

पंकज चौधरी यूं ही BJP के ‘चौधरी’ नहीं बने हैं। संगठन में गहरी पकड़, चुनावी रणनीति, सत्ता के गलियारों तक सीधी पहुंच और मजबूत आर्थिक नेटवर्क, सत्ता के गलियारों में दखल हो और चुनावी मशीनरी को चलाने की आर्थिक ताकत—तो नाम अपने आप ऊपर आता है। आज हम बात करेंगे उस नेता की, जिसे पार्टी के भीतर ‘धन कुबेर’ और बाहर ‘पावर प्लेयर’ कहा जाता है—पंकज चौधरी। पंकज चौधरी,नाम छोटा, लेकिन राजनीतिक कद बेहद बड़ा। सवाल ये नहीं कि वो भाजपा मंत्री आवर उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष कैसे बने, सवाल ये है कि वो इतने ताक़तवर कैसे बने? आज उसी सवाल का जवाब ढूंढेगा। पंकज चौधरी पूर्वांचल का कद्दावर चेहरा बनकर उभरे हैं। परिवार के लोग और दोस्त उन्हें प्यार से ‘पिंकी बाबू’ कहकर बुलाते हैं। भाजपा के यूपी अध्यक्ष बनने की भूमिका तक पहुंचने के पीछे पंकज चौधरी की कहानी को उनके करीबियों से जाना आज वही आपके समने प्रस्तुत कर रहा हूँ… पंकज यूं ही नहीं बने BJP के ‘चौधरी’-सत्ता,संगठन और धनबल का पूरा खेल
अचानक नहीं, रणनीति से बने ‘भाजपा चौधरी’पंकज चौधरी की राजनीति कोई अचानक हुआ चमत्कार नहीं है। यह एक लंबी रणनीति, संगठन में गहरी पैठ और सत्ता के साथ सधा हुआ संतुलन है। भाजपा के भीतर उन्हें सिर्फ नेता नहीं, मैनेजमेंट मैन कहा जाता है। जो चुनाव में भी काम आते हैं और संगठन को चलाने में भी। पंकज चौधरी यूपी BJP के नए प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। पूर्वांचल में कुर्मी समाज के बड़े चेहरे पंकज चौधरी को लोग अखिलेश के PDA की काट मान रहे हैं। 7 बार के सांसद और केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। ये वही पंकज चौधरी है, जिनके घर तकप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 200 मीटर पैदल चलकर गए थे। वह आयुर्वेदिक तेल राहत रूह बनाने वाली कंपनी हरबंशराम भगवानदास के मालिक भी हैं। 36 साल के सियासी सफर में पंकज चौधरी पार्षद से सांसद तक का सफर तय कर चुके हैं।
पंकज चौधरी के परदादा भगवानदास जौनपुर के रहने वाले थे। बिजनेस बढ़ाने के लिए वह 1880 में गोरखपुर आ गए। 1881 में उन्होंने आयुर्वेदिक प्रोडक्ट का बिजनेस शुरू किया। वह ठंडा तेल बनाने लगे। पंकज के पिता भगवती प्रसाद ने जब बिजनेस संभाला, तो ठंडे तेल को ब्रांड की तरह पहचान दिलाई। तेल का नाम रखा ‘राहत रूह’। इस वक्त तक चौधरी परिवार की गिनती गोरखपुर के जाने-माने परिवारों में होने लगी थी। 20 नवंबर, 1964 को भगवती प्रसाद के घर में एक बेटे का जन्म होता है जिसका नाम रखा गया पंकज । इससे पहले बड़ा बेटा प्रदीप भी था। पंकज के पैदा होने के बाद घर एक अलग ही खुशी का माहौल था। परिवार के लोग उन्हें प्यार से पिंकी बुलाते, जब पंकज थोड़ा बड़े हुए तो दोस्त भी उन्हें ‘पिंकी बाबू’ कहकर पुकारने लगे।
