धार्मिक और पौराणिक स्थल चित्रकूट धाम

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धार्मिक और पौराणिक स्थल चित्रकूट धाम

चित्रकूट धाम विभिन्न पर्यटन स्थलों से भरा हुआ है। चित्रकूट में कई धार्मिक, दर्शिनीय और घूमने वाले स्थान है। चित्रकूट की पावन भूमि अनेक दर्शनीय स्थलों से भरी हुई है।

चित्रकूट धाम उत्तर विंध्य रेंज में स्थित एक छोटा सा पर्यटन शहर है। यह उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट और मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिलों में स्थित है। चित्रकूट हिंदू पौराणिक कथाओं और महाकाव्य रामायण की वजह से बहुत अधिक महत्व रखता हैं। पौराणिक कथाओं से पता चलता हैं कि अपने निर्वासन के समय में भगवान राम, माता सीता और श्री लक्ष्मण ने 14 में से 11 वर्ष का वनवास इसी स्थान पर गुजारा था।

धार्मिक और पौराणिक स्थल चित्रकूट धाम

चित्रकूट की यात्रा प्रारंभ होती है मंदाकिनी और पयस्वनी के संगम स्थल रामघाट से यहां श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का पिण्ड तर्पण यिका था। स्नान करने के बाद चित्रकूट के महाराजा धिराज 1008 मतगजेन्द्र नाथ जी स्वामी के रूद्रभिषेक पर जल चढाकर यात्रा की शुरूआत की जाती है। मंदिर में चार रूद्रवतार भगवान शंकर की मूर्तियां प्रतिष्थपित हैं। आदिकाल की मूर्ति स्वंय सृष्टि रचयिता बृहमा जी द्वारा स्थापित की गई थी।

मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थ स्थलों में एक है चित्रकूट, जो ना सिर्फ आस्था का बसेरा है बल्कि पौराणिक काल से इसका बहुत ही विशेष महत्त्व बताया गया है। ये वो जगह है जिसका उल्लेख भारत की धार्मिक पुस्तक रामायण में भी मिलता है, जहां बताया गया है कि भगवान श्रीराम ने इसी स्थान पर देवी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे।

चित्रकूट धाम उत्तर विंध्य रेंज में स्थित एक छोटा सा पर्यटन शहर है। यह उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट और मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले में स्थित है। चित्रकूट में ढेरों धार्मिक और घूमने योग्य स्थान हैं और इसके अलावा चित्रकूट की पावन भूमि अनेक दर्शनीय स्थलों से भी भरी हुई है। ऐसे में यदि आप इस पवित्र धाम की यात्रा करने जा रहे हैं तो आपको आज हम यहां पर स्थित कई महत्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं।देखा जाये तो चित्रकूट में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कामदगिरि की परिक्रमा तथा देव दर्शन ही माने जाते हैं। हालांकि, इसके अलावा भी अन्य कई दार्शनिक स्थल हैं जहां पर आप भ्रमण कर सकते हैं जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं

चित्रकूट में घूमने की जगह-

सीतापुर एक छोटा सा क़स्बा है जो पयोष्णी के किनारे बसा हुआ है। सीतापुर का पुराना नाम जैसिंहपुर था, यही चित्रकूट की मुख्य बस्ती है।

राम घाट- राम घाट वह घाट है जहां प्रभु राम नित्य स्नान किया करते थे। इसी घाट पर राम भरत मिलाप मंदिर भी है और इसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा भी है। मंदाकिनी नदी के तट पर बने राम घाट में अनेक धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं।चित्रकूट पर्वत से डेढ़ किलोमीटर पूर्व पयस्विनी (मंदाकिनी) नदी तट निर्मित रामधाट भक्तों एवं श्रद्धालुओं के लिए बड़ा ही पवित्र स्थान माना जाता है। इसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा भी है ,पूज्य पाद गोस्वामी जी को श्रीराम के दर्शन श्री हनुमान जी की प्रेरणा से इसी घाट में हुये थे।

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तोतामुखी श्री हनुमान जी द्वारा उपदेश किये जाने से यहाँ पर एक तोतामुखी हनुमान जी की प्रतिमा आज भी पायी जाती है। चित्रकूट में दर्शन करने वाली जगह राम घाट मंदाकनी नदी के किनारे पर बना हुआ हैं। कुछ कथाओं से पता चलता हैं कि वनवास काल के समय में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह पर कुछ समय व्यातीत किया था। सुबह के समय भक्तगण स्तुति करने के लिए नदी में खड़े होते होते हैं।

