यूं ही कोई अटल नहीं होता…

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यूं ही कोई अटल नहीं होता
यूं ही कोई अटल नहीं होता

अटल बिहारी वाजपेयी एक सम्मानजनक व्यक्ति और भारत के महानतम राजनेताओं में से एक थे। वे अपने राजनीतिक दृढ़ संकल्पों और राजनीतिक समझ के साथ-साथ अपने भाषण देने के अंदाज और कविता के कारण भी जाने जाते थे। अटल बिहारी बाजपेयी को भारतीय राजनीति का पितामह माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्राप्त करने वाले और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में रहते हुए एक विशिष्ट और सराहनीय मुकाम को हासिल किया था। ये भारतीय जनता पार्टी की ओर से देश के सबसे सराहनीय प्रधानमंत्री रहे। यूं ही कोई अटल नहीं होता

सरल एवं कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी ने चार दशकों से अधिक समय संसद में गुजारा। वे नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य बने। देश के प्रधानमंत्री के अलावा उन्होंने विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया। वे घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में सक्रिय भागीदार रहे।अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर,1924 को तत्कालीन ग्वालियर रियासत (अब भारतीय राज्य मध्य प्रदेश का एक हिस्सा) में एक साधारण स्कूल शिक्षक के परिवार में जन्मे थे। उनका आदर एक ऐसे नेता के रूप में किया जाता है जो कि अपने उदार विश्व दृष्टिकोण और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध थे।वाजपेयी जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा।

अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सड़क मार्गों के विस्तार हेतु स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को प्रारंभ किया था। उनके कार्यकाल में भारत में इतनी सड़कों का निर्माण हुआ जितनी शेरशाह सूरी के शासनकाल में हुआ था। उन्होंने 100 साल पुराने कावेरी जल विवाद को भी सुलझाया था। अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने प्रारंभिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आ गए थे। क्या आप जानते हैं कि 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में उन्होंने भी भाग लिया था और 24 दिन तक कारावास में रहे थे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से की थी। वे 10 बार लोकसभा में और 2 बार राज्यसभा में सांसद रहे। हम आपको बता दें कि वे एकमात्र ऐसे सांसद है जो चार अलग-अलग राज्यों दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से सांसद बने थे।6 अप्रैल 1980 ई० में उनको भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आसीन किया गया था।

“हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि विश्व के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो।”
“मानव और मानव के बीच में जो भेद की दीवारें खड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है।”
“सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन ओस की बूंद भी तो एक सच्चाई है, यह बात अलग है कि यह क्षणिक है।”
“निराशा की अमावस के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ तनिक ऊँचा उठाकर देखें।”
“आदमी की पहचान उसके धन या पद से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर तो कुबेर की संपदा भी रोती है।”

उदारवादी व्यक्तित्व– अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को किसी खास विचारधारा के पहरेदार के रूप में स्थापित नहीं होने दिया। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर सवाल उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी? तो उनका जवाब था, इंसानियत के दायरे में होगी।

विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला- अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते ही थे साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। ऐसे में विरोधी भी उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते थे।

हिंदी प्रेम- अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाईं थीं। इसके बाद कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया।

कुशल वक्ता- उन्हें शब्दों का जादूगर माना गया। विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी। किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था।

अपने-पराये का भेद नहीं- अपने-पराए का भेद किए बिना सच कहने का साहस उनमें था। गुजरात दंगों के समय सीएम रहे नरेंद्र मोदी के लिए उनका यह बयान आज भी मील का पत्थर बना हुआ है- मेरा एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।

डरना नहीं सीखा- 1998 में पोकरण परमाणु परीक्षण उनकी इस सोच का परिचायक था कि भारत दुनिया में किसी भी ताकत के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है। उन्होंने एक मौके पर कहा भी कहा था कि भारत मजबूत होगा, तभी आगे जा सकता है। कोई उसे बेवजह तंग करने की जुर्रत महसूस न करे, उसके लिए हमें ऐसा कर दिखाना जरूरी है।

कवि हृदय– अटल जी के दिल में एक राजनेता से कहीं ज्यादा एक कवि बसता था। उनकी कविताओं का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता रहा है। हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं… उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है। संसद से लेकर जनसभाओं तक में वह अक्सर कविता पाठ के मूड में आ जाते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी एक दिग्गज नेता थे और उन्होंने विरोधी दलों के बीच भी एक खास मुकाम हासिल किया था। यहाँ तक कि जवाहर लाल नेहरू ने भविष्यवाणी करते हुए कह दिया था कि एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री होंगे।जब वे विदेश मंत्री बने थे तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी भाषा में भाषण दिया था और ऐसा करने वाले वे देश के प्रथम नेता थे।अटल बिहारी वाजपेयी को उनके करीबी दोस्त और रिश्तेदार ‘बाप जी’ कहकर बुलाते थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में एक भाषण के दौरान उन्हें भारतीय राजनीति का ‘भीष्म पितामाह’ कहा था। उन्होंने शादी नहीं की थी परन्तु एक लड़की को गोद लिया था जिसका नाम नमिता है। क्या आप जानते हैं कि उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था लेकिन उन्हें मांस-मच्छी खाने का बहुत शोक था। वह प्रोन्स खाने के शौकीन थे। पुरानी दिल्ली का करीम होटल उनका पसंदीदा मांसाहारी होटल है। यूं ही कोई अटल नहीं होता