

गर्मी का मौसम चरम पर है। ऐसे समय में जब गर्मी से सभी परेशान-हैरान हैं तथा बारिश का इंतजार कर रहे हैं, बाजार में दिखने लगे है तरह-तरह के आम। जी हां आम, वहीं आम जिसे फलों का राजा भी कहा जाता है। आम एक ऐसा फल है जो अपने नाम के अनुरूप आम (साधारण) नहीं बल्कि बेहद खास है। इसे रसाल, सौरभ, फलश्रेष्ठ आदि नामों से भी जाना जाता है। हमारे देश के अलग अलग भागों में आम की अलग-अलग अनेक किस्में पैदा होती हैं। वैसे तो यह गर्मी का फल है, लेकिन आम की कुछ प्रजातियां बारहमासी भी होती हैं।लखनऊ के मलीहाबाद का दशहरी, बनारस का लंगड़ा, मालदा का मलदहिया, रत्नागिरि का अलफांसो, कर्नाटक का बादामी, गुजरात का केसर, लखनऊ सफेदा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रतौल आम के अलावा चौसा, तोतापरी, हिमसागर, हापुस,आम्रपाली, मल्लिका, हुस्नआरा, सहित आम की देश में 1000 से भी ज्यादा वैरायटी उत्पादित होती है। दशहरी,चौसा आदि आम की सस्ती, सर्वसुलभ और लोक प्रिय प्रजातियां है। वही विगत कुछ वर्षों में विकसित आम की नवीन मियाजाकी प्रजाति के आम की कीमत ढाई से तीन लाख रुपए प्रति किलो होती है। आम है बेहद खास
आम एक रसीला, मीठा और पौष्टिक फल है। हालांकि कच्चा आम खट्टा होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कार्बो हाइडेंट, वसा, विटामिन सहित सूक्ष्म पोषक तत्व फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आम से अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं। भारत में आम के रस को परतों में जमा कर अमावट बनाया जाता है, जिसे लम्बे समय तक उपयोग में लाया जा सकता है। आम के अचार की तो बात ही निराली होती है। खट्टा और चटपटे मसालों से सना आम का अचार सभी उम्र के लोगों की पसंद होता है। आम की चटनी और आम का पना स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है। आम की खटाई बाजार में आमचूर के नाम से मिलती है, जो अनेक व्यंजनों की जान होती है। इसके अतिरिक्त आम का मुरब्बा भी बनता है। कच्चे आम को गुड़ के साथ पकाकर गुड़म्बा बनाया जाता है, जिसका स्वाद अलबेला होता है। गर्मी के मौसम में आम के तरह-तरह के शेक भी लोंगों को पसंद आते हैं।
हिन्दू धर्म में आम की लकड़ी का प्रयोग पूजा में हवन करने में भी किया जाता है। आम की पत्तियां भी पवित्र होती हैं और पूजा आदि धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्राचीन काल से ही प्रयोग किया जाता रहा है। अनुष्ठानों और पूजा के दौरान आम के पत्तों का प्रयोग ‘पूर्ण कुम्भ’ को पूरा करने हेतु किया जाता है। पूजा में प्रयुक्त होने वाला घड़ा धरती माता का, जल जीवन के स्रोत का, नारियल दिव्य चेतना का तथा आम के पत्ते जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। सम्पूर्ण रूप से ‘पूर्ण कुम्भ’ देवी लक्ष्मी और समृद्धि का प्रतीक है। हिन्दू धर्म में आम को उर्वरता का
