मानवता बिना कोई भविष्य नहीं

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मानवता बिना कोई भविष्य नहीं
मानवता बिना कोई भविष्य नहीं

अवधेश यादव

आधुनिक युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने समाज को बहुत लाभ पहुंचाया इसके बिना मानवता का कोई भविष्य नहीं है पर हमें सावधान रहना होगा कि हमारा मस्तिष्क का इतना मशीनीकरण न हो जाए कि अपनी मानवीय भावनाओं को ही खो दे। हम चाहे तकनीकी क्षेत्र में कितने आगे बढ़ जाएं लेकिन हम अक्सर इस बात को भूल जाते हैं कि हमारे जन्म के समय जो हमारा पहला अनुभव होता है। वह आमतौर पर करुणा का होता है जो हमारी माता के प्रेम और उनके देखभाल से मिलता है। इसके बाद बच्चों के रूप में हम खुद को करुणा के माहौल में पाते हैं।

बचपन में हम एक दूसरे के साथ खुलकर रहते हैं। हम किसी जाति धर्म क्षेत्र का भेदभाव के बिना अपने दोस्तों के साथ आराम से रहते हैं। लेकिन हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं भौतिक संसाधनों या शक्ति प्राप्ति के पीछे पड़ने लगते हैं और जीवन के असली मूल्यों को भूलते जाते हैं। लेकिन मानवता के लिए सब कुछ होते हुए भी हमें अपने बीते हुए समय को नहीं भूलना चाहिए। हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि हमेशा हमारे मस्तिष्क में केंद्रीत रहना चाहिए यही हमारी अस्मिता की रक्षा करती है।कहने का मतलब यह है इस समय संसार में तकनीक ने वास्तव में मानविक क्षमता को बढ़ाया है लेकिन कोई सी भी तकनीक मानवीय करुणा पैदा नहीं कर सकती। मानवता बिना कोई भविष्य नहीं

मैं मानता हूं विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमें बहुत लाभ पहुंचाया है लेकिन इससे मानवता का कोई भविष्य नहीं है बल्कि हमें सावधान रहना होगा कि हम इतने मशीनीकृत न हो जाए अपने मूल्यों को और भावनाओं को खो दे। मेरे हिसाब से मानसिक विकास और भौतिक विकास दोनों में संतुलन करना बहुत आवश्यक है ताकि वह एक साथ मिलकर एक नई मानवीय दुनिया का निर्माण कर सके।

अत्यधिक प्रौद्योगिकी विकास के कारण हमारे मन में भय और चिंता भी बढ़ी है। अगर हम केवल प्रौद्योगिकी और विज्ञान को अपनाते हैं तो एक बटन से पूरी दुनिया को संचालित कर सकते हैं। और यह बटन हमें अधीर बना देता है धैर्य को खो देता है किसी भी हालत में हम कल मशीन कृत होकर सकारात्मक पहलू के बारे में नहीं सोच सकते हैं।

जब तक मानवीय भावनाएं हमारे अन्दर सक्रिय नहीं होगी तब तक हम उन्नति की ओर अग्रसर नहीं हो सकते हैं एक चीज हमारी हमसे दूर हो जाएगी और वह आत्मिक शांति !आत्मिक शांति की प्राप्ति हमें तभी हो सकती है जब हमारी अस्मिता और मानवीय मूल्यों को हमारे मस्तिष्क में स्थान दें। इसके बिना हमारे मन में क्रोध घृणा ईष्या जैसे अनैतिक अवगुण पनपते जाएंगे । याद रखिए मनुष्य ही एक ऐसी प्रजाति है जो अनियंत्रित इच्छा और लालच के कारण दुनिया को नष्ट करने की और बढ़ सकती है। इसलिए हमें अपने मस्तिष्क को संतोष और सादगी की ओर अग्रसर करने की आवश्यकता है। इसके बिना हम मनुष्यता को खो देंगे। मानवता बिना कोई भविष्य नहीं