

प्राचीन भारत के सोलह जनपदों में अंग एक प्रमुख जनपद था और जिसकी भाषा आदिकाल से अंगिका है। इस भाषा की लगातार उपेक्षा की जा रही है। हद तो तब हो गयी है जब एनसीआरटी की पुस्तक में अंग क्षेत्र के भागलपुर और मुंगेर को मिथिला का क्षेत्र बताया गया है। इसे लेकर पूरे अंग क्षेत्र में आक्रोश है। इसे लेकर संघर्ष तेज हो गया है। एनसीईआरटी की किताब में अंग क्षेत्र भागलपुर को भी मैथिली बोलने वाला क्षेत्र बताया गया है। किताब में लिखा गया है कि भागलपुर के साथ मुंगेर और बिहार से सटे झारखंड में भी मैथिली बोली जाती है। सीमांचल के इलाके किशनगंज, कटिहार व मधेपुरा को भी मैथिली बोलने और समझने वाला क्षेत्र मैथिली प्रवेशिका किताब में बताया गया है। लोंगो की निगाहें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 24 फरवरी के दौरे पर टिकी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी अंगिका भाषा को दें वाजिब हक
इस क्षेत्र के प्रवुद्ध संजय कुमार बताते हैं कि चार साल पहले भागलपुर के हवाई अड्डा मैदान में एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने पहुंचे पीएम ने जैसे ही तोरहरा सिनी क नमस्कार करै छियै… कहा, लोगों का उत्साह दोगुणा हो गया। डेढ़ साल के अंदर यह दूसरा मौका था जब पीएम भागलपुर पहुंचे थे। इससे पहले वह लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए भागलपुर पहुंचे थे। उस वक्त भी उन्होंने इसी तरह अंगिका में संबोधन शुरू कर यहां के लोगों का दिल जीत लिया था लेकिन एनसीईआरटी में बैठे लोगों ने अंग क्षेत्र लोगों और प्रधानमंत्री की इस भावना को ठेस पहुंचाते हुए यह कुकृत्य किया। इसके विरोध में लगातार लोग आंदोलित हैं।
इस फैसले के खिलाफ सभी आंदोलनरत हैं। इस त्रुटि को सुधारने के लिए अंग जन गण के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुधीर मंडल ने बुधवार को एनसीईआरटी के निदेशक चंद्रपाल सिंह को पत्र लिखकर इसे सुधारने की अपील की है। डॉ मंडल ने अपने पत्र में कहा है कि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लगभग 26 जिलों में अंगिका भाषा बोली जाती है, जबकि मैथिली भाषा बिहार के सिर्फ दो जिलों में प्रमुखता से बोली जाती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित प्रवेशिका की किताब में देश भर की 104 भाषाओं के बारे में जानकारी दी गई है, लेकिन अंगिका भाषा को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसके बजाय अंग क्षेत्र को मैथिल क्षेत्र और यहां की भाषा को मैथिली बताया गया है, जो पूरी तरह से अनुचित और गलत है। अंततः डॉ. मंडल ने आग्रह किया है कि अंग क्षेत्र को मैथिल क्षेत्र और यहां की भाषा को मैथिली बताने वाली त्रुटि को जल्द से जल्द सुधारते हुए उचित तथ्यों के साथ किताबों को प्रकाशित किया जाए।
भारतीय संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी,गुजराती,हिन्दी,कश्मीरी,कन्नड़,कोंकणी,मैथिली,मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया,पंजाबी,संस्कृत,संथाली सिंधी,तमिल,तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है।भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से एक है, जहाँ भाषाओं की विविधता की विरासत है। भारत के संविधान ने 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी है। बहुभाषावाद भारत में जीवन का तरीका है क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में लोग जन्म से ही एक से अधिक भाषाएँ बोलते हैं और अपने जीवनकाल में अतिरिक्त भाषाएँ सीखते हैं। औपनिवेशिक शासन के दौरान जॉर्ज ए. ग्रियर्सन द्वारा 1894 से 1928 के बीच पहला भाषाई सर्वेक्षण किया गया था , जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। प्रशिक्षित भाषाविदों की कमी के कारण इस सर्वेक्षण में कई खामियाँ थीं। स्वतंत्रता के बाद मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) को भाषाओं का गहन सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया था। हालांकि यह अभी भी अधूरा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) घोषित करने से पहले ही भारतीय संविधान के संस्थापकों ने ‘मातृभाषा में शिक्षण’ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, जिससे बच्चे को अपनी पूर्ण क्षमता विकसित करने में मदद मिल सके।