सट्टा बाजार बिहार में बनवा रहा है एनडीए सरकार !

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सट्टा बाजार बिहार में बनवा रहा है एनडीए सरकार !
सट्टा बाजार बिहार में बनवा रहा है एनडीए सरकार !
संजय सक्सेना
संजय सक्सेना

लखनऊ– बिहार विधान सभा चुनाव कें पहले चरण के मतदान ने 121 सीटों पर रिकॉर्ड तोड़ 64.66 प्रतिशत वोटिंग के चलते चुनावी नतीजों का गणित लगाने वालों ने अपना सिर पीटना शुरू कर दिया है। बड़े से बड़े राजनीति के जानकार और पत्रकार भी अपनी रिपोर्ट बैलेंस करके लिख रहे हैं,लेकिन रिकार्ड तोड़ वोटिंग के चलते आने वाले परिणामों को लेकर सट्टा बाजार पूरी तरह से निश्चिंत है। सट्टा बाजार को यह रुझान महाराष्ट्र 2024 के एनडीए तूफान की याद दिला रहा है और सट्टा बाजार में हलचल मचा दी है.  सट्टा बाज़ार के जानकार महागठबंधन की सरकार बनने की संभावनाओं को लगभग शून्य करार दे रहा हैं.पहले चरण के मतदान के बाद अनुमान है कि 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए 145-150 से अधिक सीटें जीत सकता है,जो उसके 2010 के सर्वाधिक प्रदर्शन को भी पार कर सकता है और तेजस्वी यादव के गठबंधन को शर्मनाक हार की ओर धकेल सकता है. सट्टा बाजार बिहार में बनवा रहा है एनडीए सरकार !

इस बार की भागीदारी बिहार के चुनावी इतिहास में सबसे अधिक रही है। 2020 के कोरोना महामारी के समय 57.29 प्रतिशत की तुलना में इस बार पूरे 7.37 प्रतिशत अंक अधिक. इससे एनडीए खेमे में जोश भर गया है. बेगूसराय (67.32फीसदी) और मुज़फ्फरपुर (मीनापुर जैसे क्षेत्रों में 73 फीसदी से अधिक) जैसे जिलों में महिलाओं की लंबी कतारें दिखीं, जिसे बीजेपी नेताओं ने अपनी कल्याण योजनाओं के समर्थन के रूप में देखा है. कहा जा रहा है बिहार में महाराष्ट्र दोहराया जा रहा है, मुंबई के एक सट्टेबाज़ ने जो कहा वह बीजेपी-नेतृत्व वाले गठबंधन की 2024 महाराष्ट्र की निर्णायक जीत की याद दिला रहा था, जिसने एंटी-इनकंबेंसी को दरकिनार कर विपक्ष को चकनाचूर कर दिया था. एनडीए खेमे के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पहले चरण की 121 सीटों में से लगभग 100 सीटों पर बढ़त के संकेत हैं, और यह लहर 11 नवंबर को होने वाले दूसरे चरण तक जारी रह सकती है.

मुंबई और दिल्ली के सट्टा बाजार, जो हमेशा कानूनी धुंध में काम करते हैं, में 06 नवंबर के मतदान के बाद  समीकरण काफी बदल गए हैं. पहले महागठबंधन सीमांचल और मिथिलांचल जैसे जातीय रूप से विभाजित इलाकों में मामूली बढ़त पर था, लेकिन 06  नवंबर की जबरदस्त वोटिंग ने विपक्षी दांव को तहस-नहस कर दिया. एक अनुभवी सट्टेबाज ने बताया, एनडीए की जीत की संभावनाएं अब 75-80 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं, जबकि महागठबंधन की सीटों का अनुमान 80 से नीचे गिर गया है. खासकर अगर बाकी 122 सीटों पर ईबीसी और दलित मतदाताओं की भागीदारी बनी रही तो. सट्टा बाज़ार के कारोबारी अब एनडीए पर बड़े पैमाने पर दांव लगा रहे हैं, जिसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी के जोशीले अभियान और नीतीश कुमार की जातीय समीकरणों पर मजबूत पकड़ को दिया जा रहा है. वहां भी नवंबर 2024 में महिला और शहरी मतदाताओं की अभूतपूर्व भागीदारी ने बीजेपी-महायुति गठबंधन को जोरदार वापसी दिलाई थी, जिससे एक्ज़िट पोल ध्वस्त हो गए और महा विकास अघाड़ी की उम्मीदें खत्म हो गईं.

बिहार में गंगा के दक्षिण के हाई-स्टेक इलाकों में, जहां 2020 में महागठबंधन को 61-59 की मामूली बढ़त मिली थी, अब एनडीए का जोश चरम पर है.मोदी की कल्याण योजनाओं की बाढ़ और नीतीश की स्थानीय रसायनशास्त्र मिलकर एक बार फिर वही कहानी लिख रहे हैं एंटी-इनकंबेंसी की कोई गुंजाइश नहीं, एक वरिष्ठ बीजेपी रणनीतिकार ने कहा. इस बीच विपक्ष संभलने की कोशिश में है, तेजस्वी यादव की पक्की जीत की घोषणा अब खोखली लग रही है, जबकि आरजेडी की धांधली की शिकायतें चुनाव आयोग ने निराधार बताकर खारिज कर दी हैं.


सट्टा बाजार का मूड सिर्फ रुझान नहीं बल्कि आकार का संकेत दे रहा है. बिहार के 3.75 करोड़ मतदाता एक और रिकॉर्ड तोड़ भागीदारी के लिए तैयार हैं. सट्टा मॉडलों के अनुसार, एनडीए 150-160 सीटों के  करीब पहुंच सकता है, विपक्ष के यादव-मुस्लिम गढ़ों में सेंध लगाते हुए और जन सुराज की सीमित उपस्थिति को पीछे छोड़ते हुए. प्रशांत किशोर की नई पार्टी, जो 239 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, कुछ असर डाल सकती है, पर सत्ता समीकरण बदलने की ताकत नहीं रखती. एक सट्टेबाज़ ने कहा, अगर दूसरा चरण भी ऐसा ही रहा, खासकर ईबीसी बहुल और महिला मतदाता वाले क्षेत्रों में तो हम बिहार की राजनीति के नए समीकरण का साक्षी बनने जा रहे हैं. उधर, महागठबंधन समर्थक, जो कांग्रेस के 80 सीटों के दावे से उत्साहित हैं, कहते हैं कि उच्च मतदान परिवर्तन का संकेत है, लेकिन सट्टा बाजार की फुसफुसाहट कुछ और ही कहानी बयां कर रही है.

14 नवंबर की मतगणना से पहले निगाहें अब सीमांचल की सीमाओं, महिलाओं की 4-5 प्रतिशत अतिरिक्त भागीदारी और प्रवासी मतदाताओं वाले क्षेत्रों में एनडीए की बढ़त पर टिक गई हैं. बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए यह सिर्फ सत्ता बरकरार रखने की बात नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण का क्षण है, महाराष्ट्र की तरह एक और सुनामी जो मोदी की पूर्वी दुर्ग को और मजबूत कर सकती है. वहीं महागठबंधन के लिए यह करो या मरो की लड़ाई है, दूसरा चरण कमजोर रहा तो लहर नहीं, बल्कि पूरा सफाया होगा. बिहार की गर्म चुनावी गणना में सट्टेबाज़ों की स्याही अब सूख रही है और वह पूरी तरह एनडीए के सुनहरे रंग में रंगी हुई है. सट्टा बाजार बिहार में बनवा रहा है एनडीए सरकार !