कामदगिरि- सीतापुर से करीब डेढ़ मील की दूरी पर स्थित कामदगिरि नाम की एक पहाड़ी है जिसे बेहद ही पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इसके ऊपर चढ़ा नहीं जाता बल्कि इसकी परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा तक़रीबन तीन मील की है, जो कि पूरा पक्का मार्ग बना हुआ है। चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण स्थान श्री कामद्गिरी है। इसको भगवान का ही स्वरूप माना जाता है। इसमें प्रवेश के चार द्वार हैं। जिसमें श्रीकामद्गिरी का उत्तरी द्वार मुख्यद्वार के नाम से जाना जाता है।

श्री रामघाट से स्नान करके अधिकतर लोग श्री कामद्गिरी के मुख्य दरवाजे पर आते तथा यहीं से प्रदक्षिणा आरम्भा करते हैं। इस स्थान में वैष्णव सन्तों के आश्रम बने हुये हैं, जिनमें संतों दीन, हीन, अपग्ग अपाहिज व्यत्तियों की सेवा होती है। वर्तमान काल में श्री श्री 108 श्री प्रेम पुजारी दास नाम के सन्त इन आश्रमों के संचालक हैं, जिनकी अथक परीश्रम एवं व्यक्तित्व से यहाँ अनेकों परमार्थ कार्य चल रहे हैं। इस पवित्र पर्वत का काफी धार्मिक महत्व है।

सीता रसोई –

यह स्थान विन्ध्य पर्वत पर हनुमान धारा के ऊपर स्थित है। पर देवी सीता की रसोई है। इसका पुराना नाम जमदग्नि तीर्थ है। भगवान राम एवं लखनलाल जी के लिए माँ जानकी जी ने इस स्थान पर फलाहार तैयार किया था, ऐसी किंवदन्ती है, माता सीता ने जिन चीजों से यहां रसोई बनाई थी उसके चिन्ह आज भी यहां देखे जा सकते हैं।

गुप्त गोदावरी-

चित्रकूट में घूमने वाला स्थान गुप्त गोदावरी राम घाट के दक्षिण में 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक आकर्षित गुफा है। माना जाता हैं कि गोदावरी गुफा के अंदर की चट्टानों से एक बारहमासी धारा निकलती हैं और गोदावरी नदी की और एक अन्य चट्टान में बहती हुई गायब हो जाती हैं। एक अन्य रहस्यमयी बात यह हैं कि एक विशाल चट्टान को छत से बाहर निकलते हुए देखा जाता है। कहते हैं कि यह विशाल दानव मयंक का अवशेष है।


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हनुमान धारा-

चित्रकूट धाम के दर्शनीय स्थलों में हनुमान धारा एक प्रमुख पर्यटक स्थल हैं जोकि चित्रकूट पर्यटन स्थल से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर चित्रकूट के जंगल में एक पहाड़ी पर स्थित हैं। यह स्थान हनुमान जी महाराज को समर्पित हैं और हनुमान जी के दर्शन करने के लिए सलानियों 360 सीढ़ियां चढ़के जाना होता है। चित्रकूट में भगवान राम की गाथाओं से पता चलता हैं कि लंका में आग लगाने के बाद बजरंग बलि ने इस पहाड़ी पर छलांग लगाई थी और अपनी गुस्सा को शांत करने के लिए इस धारा के ठन्डे पानी में खड़े होकर अपनी गुस्सा को शांत किया था। इसलिए चित्रकूट धाम की इस धारा को हनुमान धारा के नाम से जाना जाता है।

यह तीर्थस्थल अनुसूया आश्रम से लगभग 6 किलोमीटर पश्चिम में है। एक लम्बी गुफा से निरन्तर जल स्त्राव होता रहता है। भीतर अँधेरा होने से यात्री दीपक (गैस) के प्रकाश में अन्दर प्रवेश करते है। इसके भीतर एक कुण्ड है, जिसे सीता कुण्ड कहते है जो दरवाजे से 15-16 गज की दूरी पर है। गुफा से पानी की धारा कुण्डों पर गिरती है और वही लृप्त हो जाती है, इसी से इसे गुप्त गोदावरी कहते है। यहाँ का प्राकृतिक कला-कौशल अद्भुत है। जलवाही गुफा के बगल में एक दूसरी विशाल गुफा है, जिसका ऊपरी भाग काफी ऊँचा है। छत पर एक ऐसा पत्थर लटका हुआ है जो हिलता रहता है। इसे लोग ‘खटखटा चोर’ कहते है, जिसके पीछे अनेक किंवदन्तियाँ जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था।

हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। पर्वत के भीतर से शुण्डाकार निर्मल जलधारा श्री हनुमान जी की बायीं भुजा पर पड़ती है। इसे देखने से शंकर भगवान के मस्तक पर गंगावरण के दृश्य की कल्पना होने लगती है। मूर्ति के पास तक पहुँचने के लिए नीचे से 360 सीढि़याँ बनी हुई है। इसका जल शीतल और स्वच्छ है। 365 दिन यह जल आता रहता है। यह जल कहां से आता है यह किसी को जानकारी नहीं है। यदि किसी व्यक्ति को दमा की बिमारी है तो यह जल पीने से काफी लोगों को लाभ मिला है। इस के दर्शन से हर एक व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है तथा मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।

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जानकी कुण्ड-

चित्रकूट में घूमने वाली जगहों में शामिल जानकी कुंड मंदाकनी नदी का एक सुंदर किनारा हैं। इस किनारे पर सीढियां बनी हुई हैं और यहां पर मिलने वाले पैरों के चिन्हों को माता जानकी के पैरो के निशान माने जाते हैं। भगवान राम के वनवास के दौरान यह स्थान माता जानकी का सबसे पसंदीदा स्थान था। जानकी कुंड के पास ही राम जानकी मंदिर बना हुआ हैं और यहां हनुमानी जी की विशाल मूर्ती के दर्शन भी किए जा सकते हैं।

कामदगिरी पर्वत-

चित्रकूट के पवित्र और रमणीय स्थानों में शामिल यहां का कामदगिरि पर्वत्त यहां आने वाले टूरिस्टों को अति-प्रिय लगता हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार इस खूबसूरत सृष्टी की रचना करते समय परम पिता ब्रह्मा जी ने चित्रकूट के इस पावन स्थान पर 108 अग्नि कुंडों के साथ हवन किया था। अपने निर्वासन काल के दौरान भगवान राम ने भी इस स्थान पर कुछ समय व्यतीत किया था। धनुषाकार इस पर्वत पर एक विशाल झील है जो सैलानियों को आकर्षित करती हैं।

भरत मिलाप,चरण-पादुका –

यह स्थान कामदगिरि के परिक्रमा पथ पर है। कैकेयी के द्वारा श्रीराम को वनवास दे दिये जाने पर जब श्री भरत अपने ननिहाल से अयोध्या पहुंचे, तथा उन्हें श्रीराम के वनवास की खबर मिली, तब वह अपने छोटे भाई शत्रुधन सहित, गुरू वशिष्ठ एवं तीनों माताओं, मंत्रियों तथा राज्य के असंख्य नर-नारियों को लेकर भगवान राम को मनाने चित्रकूट आये, यह वही स्थान है, जहाँ भरत राम का मिलन हुआ था। वह मिलन,जिसमें पर्वतराज की कठिन शिलायें भी पिघल कर पानी-पानी हो गयी थी, जिसके कारण पाषाण शिला में उनके चरण चिन्ह अंकित हो गये हैं। पिघली हुई उन शिलाओं का चिहनावशेष आज भी उस अपूर्व मिलन की याद को ताजा कर देता है।

जानकी कुण्ड –

रामघाट से तक़रीबन 2 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुण्ड स्थित है। बताया जाता है कि जनक पुत्री होने के कारण सीता को ‘जानकी’ कहा जाता था और चूंकि जानकी यहां स्नान करती थीं और इसी वजह से यह स्थान आगे चलकर जानकी कुण्ड के नाम से मशहूर हो गया। कहा जाता है कि इस जगह के समीप जाकर ऊपर चढ़ने पर चढ़ाई कम पड़ती है और यही से थोड़ा उतरने पर हनुमान धारा है। यहां से एक पतली धारा हनुमानजी के आगे कुंड में गिरती है और हनुमान धारा से 100 सीढ़ी ऊपर सीता रसोई है।

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