एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ

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एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ
एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ

डॉ.वेदप्रकाश

      महाकुंभ भारतवर्ष की सनातन संस्कृति का महोत्सव है। कुंभ के विषय में सर्वमान्य है कि देवासुर संग्राम में अमृत प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन जैसी ऐतिहासिक और अद्वितीय घटना घटित हुई। इसी मंथन में विष निकला तो अमृत भी। अमृत कलश को पाने के लिए देव और दानवों में छीना झपटी शुरू हुई तो इंद्र पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भागा और इसी भागदौड़ में जिन-जिन स्थानों पर अमृत की बूंदे छलकी उन उन स्थानों पर कुंभ पर्व आयोजित होने लगे। चिरकाल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह निर्बाध रूप से आज भी हो रहा है। भारतवर्ष में कुंभ पर्व चार प्रमुख नदियों के किनारे आयोजित होते हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार में मां गंगा के तट पर, उत्तर प्रदेश तीर्थराज प्रयाग में मां गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर, महाराष्ट्र नासिक में गोदावरी के किनारे और मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे। दक्षिण भारत में भी तमिलनाडु के कुंभकोणम में महामाखम सरोवर पर कुंभ की यह जीवित और जागृत परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह सनातन का महोत्सव है। एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ

     विगत दिनों तीर्थराज प्रयाग में चल रहे महाकुंभ में पहली बार स्नान के लिए जाने का सौभाग्य मिला। यह भी जिज्ञासा बनी हुई थी कि महाकुंभ कैसे और किस प्रकार के होते हैं? वहां क्या होता है? लोग क्या करते हैं? व्यवस्थाएं कैसी होती हैं, आदि अनेक बातें थी। वहां जाने पर देखने में आया कि महाकुंभ एक ऐसा महोत्सव है जहां बिना किसी भेदभाव के देश-विदेश के कोने-कोने से लाखों- करोड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। यद्यपि कुंभ क्षेत्र में पहुंचने के लिए उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की कठिनाइयां भी होती हैं तथापि कुंभ में स्नान करने के बाद आनंद और संतुष्टि का भाव सभी की थकान मिटा देता है।

13 जनवरी 2025 से शुरू हुए महाकुंभ में अब तक लगभग 50 करोड़ लोग श्रद्धा की डुबकी लगा चुके हैं। प्रदेश और देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों में भारी वृद्धि हो रही है। लाखों लोगों को आजीविका के नए-नए अवसर मिल रहे हैं। इस बार का कुंभ इस मायने में ऐतिहासिक हो चुका है। अभी कई दिन बाकी हैं और अनुमान के अनुसार अभी कई करोड़ श्रद्धालु स्नान हेतु पहुंचेंगे। पूरे ही महाकुंभ क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है। अनेक संतों के छोटे-बड़े पंडाल, कल्पवासियों की छोटी-छोटी कुटिया व प्रत्येक स्थान से कीर्तन, भागवत व मानस आदि कथाएं और प्रवचन गुंजायमान रहते हैं। 24 घंटे और लगातार होने वाला यह कीर्तन वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर रहा है। प्रत्येक श्रद्धालु के मन- मस्तिष्क में जय श्री राम, जय मां गंगे, हर हर महादेव और स्नान का ही भाव दिखाई देता है। अनेक संत- महापुरुषों के दर्शन तीर्थ यात्रियों के आनंद का मूल हैं। भूखे- प्यासे रहकर भी बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष, युवा, शिक्षित,अशिक्षित, ग्रामीण और शहरी सभी आस्था में डूबकर आनंद की अनुभूति करते हैं। स्थान स्थान पर सफाईकर्मी, सुरक्षाकर्मी एवं घाटों पर व्यवस्था हेतु हजारों लोग बिना विश्राम लिए दिन-रात अपने काम में और यात्रियों की सुविधा में लगे हुए हैं।

एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ

144 वर्ष बाद विशेष योग में चल रहा यह महाकुंभ वैश्विक हो चुका है। विश्व के अनेक देशों से लाखों श्रद्धालु भारतवर्ष की सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को जानने-समझने और उसमें सराबोर होने के लिए तीर्थराज प्रयाग पहुंच रहे हैं। सर्वविदित है कि भारतीय संस्कृति सभी धर्मों, भाषाओं, क्षेत्रों और परंपराओं को सम्मान देने वाली है। तीर्थराज प्रयाग में परमार्थ त्रिवेणी पुष्प और परमार्थ निकेतन शिविर लगातार आकर्षण और ऊर्जा का केंद्र बन रहा है। देश-विदेश के अनेक श्रद्धालु , विद्वान एवं गणमान्य विभूतियां वहां पहुंच रहे हैं। संगम में डुबकी लगाने के साथ-साथ परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में प्रतिदिन  विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। अन्न क्षेत्र में कुंभ में काम करने वाले हजारों लोगों व श्रद्धालुओं के लिए हर समय भोजन, स्वास्थ्य सुविधाएं और विश्राम हेतु स्थान दिया जा रहा है।

 प्रतिदिन मां गंगा संगम आरती के समय परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी अपने उद्बोधन में देश-विदेश से आए लोगों को अनेक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा- संगम में संयम की डुबकी लगाएं, संगम में केवल अपने लिए ही नहीं अपितु एक डुबकी राष्ट्र कल्याण के भाव का संकल्प लेकर भी लगाएं, हम राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों को समझें। उन्होंने यह भी कहा कि- महाकुंभ परंपराओं के सम्मान और वैश्विक एकता का उत्सव है। हमें अपनी धरती माता के प्रति सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करने के लिए एकजुट होना होगा।

आज हमें यह भी समझने की जरूरत है कि महाकुंभ में देश के छोटे-बड़े अनेक संत वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिनः का संदेश देते हुए निरंतर सामाजिक समरसता और विश्व मानवता के कल्याण हेतु जन-जन को एकजुट कर रहे हैं। इतना ही नहीं वहां संतों का प्रत्येक कार्य समाज और राष्ट्रहित को समर्पित हो रहा है। महाकुंभ जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्रीयता की सीमाओं से परे भारतवर्ष की मानवता के कल्याण पर केंद्रित  संस्कृति का दिग्दर्शन करवा रहा है। आइए हम सब भी महाकुंभ से सीख लेकर अपनी श्रेष्ठ परंपराओं का सम्मान करें और राष्ट्रीय तथा वैश्विक एकता का महोत्सव मनाएं। एकता व परंपराओं का महोत्सव महाकुंभ