पढ़ाई की उम्र होते ही पंकज का एडमिशन पिता ने कार्मल हाईस्कूल में करा दिया। 12वीं की पढ़ाई एमपी इंटर कॉलेज से हुई। वह पढ़ाई में काफी होशियार थे। ग्रेजुएशन के लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी में दाखिला कराया गया। चौधरी परिवार के नजदीकी बताते हैं- उस जमाने में पंकज कार से चलते थे। जिस वक्त कारें बहुत कम लोगों के यहां हुआ करती थीं। पढ़ाई पूरी होने के बाद पंकज के बड़े भाई प्रदीप चौधरी ने 1989 में हरवंश राम भगवान दास आयुर्वेदिक संस्थान प्राइवेट लिमिटेड उर्दू बाजार के रूप में कंपनी रजिस्टर्ड कराई। पंकज को शुरुआती दिनों में पॉलिटिक्स से कोई लगाव नहीं था। सोशल वर्क करते थे। लेकिन, उन्हें घूमने का बहुत शौक था। वो अक्सर महराजगंज के सोहागीबरवा के जंगल में घूमने चले जाते थे।
पॉलिटिकल लाइफ शुरू होने के बाद पंकज पर फैमिली प्रेशर बना कि अब शादी कर लो। 11 जून, 1990 को उनकी भाग्यश्री से शादी हुई। भाग्यश्री भी अपने पति की तरह सोशल वर्क में एक्टिव हो गईं। समय के साथ पंकज-भाग्यश्री को बेटा रोहन और बेटी श्रुति हुईं। पंकज को अपने जीवन में धक्का तब लगा, जब उनके बड़े भाई प्रदीप की बीमारी से मृत्यु हो गई। पंकज की बहन साधना चौधरी सिद्धार्थनगर से जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। इसके अलावा पंकज चौधरी की 2 और बहनें, नीलम और सपना चौधरी हैं।
लालकृष्ण आडवाणी ने पंकज चौधरी को BJP जॉइन कराई आवर उनके गुरु बने
लालकृष्ण आडवाणी 1990 में गोरखपुर आए थे। उस समय डिप्टी मेयर बनने के बाद पंकज चौधरी का नाम चर्चा में था। भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी डॉ. रमापति राम त्रिपाठी भी गोरखपुर के रहने वाले हैं। डॉ. त्रिपाठी चौधरी परिवार को बखूबी जानते थे। जब आडवाणी गोरखपुर आए तो डॉ.रमापति उन्हें लेकर पंकज चौधरी के घर पहुंचे। वहां पंकज, लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर 1990 में भाजपा में शामिल हुए। इस तरह से डॉ. त्रिपाठी उनके राजनीतिक गुरु बने।
1991 में कुर्मी बहुल महराजगंज सीट से भाजपा ने पंकज चौधरी को टिकट दिया। महराजगंज 1989 में गोरखपुर से अलग होकर नया जिला बना था। उस समय राम मंदिर की लहर थी। अपनी बिरादरी के बड़े वोट बैंक का साथ पंकज को मिला और वह चुनाव जीतने में सफल रहे। यहां से उनकी जीत का सिलसिला रुका ही नहीं। तब से वह लगातार भाजपा से सांसद का चुनाव जीतते रहे
सांसद बनने के बाद महराजगंज की राजनीति पर पंकज ने अपनी छाप छोड़ दी। वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि पंकज चौधरी के राजनीतिक रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महराजगंज जिला बनने के बाद से अब तक वहां भाजपा का ही जिला पंचायत अध्यक्ष बना। यह चुनाव आमतौर पर सत्ता से प्रभावित रहता है, लेकिन महराजगंज में पंकज चौधरी की ही चलती रही। पंकज चौधरी का सत्ता के अलावा विपक्ष के लोगों से भी अच्छा जुड़ाव रहता है।