प्रतीक भी माना गया है। उत्सवों आदि में तोरण तथा वंदनवार के रूप में भी आम के पत्तों का प्रयोग होता है। आम की लकड़ी से फर्नीचर आदि बनाए जाते हैं। बगीचे में आम के पेड़ में टिकोरा लगने से लेकर बाजार में आम के बिकने और हमारे मुंह में अपना स्वाद बिखेरने तक की यात्रा बहुत दिलचस्प और मजेदार है। मैं आपको आम की बहुत बड़ी यात्रा बहुत छोटे में बताने जा रहा हूं, ध्यान से पढ़िएगा और महसूस कीजिएगा इसके पीछे की पूरी मेहनत। तो चलिए शुरू करते है। हम आज बाजार से जो आम खरीद कर लाते हैं, बहुत संभव है कि उसका पेड़ लगाने वाला इंसान इस दुनिया में न हो। किसी ने पेड़ लगाया था और उसे अपने पसीने से सींचा था, तब आज हम आम का रसीला स्वाद ले पा रहे हैं। सालों लग जाते है एक पेड़ को बड़ा होने में। एक नवजात शिशु को बड़ा करने में जितनी मेहनत, मोहब्बत, शिद्दत और समय लगता है, एक पौधे से वृक्ष बनाने में उससे कम मेहनत और समय नहीं लगता। आम है बेहद खास

जिस प्रकार एक नन्हें शिशु को बीमारियों से बचाना पड़ता है, उसी प्रकार पौधे को भी तरह-तरह की बीमारियों से बचाना पड़ता है। जानवर पौधों को खा न जाए, इसके लिए किसान रात-रात भर जाग कर बगीचे की रखवाली करते हैं। कुछ दुष्ट प्रकृति के मनुष्य भी होते हैं, जो अपनी दुश्मनी निकालने के लिए पेड़ो को ही काट देते हैं। मौसम की विपरीत परिस्थितियों का सामना करने योग्य भी पेड़ को बनाना होता है। कभी आंधी आ जाती है, कभी बहुत बारिश हो जाती है। आम के बौर झड़ जाते हैं, फल टूट कर गिर जाते हैं। कभी कोई बीमारी भी लग जाती है, जिससे फलों का विकास रुक जाता है। आम की जितनी खास किस्म होती है, उतना ही उस पर बड़े खतरे भी होते हैं। इतने सारे खतरो ं से आम के टिकोरों को बचाते हुए पूर्ण आम के रूप में विकसित करने और आम को बाजार तक पहुंचाने का कार्य कौन करता है। क्या हम और आप…?
यह सारी मेहनत एक किसान करता है। एक किसान या बागवान दिन-रात पेड़ों की रखवाली करते हुए बिताता है। न सोने की परवाह, न खाने की चिंता। तब कहीं जाकर बाजार आम से गुलजार होते हैं। आम के पेड़ लगाए किसी और ने थे। आज उसके फल खाता कोई और है। सदियों से यही दुनिया की रीत है। होना भी यही चाहिए। जिस प्रकार हमारे माता-पिता, बुजुर्गों ने वृक्ष लगाए और आज उनपर लगने वाले फल हमारी पीढ़ी को लाभान्वित कर रहे हैं, उसी प्रकार हमें भी आने वाली पीढ़ी के लिए वृक्ष लगाने चाहिए, नदियों तालाबों-पोखरों-झीलों सहित पानी के सभी स्रोतों, हवा, धरती को प्रदूषण से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम की शुरुआत से पहले बसंत ऋतु में आम के पेड़ों में बौर आते हैं। उस समय पेड़ के नीचे मदहोश कर देने वाली खुशबू फैल जाती है। आम के पीछे की इस मेहनत को देखना और महसूस करना हो तो इस मौसम में आम के बगीचों की ओर रुख कीजिए। आपको कोई न कोई बागवान पेड़ों की रखवाली करता हुआ दिख जाएगा।
