
यह सही है कि किसी भी देश की उन्नति में एक बड़ा हाथ उस देश के पूंजीपतियों का होता है, लेकिन देश को सफलतापूर्वक चलाने में और भी कई लोगों का हाथ और महत्त्वपूर्ण साथ होता है। मसलन, हमारे देश के किसान, हमारी सेना के जवान आदि। देश चलना बहुत बड़ी बात है, लेकिन रोजगार देने से संबंधित बात को हम आसान शब्दों में समझने की कोशिश करें तो कुछ इस तरह से देखा जा सकता है। यह हम सब भलीभांति जानते हैं कि जैसे-जैसे भौतिक जीवन शैली आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमारा संबंध मशीनों से और अधिक जुड़ता जा रहा है। आने वाले समय में रोबोटिक दुनिया का ही चलन आने वाला है। इसकी शुरुआत बहुत पहले ही हो चुकी थी, लेकिन टीवी के लोग इतना आदि नहीं थे, जितना आज के समय में हो चले हैं। आज की पीढ़ी शारीरिक श्रम नहीं करना चाहती। सभी बस यही चाहते है कि उनके मुंह से बात निकले और वह झट से पूरी हो जाए।’ चाहे वह कमरे की बत्तियां जलाना-बुझाना हो या संगीत बदलना या फिर समय क्या हुआ है, यह जानना ही क्यों न हो। हर चीज बस किसी ‘अलेक्सा’ से कहो और जान लो..! भले ही परिणामवश अपने शरीर में जंग क्यों न लग जाए। इस बात से आजकल किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। मनुष्य V/S मशीन
हालांकि इसमें भी सारा खेल धन का है। जो जितना धनाढ्य है, उतना अधिक मशीनों से घिरा हुआ और बीमार भी है। विशेष रूप से मानसिक तौर पर क्योंकि मशीनों के इस मायाजाल ने मनुष्य को इतना अकेला कर दिया है कि उसके सामाजिक और आपसी रिश्ते समाप्त हो गए हैं और हर किसी को इस तरह का अकेलापन खाए जा रहा है। बस उसी कमी को फिर पूरा कर रही हैं कृत्रिम बुद्धिमता जैसी मशीनें । मजे की बात यह है कि चाहे कुछ भी हो जाए, हैं तो ये मशीनें ही ! इन्हें कोई भी काम करने के लिए एक निश्चित ‘कमांड’ की आवश्यकता होती है और अगर वह न मिला तो यह बोला गया काम ही नहीं कर पाती । जबकि यही काम अगर बोलकर किसी व्यक्ति से करवाना हो तो वह गलत बोलने पर भी समझ जाता है कि आप आखिर कहना क्या चाहते हैं, लेकिन यह मशीन नहीं समझ पाती। इतनी सी यह बात आज की युवा पीढ़ी नहीं समझ पाती। फिर जब परेशानियां आती हैं तो लोग ज्योतिषियों के यहां चक्कर काटते फिरते हैं।
यों देखा जाए तो हम भला किसी को कुछ देने वाले कौन होते हैं। देता तो वह ईश्वर ही है हम तो केवल माध्यम ही होते हैं । फिर भी अगर हम किसी को रोजगार दे पाए तो यह वर्तमान हालात और समय को देखते हुए इससे बड़ा पुण्य शायद ही कुछ और होगा। अफसोस कि हम अपनी सुख- सुविधा के लिए लोगों से उनका वह काम भी छीन रहे हैं। ऐसा सिर्फ उच्च मध्यम वर्गीय परिवार के लोग ही कर रहे हैं। बड़े-बड़े नेता,अभिनेता या पूंजीपति नहीं कर रहे। हम ही लोग हैं जो अपने घर काम करने आने वाली सहयोगी को हटाकर बर्तन साफ करने के लिए ‘डिशवाशर, झाडू-पोंछे के लिए ‘वैक्यूम क्लीनर’, कपड़े धोने के लिए ‘वाशिंग मशीन’ और अब खाना बनाने के लिए भी न जाने कितनी मशीनों का उपयोग कर रहे हैं।
समय के साथ चलना बुरी बात नहीं है। समय के साथ न चलें, तो समय हमें पीछे छोड़कर खुद आगे निकल जाएगा और हम वहीं खड़े बस सब का मुंह ताकते रह जाएंगे । ऐसे में सोचा जा सकता है कि परिवार कैसे चलेगा, इनके बच्चों का भविष्य क्या होगा । इनसे मिलने वाली इंसानियत का क्या होगा। आज जब हमारे घर में अधिक मेहमान आ जाते हैं, तब थोड़े-से अधिक पैसों के लालच में ही सही, लोग हमारे कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े होकर हमारा काम आसान करते हुए बहुत हद तक कहीं न कहीं हमारी लाज बचा रहे होते हैं । ऐसे ‘ में इन्हें हटाकर मशीनों पर निर्भर होना उचित नहीं लगता।
इस तरह पहले ही तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी और गरीबी को बढ़ाने में हम लोग ही सबसे बड़ा कारण बन रहे हैं। दूसरी बात, लोग भी इस बात को समझना नहीं चाहते कि जहां वे काम कर रहे हैं, वहां अब तक ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है तो उसमें इनकी ही भलाई है। यह अभी भी उन्हीं पुरानी बातों और मामलों को लेकर आपस में ही लड़ने-मरने को तैयार हैं कि मैं ऐसा नहीं करूंगी… मैं वैसा नहीं करूंगी आदि। उन्हें लगता है एक घर छूट भी गया तो कोई बात नहीं कहीं और काम मिल जाएगा। वे नहीं जानते कि अब बहुत जल्द जब एक दूसरे की देखा-देखी में सब भेड़चाल चलेंगे। तब सबसे अधिक नुकसान इन्हीं लोगों का होगा और केवल इसी क्षेत्र में नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में। अब तो लिखने- पढ़ने के लिए भी लोगों के पास कृत्रिम मेधा का सहारा है। दिमागी रूप से किया जाने वाला काम भी अब कुछ ही सालों में जाता रहेगा। फिर कहां जाएंगे वे कर्मचारी जो अब तक अपने दिमाग की कमाई खा रहे थे। सबसे अधिक खतरा चिकित्सा के क्षेत्र पर लगता है। हालांकि वहां भी अब धीरे- धीरे मशीनों पर निर्भरता की शुरुआत हो चली है । इस मशीनी ने बेरोजगारी बढ़ाने में एक बड़ा योगदान दिया है। मनुष्य V/S मशीन