समाज में व्याप्त कुरीतियों के सुधारक थें महात्मा ज्योतिबाफुले

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समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष करने वाले महानसमाज सुधारक थें महात्मा ज्योतिबाफुले।

विनोद यादव
विनोद यादव

आजीवन धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास, रुढ़िवादी परंपराओं के विरोधी और महिलाओं की शिक्षा के प्रबल समर्थक रहे महात्मा ज्योतिबा फुले जी की नारी सशक्तिकरण और सामाजिक उत्थान के आपके प्रयास सर्वदा स्मरणीय रहेंगे।”ज्योतिबा फुले की ‘गुलामगिरी’ भारतीय समाज में जाति-व्यवस्था की कठोर आलोचना करती है। यह ग्रंथ जातिगत शोषण और असमानता के विरुद्ध एक शोधपूर्ण लड़ाई का आह्वान करता है और शिक्षा को समाजिक परिवर्तन का मूल मानता है।

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले माली का काम करता था। वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थें।इसलिए उनकी पीढ़ी ‘फुले’ के नाम से जानी जाती थी। ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने मराठी में अध्ययन किया। वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 1840 में ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई से हुआ था। महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन जोरों पर था।जाति-प्रथा का विरोध करने और एकेश्‍वरवाद को अमल में लाने के लिए ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना की गई थी जिसके प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी।

स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग उदासीन थे, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। उन्होंने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था। उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा को दिया जाता है।इन प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन जारी थे जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त किया था। लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत हुई, जो आजादी की लड़ाई में उनके संबल बने। उन्होंने किसानों और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था।ज्योतिराव गोविंदराव फुले की मृत्यु 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुई। इस महान समाजसेवी ने अछूतोद्धार के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। उनका यह भाव देखकर 1888 में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई थी।

देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को सशक्त बनाने में ज्योतिराव फुले का किरदार अहम रहा है।पूर्व मुख्यमंत्री एंव बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलितों पिछडो़ के उत्थान के लिए राजधानी लखनऊ को केंद्र बिंदु मानते हुए सामाजिक क्रांति के अग्रदूतों की मूर्ति लगाकर उनके विचारों को ही नहीं जिदा किया बल्कि शोषित समाज को पढ़ने और समझने के लिए समता का एक अवसर भी दिया। लखनऊ के परिवर्तन चौक, बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल लखनऊ में ज्योतिबाफुले की विशाल व भव्य प्रतिमा लगवाया तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में ज्योतिबाफुले विश्वविद्यालय एवं ज्योतिबाफुले नगर जिला बनाया।

तमाम शोषण समाज के दलित पिछ़डे महापुरुषों की मूर्तियां लखनऊ में स्थापित की गयी मगर आज का शोषण समाज उन्हें पढ़ने के बजाय सेल्फी प्वाइंट बना रखा हैं रील बनाने में मशगूल हैं शायद परिवर्तन चौक से लेकर अंबेडकर पार्क तक दर्जनों मूर्तियां होगी जो उनकी यादों को संजोकर रखी हैं मगर हम नगण्य हैं उनके विचारों को पढ़ने में समझने में आखिर हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती हैं या नहीं यह भी अवलोकन करने की जरूरत हैं।