भीषण गर्मी हो या लू चले या कैसी भी परिस्थिति हो, कितना भी कष्ट हो, लेकिन रखवाली तो करनी ही है। जिन लोगों के पास एक या दो पेड़ ही होते हैं, वे अपने पेड़ों में लगने वाले छोटे-छोटे आमों को बचाने के लिए चद्दर या पुरानी मच्छरदानी से उसे ढकने की कोशिश करते हुए देखे जा सकते हैं। कंटीले तारों या कांटेदार लकड़ी से घेरकर भी आम के टिकोरों को बचाने की कोशिश होती है। जब एक बार आम पूर्ण रूप से परिपक्व हों जाते हैं, तब उन्हें बहुत सलीके से और कोमलता से पैक कर मण्डी तक पहुंचाया जाता है। जहाँ से वह देश-विदेश में अलग-अलग स्थानों पर बिकने के लिए जाता है। हम आम खरीदते हैं और उसका स्वाद लेते हैं। हमें पता भी नहीं होता कि जो आम हम खा रहे है, वह कहां से आया है, किसके बगीचे का है, उसके पीछे कितनी मेहनत और तपस्या की गयी है आदि-आदि। हमें तो बस आम और उसके स्वाद से मतलब होता है। यदि हम आम के पीछे की पूरी यात्रा के बारे में सोचें तो हमारा स्वाद कई गुना बढ़ जाएगा।
देश के अलग-अलग भागों में मानसून के पहले प्री-मानसून की वर्षा होती है। इसे हमारे उत्तर प्रदेश में आम्र वर्षा भी कहते हैं। यह वर्षा आम को पकने में और उसमें मिठास लाने में बहुत मदद करती है। आम्र वर्षा के बाद बाजार में आने वाले आम का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। एक किसान या बागवान जितनी विषम परिस्थितियों में कार्य कर अपनी फसल को हम तक पहुंचाता है, हमें उसके लिए उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। किसान हमारे अन्नदाता और जीवनदाता हैं। वह अपने खेतों-बगीचों में जी-तोड़ मेहनत करते है, तभी हम और हमारा परिवार अपने भोजन के लिए निश्चिन्त रहता है। तभी हम अपना समय अपने और अपने परिवार के विकास में दे पाते हैं। यद्यपि यह कहानी आम की है, तथापि ध्यान से सोचें तो यही कहानी तो गेहूं की भी है, यही कहानी धान, सरसों, अमरूद, पपीता या अन्य फसलों या फलों की भी है। आजकल फूलों की खेती भी अच्छी आमदनी का माध्यम है। फसल चाहे जो हो, मेहनत के बिना अच्छी फसल नहीं होती। हमें किसी भी खाद्य पदार्थ को बेकार नहीं होने देना चाहिए। बच्चों में शुरुआत से ही संस्कार डालने चाहिए कि वे अन्न को बर्बाद न करें और उतना ही भोजन लें जितना खा पाए। ज्यादा लालच न करें और मिल-बांट कर खाएं। बच्चों को रोटी की यात्रा के बारे में भी बताया जाना चाहिए। उन्हें किसानों की मेहनत और त्याग के बारे में बताया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश से आम मॉस्को, दुबई व बहरीन सहित अन्य कई देशों को निर्यात किए जाते हैं। राज्य सरकार ने वाराणसी, लखनऊ, अमरोहा व सहारनपुर में पैक हाउस भी निर्मित कराएं हैं। विदेश में प्रदेश के आमों की बहुत मांग है। यहां के आमों की विदेश में अच्छी कीमत मिलती है। उत्तर प्रदेश सरकार प्रतिवर्ष राजधानी लखनऊ में आम महोत्सव का आयोजन करती है। आम महोत्सव के माध्यम से हमारे किसानों और बागवानों की मेहनत व प्रदेश की औद्यानिक फसलों की सम्भावनाओं को देखने, समझने का अवसर प्राप्त होता है। आम महोत्सव अन्नदाता किसानों की आय को बढ़ाने का एक मंच बना है। तो अगली बार जब भी आप आम या कहें कि ‘बेहद खास आम’ खरीदें तो जरूर सोंचे आम की यात्रा के बारे में। आपके लिए यह जानना बहुत दिलचस्प होगा कि आम का फल पता नहीं कितनी लम्बी यात्रा कर आपके पास आया है। आम है बेहद खास