1956 में भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई सीमाओं के साथ किया गया था जिसकी अपनी लिपि थी। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भाषाई विशेषताओं के आधार पर राज्यों के गठन और एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अंगिका के साहित्यकार सुधीर कुमार प्रोग्रामर के अनुसार एनडीए व सुशासन की सरकार में भी दुनिया की प्राचीन भाषा अंगिका को वाजिब सम्मान व अधिकार से वंचित रखना अंग महाजनपद की प्रगति एवं उन्नति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। अब तक सत्ताधारी नेता या दल के लोग एक-दूसरे पर पक्ष-विपक्ष का आरोप लगाकर अंग महाजनपद की लोकभाषा अंगिका को उनके हक-हकूक से वंचित रखा था, किंतु अब तो बिहार में शासित केंद्र व राज्य में एक ही गठबंधन वाली सरकार चल रही है। अब तो अंगिका भाषा को उनका वाजिब सम्मान व अधिकार मिलना ही चाहिए। उन्होंने अब इसके प्रति उदासीनता या उपेक्षा का हावी होना नेताओं को इसके प्रति उनकी कुत्सित सोच व मंशा को उजागर करता है। इसे लेकर लगातार वे मुहिम चला रहे हैं। उनके अनुसार न तो अंगिका भाषा को जनगणना कोड दिया गया, न ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। कांग्रेस के भागलपुर से विधायक अजीत शर्मा का कहना है कि सरकार द्वारा अंग प्रदेश और अंगिका भाषा की उपेक्षा का आलम यह है कि अष्टम अनुसूची में नेपाली और सिंधी भाषा तक सम्मिलित है लेकिन अंगिका भाषा को राज्य की प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी सम्मिलित करने में सरकार को एतराज है। उन्होंने जब इस मामले को 14 मार्च 1921 को बिहार विधानसभा में इस मामले को उठाया तो सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि राज्य में आयोजित होनेवाली विशिष्ट परीक्षा में अंगिका को शामिल करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
राज्यसभा में राजद के सांसद मनोज झा ने अंगिका की उपेक्षा की तरफ गृह मंत्री का ध्यान भी आकृष्ट किया था। उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि अंगिका और और बज्जिका बोली दोनों का कोड आगामी जनगणना में तय किंया जाय। सांसद ने आग्रह किया है कि बज्जिका और अंगिका बिहार की बड़ी आबादी की भाषा है लेकिन अबतक इसका कोड निर्धारित नहीं किया गया है।तिलकामांझी विश्वविद्यालय में प्राघ्यापक रहे डॉ योगेन्द्र का कहना है कि भारत सरकार ने अंगिका भाषा को कोड नहीं देकर छह करोड़ अंगिका भाषियों की उपेक्षा की है। अंगिका भाषा की अवहेलना करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों दोषी हैं। जहां तक बिहार की बात है तो यहां डवल इंजन की सरकार है। बिहार सरकार ने बिहार की लोकभाषाओं में से मगही, अंगिका, भोजपुरी और मैथिली का स्वतंत्र अकादमी बनाया है। अकादमी के अध्यक्ष भी मनोनीत किए गये। अकादमी के अध्यक्ष पद यहां रिक्त है। प्रधानमंत्री मोदी अंगिका भाषा को दें वाजिब हक…
बिहार सरकार ने तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर में (अंगिका) की पढ़ाई हेतु तीन-चार व्याख्याताओं की बहाली भी किया है।तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर (अंगिका) की पढ़ाई कराने की सहमति प्रदान की है। बिहार के 1 से 5 वर्ग तक के बच्चों के लिए भाषाई क्षेत्र के आधार पर अंगिका भाषा की पुस्तक भी उपलब्ध कराने की घोषणा हो चुकी है। सुधीर कुमार प्रोग्रामर कहते हैं कि अब आंगिका के साथ छल का उदाहरण देखिए।अंग क्षेत्र के1 से 5 वर्ग के बच्चों के कुछ विद्यालयों में अंगिका की पुस्तकें उपलब्ध करायी गयीं हैं, लेकिन एनसीईआरटी के बहकावे में अधिकांश विद्यालय के बच्चों को अंगिका पुस्तक उपलब्ध कराने से वंचित रखा गया है। बीपीएससी की शिक्षक नियुक्ति में परीक्षा में अकादमी में शामिल सभी लोकभाषा को शामिल किया गया, लेकिन एक साजिश के तहत कुछ काबिल अफसरों के द्वारा अंगिका भाषा को छोड़ दिया गया।

बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा अकादमी में शामिल सभी लोकभाषा के कुछ साहित्यकारों को हरेक साल नगद राशि के साथ साहित्यिक सम्मान प्रदान किया जाता है, लेकिन कुछ काबिल अफसरों ने अंगिका भाषा के साहित्यकारों को छोड़ दिया है। ये तो राज्य सरकार की बात है, अब केन्द्र की उपेक्षा पर गौर करे भारत सरकार के जनगणना आयोग ने सभी भाषाओं को भाषाई कोड ( भाषा का क्रमांक) दिया, लेकिन कुछ काबिल अफसरों ने अंगिका भाषा को छोड दिया। भारत सरकार के विश्वसनीय शैक्षणिक संस्थान एनसीईआरटी ने अंगक्षेत्र के 16 जिले के करोड़ों अंगिका भाषी के सांस्कृतिक विरासत को खारिज करते हुए इसे मैथिली भाषी क्षेत्र बताने की हिमाकत कर दी। इस सवाल को लेकर वे लगातार सत्तासीन लोगों और इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से संपर्क कर रहे है। उनके मुताबिक समय रहते “सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास.” के फार्मूले का सम्मान करते हुए बिहार सरकार से अंगिका के हित में अपने अधिकार क्षेत्र तहत बीपीएससी की शिक्षक नियुक्ति में परीक्षा में अन्य लोकभाषाओं की तरह अंगिका भाषा के लिए भी रिक्ति घोषित करे।
अंगिका भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाय। राजभाषा द्वारा अन्य लोकभाषाओं की तरह अंगिका भाषी साहित्यकार को भी साहित्यिक सम्मान दिया जाय। वहीं केन्द्र सरकार भारतीय जनगणना आयोग अंगिका भाषा को स्वतंत्र भाषा कोड ( क्रमांक) दे। अंगिका भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे। एनसीईआरटी को अंगिका भाषा के प्रति दुर्भावना से मुक्त होकर गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी करने से रोका जाय और अपेक्षित सुधार की जाय। प्रसून लतांत के मुताबिक प्रधानमंत्री का भी ध्यान ई मेंल के माध्यम से इस क्षेत्र के साहित्यकारों ने कराया है।
भारत सरकार के जनगणना आयोग के स्टाल पर विभिन्न पुस्तकों के बीच प्रदर्शित जनगणना आयोग द्वारा प्रकाशित लैंग्वेज एटलस ऑफ इंडिया 2011 के मुताबिक मैथिली मधुबनी, दरभंगा, सहरसा और मधेपुरा आदि जिलों में अधिकतर लोग मैथिली बोलते हैं लेकिन पूर्णिया, किशनगंज,बेगूसराय मुजफ्फरपुर, कटिहार,लखीसराय, खगड़िया,भागलपुर,मुंगेर,जमुई और बांका में मुश्किल से एक फीसदी से भी कम लोग ही मैथिली बोलते हैं जब इतने कम मैथिली बोलने वाले लोग हैं तो एनसीईआरटी ने किस आधार पर और किस सर्वे के अनुसार जिन क्षेत्रों में ज्यादातर अंगिका बोलते हैं,उनको मैथिली भाषी क्षेत्र बताने की कोशिश की है। लैंग्वेज एटलस के मुताबिक पूर्णिया में 10.72 फीसद, किशनगंज में 02.63 फीसद, बेगूसराय में 02.43 फीसद, मुजफ्फरपुर में 01.33 फीसद, कटिहार 0.60 फीसद , लखीसराय में 0.52 फीसद, खगड़िया में 0.18 फीसद , भागलपुर में 0.04 फीसद, मुंगेर में 0.13 में फीसद, जमुई और बांका 0.07 फीसद ही लोग मैथिली बोलते हैं। अगर अंगिका को कोड मिल गया होता तो मैथिली को छोड़ कर बाकी बचे हुए आंकड़े अंगिका के नाम होते लेकिन एटलस ने उपरोक्त क्षेत्रों में मैथिली बोलने वाले की संख्या न्यूनतम से न्यूनतम बताई है। फिर जब इन क्षेत्रों में इतने ही कम मैथिली बोलने वाले लोग हैं तो एनसीआरटी ने किस आधार पर और किस सर्वे के आधार पर जिन क्षेत्रों में ज्यादातर लोग अंगिका बोलते हैं उनको मैथिली भाषा क्षेत्र बताने की कोशिश की है?
अंगिका प्राचीन अंग महाजनपद अर्थात् भारत के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण बिहार, झारखंड, बंगाल, असम, उड़ीसा और नेपाल के तराई के इलाक़ों में मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा है। यह प्राचीन भाषा कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी प्राचीन समय से बोली जाती रही है। प्राचीन समय में अंगिका भाषा की अपनी एक अलग ‘अंग लिपि’ भी थी।भारत की अंगिका को साहित्यिक भाषा का दर्जा हासिल है। अंगिका साहित्य का अपना समृद्ध इतिहास रहा है और आठवीं शताब्दी के कवि ‘सरह’ या ‘सरहपा’ को अंगिका साहित्य में सबसे ऊँचा दर्जा प्राप्त है। सरहपा को हिन्दी एवं अंगिका का आदि कवि माना जाता है। इस भाषा में बहुतेरे क्षेत्र में काम हो रहे हैं। अंगिका में साहित्य उपलब्ध है। लोग लिख रहे हैं। कुछेक फ़िल्में भी बनी हैं। शब्दकोश आदि भी तैयार किए गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी अंगिका भाषा को दें वाजिब हक