राजनीति में पंकज चौधरी का कोई दुश्मन नहीं
आमतौर पर जब आदमी आगे बढ़ता है, तो उसके दुश्मन भी पैदा होते जाते हैं, लेकिन पंकज के पास राजनीति में केवल दोस्त हैं। यह पंकज की खूबी है कि उनका कोई दुश्मन नहीं है। जो पंकज के प्रतिद्वंद्वी रहे, समय आने पर उन्होंने उनका भी साथ पा लिया। सौम्य छवि और किसी को लेकर व्यक्तिगत टिप्पणी न करना उनकी खूबी है। पंकज के बेटे रोहन भी पॉलिटिक्स में एक्टिव हैं। उनके बड़े भाई प्रदीप के 3 बच्चे हैं। बेटा राहुल व दो बेटियां शिल्पी और स्वाति चौधरी। पंकज के बारे में हर चुनाव में यह चर्चा होती रहती है कि उनका डाउन फॉल आ रहा है, लेकिन हर बार वह और मजबूत होकर उभरते हैं। ये है नवनिर्वाचित यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी उर्फ पिंकी बाबू।
धन कुबेर क्यों कहा जाता है पंकज चौधरी को? राजनीति में एक कड़वी सच्चाई है— जिसके पास संसाधन, वही रणनीतिकार। पंकज चौधरी को लेकर पार्टी के भीतर तक ये चर्चा आम है कि वो चुनावी मैनेजमेंट,फंडिंग नेटवर्क,ज़मीनी खर्च और प्रचार की मशीनरी इन सबमें उनकी भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यही वजह है कि विरोधी उन्हें ‘धन कुबेर’ कहते हैं और समर्थक ‘साइलेंट फाइनेंसर’।
दिल्ली से लेकर प्रदेश तक पकड़
पंकज चौधरी की असली ताकत सिर्फ पैसा नहीं, पहुंच है।दिल्ली के पावर कॉरिडोर,प्रदेश संगठन,चुनावी वार रूम हर जगह उनका नाम प्रभाव के साथ लिया जाता है। यही वजह है कि टिकट बंटवारे से लेकर संगठनात्मक फैसलों तक उनकी राय को नज़र अंदाज़ करना आसान नहीं होता । सत्ता में चुप, रणनीति में तेज पंकज चौधरी न तो ज़्यादा बयानबाज़ी करते हैं न ही कैमरे के सामने आक्रामक दिखते हैं। लेकिन राजनीति में कहा जाता है— जो कम बोलता है, वही ज्यादा कंट्रोल करता है। उनकी ताकत है पर्दे के पीछे की रणनीति,सही समय पर सही निवेश और सत्ता से टकराव नहीं, तालमेल रखने में विश्वास रखते हैं पंकज चौधरी।
2027 और आगे की राजनीति 2027 का विधानसभा चुनाव हो या पंचायत चुनावों की रणनीति— पंकज चौधरी का नाम हर बड़े प्लान के साथ जोड़ा जाता है। क्योंकि BJP जानती है— चुनाव सिर्फ नारों से नहीं जीते जाते, मैनेजमेंट, मनी और मशीनरी से जीते जाते हैं।तो साफ है— पंकज चौधरी यूं ही BJP के ‘चौधरी’ नहीं बने। पीछे है।पैसा,प्लानिंग,पहुंच और सत्ता की गहरी समझ। राजनीति में जो दिखता है वो पूरा सच नहीं होता, और जो सच चलाता है वो अक्सर कैमरे से दूर रहता है। यही है पंकज चौधरी की असली राजनीति। अब सवाल आपके सामने है— क्या पंकज चौधरी सिर्फ नेता हैं या BJP के सबसे बड़े पावर प्लेयर? आप क्या सोचते हैं? पंकज यूं ही नहीं बने BJP के ‘चौधरी’-सत्ता,संगठन और धनबल का पूरा खेल





















