग, और ध्यानयोग। ‘समत्वं योग उच्यते’ और ‘योग: कर्मसु कौशलम’ जैसे श्लोक योग को जीवन की कुशलता और समत्व की दशा से जोड़ते हैं।

इसी तरह महर्षि पतंजलि, महर्षि चरक, आदिगुरु शंकराचार्य जी से लेकर आधुनिक काल के योग गुरुओं, शिक्षकों व साधकों सहित अनेक ज्ञात-अज्ञात जलनद योग के सिंधू को अपने ज्ञान से समृद्ध करते रहे हैं। इन्हीं जलधाराओं में एक सम्मानित नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जो अपने जन्म से ही भारतीय संस्कृति व अपने सांस्कृतिक मानबिन्दुओं की पुनस्र्थापना के काम में लगा है। संघ की स्थापना 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा की गई थी, जिनका उद्देश्य था राष्ट्रभक्ति, शारीरिक और मानसिक विकास और आत्मानुशासन के माध्यम से भारत के युवाओं को संगठित करना। योग को संघ के आद्यात्मिक और शारीरिक प्रशिक्षण के अनिवार्य भाग के रूप में अपनाया गया। संघ की शाखाओं में सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, ध्यान और आसनों का नियमित अभ्यास कराया जाता है।

योग और संघ का संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मनियंत्रण, सामाजिक सेवा, समरसता और आध्यात्मिक जागरण से भी जुड़ा है। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार स्वयं योग साधक थे और उन्होंने शाखा पद्धति में योग को अनिवार्य रूप से जोड़ा।संघ के दूसरे सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने भी योग को आंतरिक तप और अनुशासन के अंग के रूप में देखा। उनका कहना था, ‘यदि स्वास्थ्य-रक्षा तथा रोग-प्रतिकार करने के लिए योगासनों के अभ्यास की ओर लोगों ने ध्यान दिया तो सर्वसाधारण जनता के स्वास्थ्य में सुधार हो कर उनका औषधियों पर होने वाला व्यय कम होगा तथा सब दृष्टि से उनका कल्याण होगा।’

योग सिंधू में संघ की जलधारा
योग सिंधू में संघ की जलधारा

योग केवल आत्मोन्नति का साधन नहीं बल्कि समाजोद्धार और राष्ट्रनिर्माण का भी पथ है। यही दृष्टिकोण संघ द्वारा अपनाया गया। संघ के प्रमुख शिक्षा वर्गों में योगासन और ध्यान की विधिवत् शिक्षा दी जाती है। योग के माध्यम से स्वयंसेवकों में संयम, साहस और शारीरिक स्फूर्ति का विकास किया जाता है, ताकि वे सेवाकार्यों में तत्पर रह सकें। आज भी संघ की हजारों शाखाओं में योगाभ्यास अनिवार्य गतिविधियों में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक स्वयंसेवक के रूप में संघ से जुड़े रहे हैं। उनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा और उसे विश्वपटल पर स्थापित करना इस संघ परंपरा की ही एक आधुनिक अभिव्यक्ति है। संघ का यह दृष्टिकोण ‘योग ही युक्ति है, योग ही शक्ति है’, के सूत्र में संक्षेपित किया जा सकता है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2015 के अनुसार, ‘योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है।’

संघ द्वारा योग दिवस पर पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘संयुक्त राष्ट्र की 69वीं महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा से सभी भारतीय, भारतवंशी व दुनिया के लाखों योग-प्रेमी अतीव आनंद तथा अपार गौरव का अनुभव कर रहे हैं। यह अत्यंत हर्ष की बात है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के अपने सम्बोधन में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का जो प्रस्ताव रखा उसे अभूतपूर्व समर्थन मिला। नेपाल ने तुरंत इसका स्वागत किया। 175 सभासद देश इसके सह-प्रस्तावक बनें तथा तीन महीने से कम समय में 11 दिसम्बर, 2014 को बिना मतदान के, आम सहमति से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।

mअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है। ‘युज’ धातु से बने योग शब्द का अर्थ है जोडऩा तथा समाधि। योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, महर्षि पतंजलि जैसे ऋषियों के अनुसार यह शरीर मन, बुद्धि और आत्मा को जोडऩे की समग्र जीवन पद्धति है। शास्त्रों में ‘योगश्चित्तवृत्ति निरोध:’, ‘मन:प्रशमनोपाय: योग:’ तथा ‘समत्वंयोगउच्यते’ आदि विविध प्रकार से योग की व्याख्या की गयी है, जिसे अपना कर व्यक्ति शान्त व निरामय जीवन का अनुभव करता है। योग का अनुसरण कर संतुलित तथा प्रकृति से सुसंगत जीवन जीने का प्रयास करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसमें दुनिया के विभिन्न संस्कृतियों के सामान्य व्यक्ति से लेकर प्रसिद्ध व्यक्तियों, उद्यमियों तथा राजनयिकों आदि का समावेश है। विश्व भर में योग का प्रसार करने के लिए अनेक संतों, योगाचार्यों तथा योग प्रशिक्षकों ने अपना योगदान दिया है, ऐसे सभी महानुभावों के प्रति प्रतिनिधि सभा कृतज्ञता व्यक्त करती है। समस्त योग-प्रेमी जनता का कर्तव्य है कि दुनिया के कोने कोने में योग का सन्देश प्रसारित करे।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा भारतीय राजनयिकों, सहप्रस्तावक व प्रस्ताव के समर्थन में बोलने वालेस दस्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का अभिनन्दन करती है जिन्होंने इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्वीकृत कराने में योगदान दिया। प्रतिनिधि सभा का यह विश्वास है कि योग दिवस मनाने व योगाधारित एकात्म जीवनशैली को स्वीकार करने से सर्वत्र वास्तविक सौहार्द तथा वैश्विक एकता का वातावरण बनेगा।

अ.भा. प्रतिनिधि सभा केंद्र व राज्य सरकारों से अनुरोध करती है कि इस पहल को आगे बढ़ाते हुए योग का शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समावेश करें, योग पर अनुसन्धान की योजनाओं को प्रोत्साहित करें तथा समाज जीवन में योग के प्रसार के हरसंभव प्रयास करें। प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, विश्व में भारतीय मूल के लोगों तथा सभी योग-प्रेमियों का आवाहन करती है कि योग के प्रसार के माध्यम से समूचे विश्व का जीवन आनंदमय स्वस्थ और धारणक्षम बनाने के लिए प्रयासरतर हैं।’

वृत्तपत्र में नाम छपेगा, पहनूंगा स्वागत समुहार। छोड़ चलो यह क्षुद्र भावना, हिन्दू राष्ट्र के तारणहार।। के सिद्धांत पर चलते हुए संघ ने कभी किसी काम का श्रेय नहीं लिया परन्तु योग रूपी सिंधू में संघ की अविरल धारा के योगदान को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। योग सिंधू में संघ की जलधारा