काम सुरक्षा का करते जेलों में घटतौली..! डिप्टी जेलर मूल काम छोड़कर बंदियों से करते वसूली। बंदियों की रिहाई से लेकर मुलाहिजा तक करते नंबरदार।
राकेश यादव
लखनऊ। प्रदेश की जेलों में डिप्टी जेलर बंदियों को सुरक्षा करने के बजाए घटतौली करने में जुटे रहते है। जेलों में डिप्टी जेलर का अधिकांश काम नंबरदार करते हैं। यह बात सुनने और पढ़ने में भले ही अटपटी लगे लेकिन इस सच को जेलों में आसानी से देखा जा सकता है। यही वजह है कि जेलों में आए दिन गलत रिहाई और बंदियों के प्रतिदिन गलत तरीके से अदालत भेजे जाने की शिकायतें मिलती है। हकीकत यह है सुरक्षा के लिए तैनात किए गए यह अधिकारी अपने मूल काम को छोड़कर उगाही करने में जुटे रहते है।
जेलों में बंदियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जेलर और डिप्टी जेलर की होती है। जिस जेल पर दो जेलर तैनात होते हैं वहां पर एक जेल प्रशासन और दूसरा जेल सर्किल का प्रभारी होता है। जेलर के सहयोग के जेलों में चार से छह डिप्टी जेलर तैनात किए जाते हैं। डिप्टी जेलरों के पास कैदियाना, हवालात, गल्ला गोदाम, मुलाकात और मिसलेनियस का प्रभार होता है। सूत्रों का कहना है डिप्टी जेलर के प्रभार वाले इन कामों में अधिकांश काम राइटर बंदी जिन्हे नंबरदार कहा जाता है वह करते है। जेल में बंदियों के राशन वितरण की जिम्मेदारी गल्ला गोदाम प्रभारी की होती है। गल्ला गोदाम प्रभारी बंदियों की सुरक्षा के बजाए दिनभर राशन की जुगाड की नापतौल कराने में जुटे रहते हैं। अधिकारी बंदियों के राशन में जमकर कटौती करते हैं। कटौती के इस राशन की खपत कैंटीन में छोला भटूरा, छोला चावल, पूड़ी सब्जी, ब्रेड पकौड़ा, समोसा सरीखी तमाम खानपान की वस्तुएं बनाकर की जाती है। गल्ला गोदाम में राशन की कटौती और कैंटीन में अनाप शनाप दामों में बेंचकर मोटी रकम वसूल की जाती है।
लखनऊ जेल के गल्ला गोदाम से मिली थी 35 लाख की नगदी
करीब तीन साल पहले राजधानी की जिला जेल के गल्ला गोदाम से 35 लाख रुपए नगद बरामद हुए थे। यह अलग बात है इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई। बताया गया की गल्ला गोदाम में काम करने वाले दो राइटर बंदियों के बीच विवाद हो गया था। एक बंदी ने इसकी शिकायत कर दी। शिकायत के बाद जेल प्रशासन की छापामारी में यह धनराशि बरामद हुई थी। जेल प्रशासन ने करीब सवा लाख बरामद होने की बात स्वीकार भी की। इसकी दो डीआईजी से जांच भी कराई गई लेकिन दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। ऐसा तब किया गया जब जेल के अंदर पैसा ले जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
इसी प्रकार हवालात और कैदियाना का काम भी प्रभारी डिप्टी जेलर के बजाए राइटर बंदी ही करते हैं। सूत्र बताते है हवालात के राइटर बंदी सुविधा शुल्क लेकर बगैर पेशी के ही बंदियों को अदालत भेज देते है। राइटर बंदियों के बी वारंट नहीं चढ़ाने की वजह से कई बंदियों और कैदियों की गलत रिहाई तक हो जाती है। हकीकत यह है कि जेल के यह अधिकारी अपना मूल काम छोड़कर अनाप शनाप तरीके से अवैध वसूली के काम में लगे रहते है। यही वजह है कि जेलों में घटनाएं थमने का नाम नही ले रही हैं। उधर इस संबंध में डीआईजी जेल मुख्यालय आरएन पांडेय से बात करने का प्रयास किया गया तो उनका फोन नहीं उठा। भेजे गए मैसेज का भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।