डॉ.नूतन ठाकुर
लखनऊ। अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने कल एसटीएफ द्वारा असद और गुलाम मोहम्मद के कथित इनकाउंटर के मामले में गंभीर सवाल खड़े करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से इस मामले में शिकायत की है.उन्होंने डिप्टी एसपी एसटीएफ नवेंदु कुमार द्वारा थाना बड़गांव, झांसी में दर्ज कराए गए तीन एफआईआर और एसटीएफ द्वारा इस संबंध में जारी किए गए मौके के विभिन्न फोटोग्राफ के आधार पर 12 संदेह के बिंदु बताए हैं. उन्होंने कहा है कि यह सारे बिंदु इस कथित एनकाउंटर की सत्यता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं.असद एनकाउंटर में 12 बिंदुओं पर सवाल, NHRC से शिकायत.
इन बिंदुओं में एसटीएफ द्वारा एफआईआर में मौके पर असद और गुलाम के जिंदा रहने के दावे, मौके पर इन दोनों के शरीर की पोजीशन, खुद घटनास्थल की स्थिति, घटनास्थल पर पाए गए मोटरसाइकिल की स्थिति, मृतकों द्वारा पिस्तौल के पकड़े जाने की स्थिति आदि के आधार पर रखे गए सवाल शामिल हैं.अमिताभ ठाकुर ने अपनी शिकायत में कहा है कि यह विधि का स्थापित सिद्धांत है कि राज्य या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को मारने का अधिकार नहीं है और किसी भी व्यक्ति की जान मात्र न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार ही ली जा सकती है. किसी व्यक्ति के दुर्दांत अपराधी होने के नाम पर उसे मारा नहीं जा सकता है.उन्होंने कहा कि यदि ऐसी स्थिति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो व्यवस्था पूरी तरह अराजक हो जाएगी.
एसटीएफ द्वारा किए गए असद और गुलाम मोहम्मद के कथित एनकाउंटर के संबंध में नवेंदु कुमार, डिप्टी एसपी, एसटीएफ द्वारा थाना बड़गांव झांसी में दर्ज कराए गए तीन एफआईआर और एसटीएफ द्वारा मौके की जारी की गई विभिन्न फोटोग्राफ के आधार पर सामने आए 12 महत्वपूर्ण सवाल–
- एफआईआर में दावा किया गया है कि जब मुठभेड़ समाप्त हुआ, उस समय तक असद और गुलाम मोहम्मद जीवित थे. इसके विपरीत एसटीएफ द्वारा प्रसारित किए गए फोटोग्राफ में असद और गुलाम मोहम्मद किसी भी प्रकार से जीवित नहीं लग रहे हैं. फोटो से साफ लगता है कि मौके पर असद और गुलाम मोहम्मद की मृत्यु हो चुकी थी और वह फोटोग्राफ मृत व्यक्तियों के थे, ना कि दर्द से कराह रहे व्यक्तियों के, जैसा एफआईआर में दावा किया गया है. इससे एफआईआर में मुठभेड़ खत्म होने के बाद असद और गुलाम मोहम्मद के जीवित होने और उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल भेजे जाने का दावा झूठा दिखता है.
- इसी प्रकार असद से जुड़े एक फोटो में उसे जिस पोजीशन में दिखाया गया है, उसमें वह मोटर साइकिल के हैंडल के नीचे पड़ा है. यह किसी भी स्थिति में संभव नहीं है कि कोई आदमी गिरने के बाद पहले से गिरे पड़े मोटर साइकिल के हैंडल के नीचे आ जाए. इसके विपरीत यदि वह मोटरसाइकिल पर गिरेगा तो उसका शरीर मोटरसाइकिल के ऊपर होगा, न कि मोटर साइकिल के हैंडल के नीचे. अतः मोटर साइकिल के हैंडल के नीचे जिस प्रकार से असद का शरीर दिखाया गया है, वह स्पष्टतया संदेह पैदा करता है.
