
यूनानी निदेशालय में भ्रष्टाचार की खुली किताब: योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को दिखाया जा रहा ठेंगा। यूनानी निदेशालय में भ्रष्टाचार की खुली किताब
अजय सिंह
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर सख्त रुख अपनाते हुए “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर जोर दे रही हो, लेकिन हकीकत इससे अलग दिख रही है—खासतौर पर जब बात आती है आयुष विभाग के यूनानी निदेशालय की। इस विभाग के कार्यवाहक निदेशक प्रो. ज़माल अख्तर और कनिष्ठ लिपिक मोहम्मद इकबाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप न सिर्फ गंभीर हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियों पर सीधा सवाल भी खड़े करते हैं।
यह पूरा मामला सामने लाए हैं शिकायतकर्ता मोहित तिवारी, जिन्होंने विभाग के भीतर पनप रहे भ्रष्टाचार, सिफारिशी संस्कृति और ट्रांसफर उगाही जैसे मामलों पर विस्तार से अपनी शिकायतें दर्ज कराई हैं। मोहित का आरोप है कि कैसे यूनानी पद्धति के निदेशालय में अधिकारी खुलकर सरकारी नीतियों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और कोई कुछ कहने वाला नहीं है। मोहित तिवारी का कहना है कि निदेशक प्रोफेसर ज़माल अख्तर और कनिष्ठ लिपिक मोहम्मद इकबाल मिलकर विभागीय कामकाज में भारी वित्तीय अनियमितताएं कर रहे हैं। दवा खरीद में अपनों को फायदा पहुंचाना, गैरजरूरी वस्तुओं को ऊंचे दामों पर खरीदना, और आवश्यक दवाओं को सूची से गायब कर देना—ये सब अब आम हो गया है।
हैरानी की बात ये है कि ये सबकुछ कथित रूप से वरिष्ठ अधिकारियों की “मूक सहमति” से हो रहा है। मोहित ने यह भी दावा किया कि इन अधिकारियों पर मंत्री दयालु मिश्रा के भांजे जो निजी सचिव के पद पर हैं, और सेक्शन ऑफिसर, अनु सचिव, विशेष सचिव जैसे अफसरों की कृपा बनी हुई है—जिस कारण इनके खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। मोहित तिवारी का आरोप है कि केवल दवा खरीद ही नहीं, बल्कि रिसर्च और डेवलपमेंट के नाम पर भी घोटाला किया जा रहा है। विधायक रविदास मेहरोत्रा द्वारा भी इस मामले को प्रमुख सचिव विधानसभा तक पहुंचाया गया, लेकिन अब तक फाइलें ठंडे बस्ते में हैं।
मोहित का सबसे गंभीर आरोप निदेशक और कनिष्ठ लिपिक द्वारा ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर है। उनका कहना है कि दोनों मिलकर कर्मचारियों पर ट्रांसफर का लालच और दबाव डालकर मोटी रकम वसूलते हैं। मौजूदा सरकार की ट्रांसफर पॉलिसी लागू होने के बावजूद, यूनानी निदेशालय में इसे खुलेआम ताक पर रख दिया गया है। वहीं, कनिष्ठ लिपिक मोहम्मद इकबाल की तैनाती को लेकर भी सवाल उठे हैं। मोहित तिवारी का कहना है कि इकबाल पिछले 30 वर्षों से उसी जगह पर जमे हुए हैं, जो नियमों के बिल्कुल खिलाफ है। यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि आखिर किसकी शह पर ऐसा हो रहा है?
मोहित तिवारी ने मामले की शिकायत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल उत्तर प्रदेश, मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश, और आयुष विभाग के प्रमुख सचिव तक पहुंचाई है। इतना ही नहीं, उन्होंने अनुस्मारक पत्र भी भेजे हैं, लेकिन कोई ठोस जवाब या कार्रवाई अब तक नहीं मिली। लगातार उपेक्षा और कार्रवाई के अभाव में मोहित तिवारी अब अवसाद और हताशा का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अब भी देश के संविधान और न्यायपालिका पर भरोसा है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सामान्य नागरिक की आवाज़ इतनी कमजोर हो गई है कि उसे सुनना भी किसी के लिए ज़रूरी नहीं रह गया?
यह पूरा मामला न केवल विभागीय भ्रष्टाचार की गहराई को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकारी नीतियों को किस तरह भीतर ही भीतर खोखला किया जा रहा है। अगर योगी सरकार सच में अपनी जीरो टॉलरेंस नीति को लागू करना चाहती है, तो इस मामले में त्वरित, निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई बेहद जरूरी है। वरना यह एक मिसाल बन जाएगी कि कैसे ईमानदारी से की गई शिकायतें भी सरकारी दफ्तरों में सन्नाटे में गुम हो जाती हैं। यूनानी निदेशालय में भ्रष्टाचार की खुली किताब