

सूट बूट की राजनीति ने मणिपुर को किया आग के हवाले ,महिलाओं को घुमाया जा रहा नग्न आखिर चौकदार की कहां गयी चौकीदारी। “यह हिंसा शायद किसी कारणवश नहीं रुक रही है और इस हिंसा से किसी को राजनीतिक फायदा मिलने वाला है।” सूट बूट की राजनीति से मणिपुर आग के हवाले
मणिपुर में बढ़ती हिंसा इतनी भयावह रुप ले ली हैं कि उस हिंसा की आग में दो आदिवासी युवतियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। फिर उन को निर्वस्त्र करके सड़क पर घुमाया गया। उनके संवेदनशील अंगों से भी सार्वजनिक खिलवाड किया गया। इससे भी जादा शर्मनाक बात यह है कि इतनी बड़ी घटना पर देश के बड़े से बड़े नेताओं एंव मंत्रियों के मुंह से एक शब्द नहीं निकलता है। जैसे सभी के मुंह में दही जम गया है और तो और सभी महिला नेत्रिया भी चुप हैं। सोच रहा हूँ कि मेरा प्यारा भारत कितना जहरीला और मानसिक दिवालिया हो गया है। इसकी कल्पना हम आप नहीं कर सकतें। बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी शायद लुट रहीं महिलाओं की असमिया नहीं दिख रही हैं। बीजेपी की सरकार मणिपुर में लेकिन उसके बावजूद बहन बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। अपराधियों और माफियाओं को मिट्टी में मिलाने वाली सरकार के पैर में शायद घुघरू बंध गया हैं। सूट बूट की राजनीति से मणिपुर आग के हवाले
खैर जो सरकार बलात्कारियो को सम्मानित करती हो, महीनों धरना देने पर यौन शोषण के अपराधी पर बमुश्किल केस होता हो और वो भी ज़मानत पर छूट जाता हो, जो नज़ीरें ये सरकार देश की जनता के आगे पेश कर रही है उससे अपराधी करण को बढ़ावा ही मिलता है। क्या पता मणिपुर के बलात्कारियो को भी यही लगा होगा कि सरदार खुस होगा साबासी देगा…? आख़िर यूँ ही तो इतनी बेखौफ़ सार्वजनिक निर्लज्जता नहीं पनपती।आज हर इंसान को प्रधानमंत्री से खुलकर सवाल करने की सख्त जरूरत है क्योंकि इस स्तर की संवेदनहीनता और धृष्टता का समाधान अब शालीनता और सभ्यता संभव ही नहीं है। मणिपुर की यह घटना 4 मई 2023 की है और आज इतने दिन बाद इस तरह का वक्तव्य वही दे सकता है जिसके आखों का पानी मर गया हो। मणिपुर में फैली हिंसा के 85 दिन, 120+ लाशें , नौजवान युवतियां और बच्चे ,जलता धधकता हुआ मणिपुर,और इन हालातों का दंश झेलता आदिवासी समुदाय।
कुकी समुदाय की वह महिला खुद को “खुशनसीब” समझती है कि वह जिंदा बच भर गई, कैसा महिला सशक्तिकरण..? कैसा स्त्री –विमर्श ? योनि और जननांगों में उलझे समाज में “अस्मिता” की तो बात ही छोड़ दीजिए , अभी तो बात “अस्तित्व” तक भी नहीं पहुंची है.. क्या आपको इस लिजलिजी बदबूदार सड़ी गली कुव्यवस्था के “मैनेजमेंट” के प्रति क्रोध नहीं आता क्या..? अरे उन्हें न आए जो सत्ता की दलाली मक्कारी कर रहें हैं उन्हें आएगा जो संविधान पसंद हैं जो दूसरों के बहन बेटी को अपनी बहन बेटी समझता होगा। शायद जिन भी महिलाओं ने मणिपुर का वीडियो देखा होगा यही एहसास हुआ होगा कि हमे नोचा जा रहा है। इतना डरावना वीडियो शायद ही कभी देखा होगा। समाज में उत्पन्न हुई हिंसा और बर्बरता का दंश सबसे ज्यादा बच्चे और महिलाओं को झेलना होता है। महिलाओं की अस्मिता की धज्जियाँ उड़ाना पितृसत्तात्मक पर विश्वास करने वाले अपनी आन समझता है। यह भी हर महिला के जीवन की सच्चाई है कि यह डर हमेशा बना रहता है कि कब कंहा किस तरह हमको नोचा जाएगा।