- इसी फोटो में असद के हाथ में जिस प्रकार से बंद मुट्ठी में पिस्टल दिखाया गया है, वह प्रथमदृष्ट्या मेडिको लीगल सिद्धांत से सही नहीं जान पड़ता है क्योंकि मेडिको लीगल सिद्धांत के अनुसार घायल होते ही उसके हाथ से पिस्तौल नीचे गिर गया होता.
- असद के इस फोटोग्राफ में उसके ठीक बगल में एक खाली पिस्टल दिख रहा है और एक छाया दिख रही है, जो स्पष्ट नहीं हो रहा है कि किसकी छाया है. यह छाया भी घटना के असली होने पर सवाल खड़े कर रही है.
- एक दूसरे फोटोग्राफ, जिसमे असद के ठीक बगल में गुलाम मोहम्मद दिख रहा है, में वह पिस्टल नहीं दिख रहा है. इससे ऐसा लगता है कि मौके को बनाने के लिए अलग-अलग तरह से प्रयास किए गए हैं और इस दौरान एसटीएफ के लोगों द्वारा लगातार फोटोग्राफी की गई है.
- इसी प्रकार से गुलाम मोहम्मद भी फोटो में हाथ में जिस प्रकार से पिस्तौल पकड़े दिख रहा है वह मेडिको लीगल सिद्धांत के अनुसार संभव नहीं दिखता है.
- गुलाम मोहम्मद के चप्पल की पोजीशन भी अलग-अलग फोटो में अलग-अलग दिख रही है, जो भी इस पूरे घटनाक्रम को संदिग्ध दिखाता है.
- एफआईआर में डिप्टी एसपी नवेंदु कुमार ने दावा किया है कि मोटरसाइकिल फिसल कर बबूल के झाड़ में गिर पड़ी, जिसके बाद दोनों ने जमीनी आड़ लेकर फायरिंग शुरू की. इसके विपरीत मौके की स्थिति से साफ दिखता है कि कथित घटनास्थल कच्ची सड़क के ठीक बगल में है. कच्ची सड़क ऊपर है और घटनास्थल नीचे है. घटनास्थल बिल्कुल खुला स्थान है जहां कोई भी आड़ नहीं है. स्पष्ट है कि वहां से कोई आड़ लेकर फायरिंग नहीं किया सकती थी. इसके विपरीत पुलिस वाले एक सुरक्षित पोजीशन में थे. इस प्रकार एफआईआर की यह बात भी सही नहीं जान पड़ती है.
- मौके की दर्शाई गई फोटोग्राफ ने कहीं से भी स्लीप करने या फिसलन के कोई निशान नहीं है, जो मोटरसाइकिल फिसलने के दावे को गलत बताते हैं.
- मोटरसाइकिल के टायर बिल्कुल साफ है और उस पर किसी भी प्रकार के धूल आदि के निशान नहीं हैं.
- एफआईआर के अनुसार के अनुसार मुठभेड़ 12:55 बजे दिन में समाप्त हो गई थी किंतु नरेंद्र कुमार द्वारा एफआईआर रात में 11:55 बजे अर्थात मुठभेड़ समाप्त होने के 11 घंटे बाद कराई गई, जो अपने आप में संदेह का एक कारण है.
- न्यूज़ चैनलों ने लगभग 1:00 बजे दिन में इन बदमाशों के मारे जाने की खबर प्रसारित की जबकि एफआईआर के अनुसार उस समय तक दोनों बदमाश जीवित थे और उन्हें अस्पताल भेजा जा रहा था. यह बात भी इस घटना की सत्यता पर संदेह उत्पन्न करता है.{लेखन की जिम्मेदारी लेखक की स्वयं की है संपादक का सहमत होना न होना जरुरी नहीं} असद एनकाउंटर पर सवाल, NHRC से शिकायत