विश्व गुरु बन जाओ, हिंदू राष्ट्र भी बना लेना, ज्योति मौर्या और सीमा हैदर पर गोदी मीडिया में डिबेट्स भी चलवा लेना मगर मणिपुर हिंसा की बद से बदतर हालात पर चुप रहना। शायद कि धार्मिक एंगल ना हो या खुद के सर्वश्रेष्ठ होने इतना अहंकार हो कि गलत को भी जस्टिफाई करने के लिए जब शब्द न मिले तो चुप हो जाना । क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के एक्सपर्ट्स आका जो सत्ता पर बैठे। वो 77 दिन से अधिक बदतर होते मणिपुर पर चूं न करें। शायद मणिपुर में हवाई जहाज न जाती हो। शिखर धवन के टूटे अंगूठे की चिंता करने वाले मठाधीश को शायद ये न पता हो कि पूर्वोत्तर का छोटा राज्य अपने ही भारत का हिस्सा है। कौन सही है,कौन गलत। कौन जला रहा है कौन बुझा रहा है। किसके रहने से सत्ता को फायदा होगा और किसके नही रहने से सत्ता को नुकसान। पर इस सबसे इतर एक सवाल यह भी है कि उन्मादी भीड़ ने महिलाओं के साथ जो किया। वो इस देश की तासीर नही है। मीडिया का एक तबका चुप है, क्योंकि सीमा हैदर और ज्योति आलोक मामले में TRP बहुत थी।
रूस यूक्रेन में मध्यस्था कराने वाले या ऐसा मानने वाले लोगों का ज्ञान बस्तर,मणिपुर या ऐसे मामलों में थोथा हो जाता है। आवाज उठाने वाले देशद्रोही होंगे और टुच्ची घटना पर चारण भाट करने थकते नहीं फिरेंगे कि फलाना है तो मुमकिन है। डर है कि कोई एक तबका इस घटना के लिए नेहरू,इंदिरा को जिम्मेदार ना ठहरा दे। मणिपुर क्षेत्र से मिलने वाला राष्ट्रवाद कश्मीर से मिलने राष्ट्रवाद की तुलना में बेहद कमजोर है। मणिपुर का मुद्दा तात्कालिक राजनीतिक पार्टी को वो पोषक तत्व नही देती होगी जो। दूसरे क्षेत्रों से मिलता होगा। छोटा राज्य है,रेवेन्यू भी कम है, न खनिज है और न बड़ा वोट बैंक। फिलहाल चुनावी माहौल भी नही है। इसलिए फर्क नहीं पड़ता कि किसी महिला को नंगा घुमाए जाए या 6 महीने की बच्ची का गला उसके बाप के सामने ही रेत दिया जाए।
चुनाव आयोग संज्ञान में लेकर कोई छोटा मोटा पंचायत या नगरीय निकाय का चुनाव ही करवा दो ताकि ऐसी हेवानियतों पर सरकार का ध्यान जाए। गौरतलब है कि हिंसा शुरू हुए एक महीना हो चुका है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार द्वारा इस पर अभी तक काबू नहीं किया गया है। हिंसा न रुकने के पीछे के कारणों को संदेह की दृष्टि से देखते हुए वह कहते हैं कि “यह हिंसा शायद किसी कारणवश नहीं रुक रही है और इस हिंसा से किसी को राजनीतिक फायदा मिलने वाला है।” मणिपुर में एक महीने से जारी हिंसा का राजनीतिक उद्देश्य क्या है…? क्या इस हिंसा को जारी रखने से किसी राजनीतिक दल को फायदा मिलने वाला है। आखिरकार सरकार इस हिंसा को एक महीने के बाद भी रोकने में कामयाब क्यों नहीं हो पाई हैं…? सूट बूट की राजनीति से मणिपुर आग के हवाले